काले कांच पर बेबस
पुलिस!
(शरद खरे)
आज़ादी के उपरांत
चार पहिया वाहन स्टेटस सिंबॉल माना जाता रहा है। सत्तर के दशक तक जिसके घर के
सामने चार पहिया वाहन, घर की छत पर एक अदद टेलीफोन के तार, एक पालतू कुत्ता
बंधा होता था, उसकी गिनती
रईस आदमी में होती थी। कालांतर में भ्रष्टाचार की गंगा बही और हर घर में वाहनों की
लाईन लग गई। राजधानी दिल्ली में तो घरों में सदस्यों की संख्या कम है पर चार पहिया
विलासिता वाले वाहनों की तादाद उनसे कहीं अधिक है। दिल्ली में लोगों को पार्किंंग
की असुविधा से दो चार होना पड़ा। मामला सालों साल खिंचा, अंत में कोर्ट को
इस मामले में संज्ञान लेना पड़ा। अब दिल्ली में वाहन के पंजीयन के पहले आरटीओ को
वाहन की पार्किंंग सुनिश्चित कर देनी होती है तभी उसका पंजीयन होता है।
वाहनों की सड़कों पर
बेतहाशा बढ़ोत्तरी के साथ ही अपराध में भी इनकी संलिप्पतता तेजी से बढ़ी। दिल्ली
सहित अन्य महानगरों में वाहनों में अपराधों की तादाद में जमकर इजाफा हुआ है।
महानगरों सहित अन्य शहरों में अब काले कांच का फैशन जमकर छाया है। काले कांच वैसे
तो धूप से बचने के लिए करवाए जाते हैं। कांच पर रंग बिरंगी विशेषकर स्याह रंग की फिल्म
चढ़वाकर उन्हें कम पारदर्शी बना दिया जाता है, ताकि दिन में धूप की किरणों से अंदर बैठा
व्यक्ति अपना बचाव कर सके।
काले कांच के
वाहनों के अंदर दिन में ही बमुश्किल दिखाई पड़ता है तो रात के स्याह अंधेरे में तो
कुछ देख पाना संभव ही नहीं है। इसका फायदा जरायम पेशा लोगों द्वारा जमकर उठाया
जाता है। वाहनों के अंदर हथियाार, शराब आदि का अवैध परिवहन तेजी से होता है।
इन वाहनों में सामाजिक अपराध भी बढ़े हैं। स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाली जवान होती
पीढ़ी यौनाचार के लिए इन वाहनों का उपयोग कर रही है, इस बात से इंकार
नहीं किया जा सकता है। महानगरों में न जाने कितने मामले मीडिया की सुर्खियां बने
होते हैं जिनमें यौन अपराध, वाहनों के अंदर होने की बात सामने आती है।
दिल्ली में हुए निर्भया के रेप मामले में भी एक बस का ही प्रयोग किया गया था।
सिवनी जिले में भी
मंहगे और विलासिता वाले वाहनों की कमी नहीं है। सरकारी स्तर पर भी अब वाहन किराए
पर लेने की परंपरा का आगाज़ हो चुका है। निजी तौर पर लगाए जाने वाले उन वाहनों
जिन्हें सरकार के साथ अनुबध्ंा पर लगाया जाता है में टैक्सी परमिट अनिवार्य होता
है। परिवहन विभाग के सर्कुलर के अनुसार टैक्सी परमिट में वाहन की नंबर प्लेट सफेद
के स्थान पर पीले रंग से पुती होना अनिवार्य होता है। जिले में सरकार (केंद्र और
प्रदेश सरकार) के साथ अनुबंधित वाहनों में न जाने कितने वाहनों में आरटीओ के
नियमों को धता बताई जा रही है। पीले रंग की नंबर प्लेट के बजाए सफेद रंग की नंबर प्लेट
पर मनमर्जी के साथ लिखे नंबर आखिर क्या दर्शाते हैं?
