नीरा राडिया मतलब लोकसेवकों और जनसेवकों की मास्टर चाबी
(लिमटी खरे)
नीरा राडिया यह नाम भारत गणतंत्र के मानचित्र पर धूमकेतू के मानिंद उभरा है। राडिया ने कम समय में ही जो कर दिखाया वह इक्कीसवीं सदी में सड़ी हुई भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त मानी जा सकती है। इस व्यवस्था में जनसेवकों, लोकसेवकों, कार्पोरेट घरानों और मीडिया के घरानों की गठजोड़ को सहज ही समझा जा सकता है। जब से मीडिया की बागडोर कार्पोरेट घरानों और धनपतियों ने संभाली है तबसे प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ धनकुबेरों के घर की चौखट पर मुजरा करता नजर आ रहा है।
नीरा राडिया के टेप जब सार्वजनिक हुए तब एहसास हुआ कि सत्ता और भ्रष्ट तंत्र की सांठगांठ से ही देश का शासन चल रहा है। नीरा राडिया ने जिस तरह से कार्पोरेट घरानों और मीडिया मुगलों से बातचीत की है उससे समझा जा सकता है कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले देश में सत्ता की धुरी आखिर किसके इर्द गिर्द घूम रही है। कमोबेश यही स्थिति ब्रिटेन में तब बनी थी जब पामेला बोर्डेस का प्रकरण सामने आया था।
लंदन निवासी नीरा राडिया महज एक लाख रूपए की पूंजी लेकर हिन्दुस्तान आई और कम समय में ही वह कारपोरेट धरानों के साथ ही साथ मीडिया मुगलों और जनसेवकांे की चहेती बन गई। वस्तुतः नीरा राडिया पहले नीरा शर्मा थीं, जो अपने विमानन क्षेत्र से जुड़े पिता के साथ लंदन चली गईं थीं। इसके बाद नीरा ने गुजराती मूल के एनआरआई जनक राडिया से विवाह किया। तीन बच्चों के होने के बाद इन दोनों की नहीं बनी और राडिया ने जनक से तलाक ले हिन्दुस्तान की ओर रूख किया।
ख्यातिलब्ध सहारा समूह के लिए लाईजनिंग (वर्तमान में दलाली को लोग इस नाम से जानने लगे हैं) का काम करने के उपरांत नीरा ने विमानन क्षेत्र से जुड़ी यूरोपीय कंपनियों के लिए काम किया। बताते हैं कि नीरा का सबसे अधिक दोहन टाटा समूह द्वारा किया गया है। नीरा को टाटा समूह से ही प्रतिवर्ष साठ करोड़ रूपए दिए जाते थे।
पौने दो लाख करोड़ रूपयों के टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले में नीरा राडिया की भूमिका अहम रही है। सीबीआई की गवाही की फेहरिस्त में नीरा का नंबर 44वां है। नीरा पर आदिमत्थू राजा को मंत्री बनवाने के लिए चौसर बिछाने का आरोप है। नीरा के अलावा इस घोटाले में सालीसिटर जनरल गुलाम ई वाहनवती का मशविरा, यूनिटेक समूह के वरिष्ठ प्रबंधक कौशल नागपाल, यूनिटेक के एक अन्य आला अधिकारी मोहित गुप्ता, रिलयंस के ए.एन.सेतुरमन, आनंद सुब्रह्मण्यम, राजिंदर सिंघी, आशीष करीएकर, आशीष टंबावाला, विश्वनाथ देवराजा, अनंत राज ग्रुप के अमित सरीन, एतिस्लात के विनोद कुमार बुद्धिराजा, डीबी रियल्टी के विजेंद्र शर्मा, लूप मोबाईल के ए.एस.नारायणन आदि सीबीआई के निशाने पर हैं।
अब तक महिलाओं के जासूसी करने के कारनामों का भाण्डाफोड़ होता आया है। महिलाओं द्वारा अपनी अदाओं या त्रिया चरित्र में पुरूषों को फसाकर उनसे मनचाहा काम करवाया जाता रहा है। आदि अनादि काल से इस बात का उल्लेख मिलता आया है कि महिलाओं के माध्यम से ही राजाओं द्वारा अपने काम साधे जाते रहे हैं। रूपसी कन्याओं को विषकन्या में तब्दील कर दिया जाता था, जिनके माध्यम से विरोधियों का शमन किया जाता रहा है।
आश्चर्य तो तब होता है जब केंद्र सरकार के एक मंत्री द्वारा पौने दो लाख करोड़ रूपए (एक सामान्य आदमी इतने पैसे गिनने में आधी उमर लगा दे) का घोटाला किया गया हो और उसके साथी मंत्री (वर्तमान संचार मंत्री कपिल सिब्बल) उसके बचाव में आगे आएं। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस की बेशर्मी तो देखिए, कांग्रेस अपनी खाल के बचाव में कहती है कि इस मामले की जांच एनडीए शासनकाल से की जाएगी।
प्रश्न तो यह है कि आप जांच आजादी के उपरांत गठित संचार मंत्रालय के कार्यकाल से ही कर लें इस बात से आम जनता को क्या लेना देना? अगर भाजपा नीत राजग सरकार के कार्यकाल में घपले घोटाले हुए तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इस तरह एक राजनैतिक दलों द्वारा एक दूसरे को घुड़की देना कहां तक न्याय और तर्क संगत माना जा सकता है। मतलब साफ है कांग्रेस भाजपा को दम दे रही है कि चुप रहो वरना हम तुम्हारे भी कपड़े उतार देंगे। जनता को सियासी दलों ने अंधी, बहरी और नासमझ ही समझा है।
नीरा राडिया टेप कांड में केंद्र सरकार के अनेक मंत्रियों के कपड़े उतरे हैं, किन्तु वे बेशर्मी के साथ आज भी सत्ता की मलाई चख रहे हैं। यह सब कुछ कांग्रेस और भाजपा के राज में ही संभव है। हो सकता है कि आने वाले दिनों के लिए मीडिया मुगलों ने कुछ और टेप या सबूत जुटा रखे हों जिन्हें माकूल वक्त पर उजागर किया जाए, तब न जाने कितनी नीरा राडियाएं, देश के भ्रष्ट जनसेवकों, लोकसेवकों, मीडिया मुगलों, कार्पोरेट घरानों को नग्न करेंगी। पर इससे देश के नीति निर्धारकों को क्या लेना देना, यह सब तो हमाम में ही चल रहा है और पुरानी कहावत है -‘हमाम में सब नंगे हैं।‘‘
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