ए फार अल्लाह, बी फॉर बंदूक
(अभिलाषा जैन)
लंदन (साई)। उर्दू
की वर्णमाला में अ (अलिफ) के लिए ‘अल्लाह’, ब (बे) के लिए ‘बंदूक’, ते के लिए (टकराव), ज (जे) के लिए ‘जिहाद’, ह (हे) के लिए ‘हिजाब’, ख (खे) के लिए खंजर
तथा ज (जे) के लिए ‘जुनुब’ हैं। यह कोई मजाक
नहीं है बल्कि पाकिस्तान की हकीकत है। धार्मिक अल्पसंख्यकवाद की नींव पर खड़ा हुआ
पाकिस्तान कट्टरता की ऐसी कठोर बेड़ियों में जकड़ चुका है कि यहां के स्कूल ही अब
आतंक की नर्सरी बनते जा रहे हैं।
यह खुलासा किसी और
ने नहीं बल्कि परमाणु भौतिकीविद और समसामयिक मुद्दों पर प्रख्यात टिप्पणीकार परवेज
हूदभाई ने लंदन के किंग्स कॉलेज में एक संगोष्ठी में किये। ‘आतंकवाद के खिलाफ
संघर्ष में शिक्षा की भूमिका’ विषय अपने संबोधन में तमाम उदाहरण ऐसे ही
तमाम उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे आज भी भी पाकिस्तान में भारत विरोधी भावना को
चढ़ाया बढ़ाया जा रहा है और इसमें कोई कमी नहीं आ रही है।
हूदभाई की
प्रस्तुति का शीर्षक था, ‘इस्लामी पाकिस्तान गणतंत्र में शिक्षा कैसे आतंकवाद को बढ़ावा
देती है’। इसमें आग
की लपटों के बीच एक कॉलेज को दिखाया गया है। उसमें हराम के रूप में पतंग, गिटार, सेटेलाइट टीवी, कैरम बोर्ड, शतरंज बोर्ड, शराब की बोतलें और
हार्माेनियम की तस्वीरों को दिखाया गया है। हूदभाई ने कक्षा पांचवी के छात्रों से
जुड़े एक अन्य पाठ्यक्रम दस्तावेज का उदाहरण दिया है जिसमें कि हिंदू मुसलमान के
बीच के अंतर को समझना और फलस्वरूप पाकिस्तान की आवश्यकता, ‘पाकिस्तान के खिलाफ
भारत की साजिश’ और ‘शहादत एवं जिहाद पर
भाषण दें’ जैसे
विषयों पर चर्चा संबंधी कार्यकलाप शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि
पिछले छह दशक में पाकिस्तान में आमूलचूल बदलाव आया, लेकिन जनरल जियाउल
हक ने शिक्षा में जो जहर घोला था, उसे बाद के शासकों ने नहीं बदला। कई सालों
के दौरान दृष्टिकोण बदले और मेरे देश को मेरे खिलाफ बना दिया। कराची में बिताए
अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि यह शहर हिंदुओं, पारसियों और
ईसाइयों का स्थान था। उन्होंने कहा कि वे सभी चले गए गए। पाकिस्तान के दूसरों
हिस्सों के लिए भी यह बात सच है। आज पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के लिए कोई स्थान
नहीं है।
हूदभाई ने इस
स्थिति के लिए मदरसों को आंशिक रूप से जिम्मेदार ठहराया और अफसोस प्रकट किया कि
जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान सुधार के लिए शुरू किए गए प्रयास ज्यादा
दूर नहीं जा पाए। हूदभाई ने कहा कि 2007 के लाल मस्जिद प्रकरण के बाद उदारवादी
विचारों का पाकिस्तान के समाचार मीडिया में कम स्वागत किया जाने लगा। उन्होंने कहा
कि शैक्षिक सुधार का हर प्रयास पाठ्यक्रम से घृणा फैलाने वाली सामग्री दूर कर पाने
में विफल रहा। अल्पसंख्यक बदलाव चाहता है। लेकिन जबतक स्थिति बदलने के लिए कोई बड़ा
कदम नहीं उठाया जाता है तब तक उसमें गिरावट जारी रहेगी। शिक्षा में बहुलतावाद और
धर्मनिरपेक्षता पर बल देते हुए भारत के पूर्व राजनयिक जी पार्थसारथी ने कहा कि जब
तक शिक्षा विविधता और अन्य धर्मों के प्रति सम्मान की सीख नहीं देती है तो तनाव बढ़“ने लगता है।
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