देश की शीर्ष अदालत
द्वारा काले कांच वाले वाहनों से काली फिल्म सख्ती से उतरवाने का फरमान जारी किया
गया था। इस आदेश के बाद देश भर में तहलका मच गया था। राज्यों की सरकारों ने इस
मामले को संजीदगी से लिया और काली फिल्में उतारने की कवायद आरंभ कर दी थी। आरंभ
में तो यह मामला परवान चढ़ा पर जब रसूखदारों के वाहनों से खरोंचकर फिल्म उतारने का
उपक्रम किया गया तो पुलिस के हाथ स्वयमेव ही बंध गए। यहां तक कि अनेक प्रदेशों के
गृह मंत्रियों के सरकारी वाहनों में ही काली फिल्में लगी पाई र्गइंं, जबकि जेड प्लस
सुरक्षा के लिए लगे बुलट प्रूफ वाहनों के शीशे काले नहीं होते हैं।
सिवनी में भी
सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान किया गया। तत्कालीन नगर निरीक्षक (वर्तमान
अनुविभागीय अधिकारी पुलिस) हरिओम शर्मा ने अपने वाहन की फिल्म हटाकर नजीर पेश की
और अन्य वाहनों की फिल्म उतारने की कार्यवाही आरंभ की। यह मामला भी तीन चार दिन
में ही टॉॅय टॉय फिस्स हो गया। इसके बाद काले शीशे वाले वाहनों की भरमार तेजी से
बढ़ती ही चली गई जिले में। आज जिले में न जाने कितने वाहनों में काले शीशे सर्वोच्च
न्यायालय के आदेश को धता बताते हुए सरेआम सड़कों का सीना रौंद रहे हैं।
काले कांच वाले
वाहनों में अवैध गतिविधियां संचालित होती हैं, इस बात से इंकार
नहीं किया जा सकता है। जिले में वीरान सड़कों पर न जाने कितने वाहन निर्जन स्थानों
पर घंटों खड़े रहते हैं। इन वाहनों के शीशे अमूमन काले ही हुआ करते हैं। अनेक जगह
विशेष अंदाज में ये वाहन हिलते डुलते नजर आते हैं। इन वाहनों में शराबखोरी के साथ
ही साथ व्याभिचार होने की बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
बहरहाल, चुनाव का मौसम है, इस मौसम में काले
कांच वाले वाहनों में शराब, हथियार और अन्य अपात्तिजनक सामान एक स्थान
से दूसरे स्थान आसानी से पहुंचाए जा सकते हैं वह भी पुलिस की नजरें बचाकर। चुनाव
के दौरान पुलिस ने चेकिंग आरंभ की है। यह चेकिंग संभवतः जिला मुख्यालय तक ही
सिमटकर रह गई है। इसका कारण यह है कि जिले में अब तक पुलिस की सघन चेकिंग के दौरान
कोई अवैध माल मसरूका मिलने की खबर नहीं है।
एक वाहन में मांस
(गौमांस या अन्य जंगली जानवार का मांस स्पष्ट नहीं) मिलने की खबर पिछले दिनों
मिली। इसके बारे में बताया गया कि लखनवाड़ा पुलिस द्वारा महज दो हजार रूपए की राशि
लेकर इस वाहन को छोड़ दिया गया था। अगर यह सच है तो फिर इस तरह बेरीकेटिंग लगाकर
वाहनों की चेकिंग करना निरर्थक ही है। सर्वाधिक आश्चर्य तो इस बात पर है कि वाहनों
की सघन चेकिंग के दौरान सड़कों पर दौड़ रही अवैध (बिना परमिट वाली, एक दरवाजे वाली)
यात्री बस क्या पुलिस के कारिंदों को दिखाई नहीं देती हैं? अगर दिखाई देती हैं
तो वो कौन सा चश्मा है जिसे लगाकर पुलिस इन्हें नहीं देख पाती है? अब तो आचार संहिता
लग चुकी है। अगली सरकार किसकी बनेगी यह भी स्पष्ट नहीं है, फिर भला राजनैतिक
पहुंच संपन्न लोगों की अवैध बस कैसे सड़कों का सीना रौंद रही हैं। संवेदनशील जिला
कलेक्टर भरत यादव एवं पुलिस अधीक्षक बी.पी.चंद्रवंशी से अपेक्षा है कि कम से कम
सिवनी में दौड़ रही अवैध यात्री बसों और काले शीशे वाले वाहनों पर कार्यवाही करें।
कम से कम चार पहिया वाले वाहनों के काले शीशे अवश्य उतरवाकर सर्वोच्च न्यायालय के
आदेश का सम्मान किया जाए, इससे कम से कम इन वाहनों के अंदर अवैध गतिविधियों के संचालन
को रोका जा सकेगा।
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