सिवनी बालाघाट
मार्ग की दुर्दशा!
(शरद खरे)
सिवनी से बालाघाट
होकर गोंदिया फिर रायपुर जाने वाला मार्ग छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र को मध्य
प्रदेश से जोड़ता है। इस मार्ग पर आवागमन का भारी दबाव है। इस मार्ग से होकर
व्यापारिक व्यवसायिक माल लेकर चलने वाले वाहनों की खासी तादाद है। वैसे छत्तीसगढ़
से मध्य प्रदेश होकर अन्य प्रदेशों को जाने वाले वाहन मण्डला जिले की छिल्पी घाटी
का प्रयोग भी करते हैं।
सिवनी से बालाघाट
मार्ग लंबे समय से जर्जर हालत में रहा है। सालों बाद इस मार्ग की रंगत बदली, और यह ना केवल
मोटरेबल हुआ वरन् इस मार्ग पर दो पहिया से लेकर दस चक्का वाहन फर्राटे भरते नजर
आए। सिवनी से बालाघाट की दूरी महज 90 किलोमीटर है, पर इसे पाटने में
पहले चार से पांच घंटे लग जाया करते थे।
मार्ग के निर्माण
के उपरांत बस से बालाघाट पहुंचने में महज दो से ढाई घंटे ही लग रहे थे। अचानक ही
हिर्री नदी का पुल टूट गया। वैकल्पिक व्यवस्था के बतौर इस मार्ग पर नदी में एक
छोटा अस्थाई रपटा बना दिया गया। इस रपटे ने गर्मी भर साथ दिया किन्तु बारिश आते ही
समस्या जस की तस हो गई।
पिछले साल भोपाल से
आए जांच दल ने इस पुल को वाहनों के लिए असुरक्षित बताकर बंद करवा दिया था। दिसंबर
माह में पुल को पूरी तरह ढहा दिया गया था। पुल ध्वस्त होते ही इसके समीप एक विचलन
मार्ग बनाया गया था,
जिससे आवागमन कुछ हद तक सुचारू हो सका।
जनवरी माह में यह
कहा जा रहा था कि इस साल बारिश के पहले ही इस पुल को तैयार कर दिया जाएगा। बारिश आ
गई पर बात को सच नहीं कर पाई सरकार। विचलन मार्ग को भी बारिश की पहली फुहार सहन
नहीं कर पाई और वह भी बह गया। वैकल्पिक तौर पर मंडी काचना, केकड़ई होकर लोग आना
जाना कर रहे हैं।
यह मार्ग भारी
वाहनों या यातायात के अधिक दबाव को सहने की स्थिति में कतई नहीं है। इस मार्ग की
हालत बहुत ही जर्जर थी जो बारिश में अत्यंत बुरी स्थिति में आ चुका है। इस मार्ग
पर से निकलने वाले वाहन कीचड़ में आए दिन फंस रहे हैं जिससे जाम की स्थिति निर्मित
हो रही है।
इस मार्ग के
निर्माण की जवाबदेही कलकत्ता की एमबीएल कंपनी को दी गई थी। निर्माण कंपनी को ही
मार्ग के रखरखाव की जवाबदेही भी सौंपी गई थी। इस कंपनी के कारिंदों को इस बात की
कतई चिंता नहीं दिख रही है कि इस मार्ग का निर्माण पूरी तरह होकर आवागमन सुव्यवथित
हो जाए।
इस मार्ग में सबसे
बड़ी बात तो यह है कि जब इसका ठेका दिया गया था तब क्या लोक निर्माण विभाग के सेतु
अनुभाग के सरकारी नुमाईंदे सो रहे थे। जब यह पुल जर्जर था तो इसका निर्माण भी
मार्ग के निर्माण के साथ क्यों नहीं करवाया गया? आखिर क्या वजह है
कि इसके विस्तृत प्राक्कलन बनाते वक्त ब्रितानी शासन में बने इस पुल को शामिल नहीं
किया जाकर इसकी अनदेखी की गई थी?
आज सिवनी से
बालाघाट आवागमन बाधित है, इस मार्ग पर बाकायदा टोल टैक्स वसूला जा रहा है, क्या वाहन मालिक या
यात्री अपना समय व्यर्थ गंवाने के एवज में टोल टैक्स दे रहे हैं? इसकी जवाबदेही किस
पर आहूत होती है? क्या सिवनी
जिले के विधायक विशेषकर बरघाट विधानसभा के विधायक कमल मर्सकोले इस संबंध में
विधानसभा के आहूत सत्र में किसी की जवाबदेही तय करने की मांग उठाएंगे या फिर सदा
की ही भांति अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़े बैठे रहेंगे?
इस मार्ग पर पुल
आखिर क्यों नहीं बनाया गया यह शोध का ही विषय माना जा सकता है। जब इस सड़क के
निर्माण का ठेका हुआ तब इस पुल की क्यों और किन परिस्थितियों में अनदेखी की गई है
यह सोचना और जवाबदेही निर्धारित करना सरकार का काम है, इससे इस सड़क से
होकर गुजरने वाले यात्रियों को कुछ लेना देना नहीं है।
जिला प्रशासन को
चाहिए कि वह तत्काल लोक निर्माण विभाग के आला अधिकारियों को पत्र लिखकर इस मार्ग
पर टोल वसूली को स्थगित करवाए क्योंकि जब सड़क पर सिवनी से बालाघाट तक निर्विध्न
यात्रा ही संभव नहीं है तो फिर टोल किस बात का? इसके लिए निर्माण
कंपनी को ही कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।
वैसे जिला प्रशासन
से यह अपेक्षा भी है कि वह यात्रियों को वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था कर बालाघाट
जिला प्रशासन से सामंजस्य स्थापित कर रूटीन की सिर्फ वैध यात्री बसों के अलावा
अन्य भारी वाहनों को बालाघाट से वारासिवनी कटंगी के रास्ते सिवनी आने के लिए बाध्य
करने की व्यवस्था सुनिश्चित करे। इससे इस मार्ग पर यातायात का दबाव भी कम होगा और
छोटे वाहन चालकों के साथ ही साथ यात्री बसें भी बिना किसी विध्न के गंतव्य तक
पहुंच सकेंगी।
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