गुरुवार, 9 जून 2011

भूजल सहेजने में फिसड्डी है मध्य प्रदेश


भूजल सहेजने में फिसड्डी है मध्य प्रदेश

केंद्र ने 1970 में भेजा था राज्यों को माडल कानून

आने वाले समय में पेयजल होगा दूभर

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। भूजल के गिरते स्तर पर केंद्र सरकार चिंतित नजर आ रही है। उधर मध्य प्रदेश सहित सभी राज्यों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लागू न होने से आने वाले समय में लोगों को पीने का पानी भी मयस्सर नहीं होने वाला है। केंद्र सरकार ने चार दशक पूर्व 1970 मंे एक माडल कानून बनाकर राज्यों को भेजा था, किन्तु राज्यों ने इसकी सुध तक नहीं ली।

केरल, गोवा, हिमाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू सहित सात राज्यों में भूजल प्राधिकरण का गठन अवश्य किया है, उधर महाराष्ट्र और गुजरात में विधानसभा में विधेयक अवश्य पारित करवा दिया गया है किन्तु इसे लागू नहीं किया गया है। इसके अलावा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड, कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में भूजल के संरक्षण के लिए कानून बनाने की दिशा में कोई कारगर पहल नहीं की गई है।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा 1970 में एक माडल कानून बनाकर राज्यों को भेजा था कि वे अपनी जरूरत के मुताबिक इसमें संशोधन कर इसे लागू करें। इसके बाद इसी कड़ी में केंद्र सरकार द्वारा 1992, 1996, 2005 और 2006 में कांग्रेस के शासनकाल में विधेयक का माडल पुनः भेजा किन्तु राज्यों की लाल फीताशाही में यह दबकर ही रह गया। केंद्र सरकार द्वारा ‘राजीव गांधी जलग्रहण मिशन‘ भी आरंभ करवाया गया, जिसमें भी पलीता ही लग गया।

जानकरों का मानना है कि अगर समय रहते राज्यों की सरकारों द्वारा रूफ टाप रेन वाटर हार्वेस्टिंग को प्रोत्साहित नहीं किया गया तो आने वाले समय में भूमिगत जल की रीचार्जिंग एक बड़ी समस्या बनकर उभर सकती है। वस्तुतः स्थानीय निकायों द्वारा इस योजना को कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए, साथ ही नए भवनों की अनुज्ञा इसी शर्त पर प्रदान की जानी चाहिए कि भवन स्वामी द्वारा भवन निर्माण के साथ ही इसे अमली जामा पहनाएगा।

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