दुर्घटनाओं को
न्योता देती चरमराई यातायात व्यवस्था
(शरद खरे)
जिला मुख्यालय
सिवनी की यातायात व्यवस्था पूरी तरह से पटरी से उतर चुकी है। सिवनी में यातायात
व्यवस्था या ट्रेफिक सेंस नाम की चीज नहीं बची है। जिसका जहां मन होता है, वहां वाहन खड़ा कर
देता है, जहां मन
आया सवारी गाड़ियां सवारी भरती उतारती नजर आती हैं। शहर में जगह जगह बस स्टेंड
स्थापित हो गए हैं।
सिवनी शहर में
बिगड़ैल यातायात व्यवस्था का सबसे दुखद पहलू यह है कि सिवनी में भारी और हल्के वाहन
चौबीसों घंटे फर्राटे भरते नजर आते हैं। अतिक्रमण ने सड़कों को सकरा कर दिया है तो
वाहनों की तादाद में जबर्दस्त इजाफा हुआ है। सिवनी शहर के पॉश इलाके बारापत्थर में
भारी वाहन और अर्थ मूवर्स का आवागमन बारहों माह तीसों दिन होता है। पता नहीं सिवनी
में इस जगह इन वाहनों का क्या काम?
जिला मुख्यालय
सिवनी में जबलपुर रोड़, बरघाट रोड़, नागपुर, रोड़ छिंदवाड़ा रोड़
सहित अनेक मुख्य मार्गों पर विद्यालयों की भरमार है। इन विद्यालयों के लगने और
अवकाश के समय यहां वाहनों की रेलमपेल से दुर्घटनाओं की आशंका बनी ही रहती है।
स्कूल प्रशासन द्वारा भी इस दिशा में कोई पहल ना किया जाना आश्चर्यजनक ही माना
जाएगा।
बरघाट रोड़ पर
केंद्रीय विद्यालय है। बरघाट रोड़ से केंद्रीय विद्यालय पहुंच मार्ग की दयनीय दशा
किसी से छिपी नहीं है। इस मार्ग में लगभग सौ फिट की सड़क अभी बनी नहीं है। बारिश के
कीचड़ में विद्यार्थियों को स्कूल लाने ले जाने वाले आटो कभी भी फिसल सकते हैं, इस संभावना से
इंकार नहीं किया जा सकता है।
इसी मार्ग में
बरघाट रोड़ पर रेल्वे क्रासिंग से डूंडा सिवनी तक सड़क पर भारी वाहनों का जाम देखने
लायक होता है। सड़क पर खड़े इन भारी वाहनों से आवागमन बुरी तरह बाधित हुए बिना नहीं
रहता है। आलम यह होता है कि सड़क महज एक ओर से ही आने जाने को खुली रहती है, जिससे वाहनों की
रेलम पेल में दुर्घटना का भय सदा ही बना रहता है।
वहीं इस मार्ग पर
यातायात पुलिस द्वारा पाबंद कारिंदों द्वारा महज दस बीस रूपए के लालच में भारी
वाहनों को शहर में आने के लिए अनुमति दे दी जाती है, जिससे दुर्घटना का
भय बना ही रहता है। शाला के अवकाश के समय अनेकों बार रेल्वे फाटक भी बंद रहता है
जिससे जाम की स्थिति निर्मित हो जाती है।
इसके अलावा
छिंदवाड़ा चौक और कोतवाली के सामने वाले स्कूलों के सामने भी वाहनों की आवाजाही
बहुतायत में ही हुआ करती है जिससे दुर्घटना का भय बना रहता है। कोतवाली के सामने
वाले स्कूल के समक्ष तो यात्री बस और टेक्सियों में बाकायदा सवारी भी भरी जाती
हैं। विडम्बना ही कही जाएगी कि कोतवाली के सामने ही जब आलम यह रहता है तो भला अन्य
जगहों के बारे में अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
सबसे भयावह स्थिति
कचहरी चौक की हुआ करती है। इस चौक पर जब मिशन उच्चतर माध्यमिक शाला और मिशन कन्या
शाला की छुट्टी होती है तो शोहदों की भीड़ के बीच बालाओं को छींटाकशी का भी सामना
करना पड़ता है। कचहरी चौक और सर्किट हाउस के बाजू से जिला कलेक्टोरेट जाने वाले
मार्ग पर अंधी गति से भागते भारी वाहन विशेषकर डंपर से कभी भी किसी भी तरह की
दुर्घटनाओं ेसे इंकार नहीं किया जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि
जिला या पुलिस प्रशासन इन परिस्थितियों से वाकिफ नहीं है। हर जगह यातायात पुलिस के
ट्रेफिक प्वाईंट बने हुए हैं। इन प्वाईंट्स पर यातायात पुलिस के कर्मी अक्सर ही
नदारत हुआ करते हैं। इनके स्थान पर आवारा मवेशी ही यहां डेरा डाले दिख जाते हैं।
पुलिस महकमा स्टाफ की कमी की बात अक्सर ही कर देता है। इसके लिए सांसद विधायक क्या
कर रहे हैं, यह भी
विचारणीय प्रश्न ही है।
वर्तमान में
विधानसभा का सत्र चल रहा है। अगर विधायकों ने पूर्व में सूचना देकर प्रश्न नहीं
लगाया है तो वे शून्यकाल में तो कम से कम इन समस्याओं और पुलिस में स्टाफ की कमी
की बात कर ही सकते हैं। वस्तुतः सिवनी जिले की समस्याओं से यहां के जनादेश प्राप्त
सांसद विधायकों को कोई सरोकार शायद नहीं बचा है।
जिला कलेक्टर भरत यादव एवं जिला पुलिस अधीक्षक मिथलेश शुक्ला से अपेक्षा ही की
जा सकती है कि कम से कम सिवनी शहर में भारी वाहनों के लिए प्रतिबंधित समय में भारी
वाहन विशेषकर अंधी गति से भागते डंपरों के प्रवेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने
की व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ ही साथ शालाओं के अवकाश के समय यातायात का दबाव
कम हो इसके भी प्रयास करें। इसके लिए नगर पालिका प्रशासन को चाहिए कि कम से कम
यातायात की दृष्टि से अतिसंवेदनशील इन प्वाईंट्स पर ट्रेफिक सिग्नल लगाने की
व्यवस्था तत्काल सुनिश्चित करे, अन्यथा अगर कोई हादसा होता है तो उन्हें जवाब देते
नहीं बनेगा।
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