मंगलवार, 20 जुलाई 2010

शिक्षा माफिया की जद में सिवनी जिला

0 सीबीएसई पर हावी शिक्षा माफिया (2)

सेंट फ्रांसिस के नए भवन से आटो वालों की चांदी


मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में सीबीएसई के नाम पर शिक्षा माफिया ने अपनी जमीन मजबूत कर रखी है। शासन प्रशासन अपनी आंख बंद कर पालकों और विद्यार्थियों को लुटने पर मजबूर कर रहा है। सीबीएसई के नाम पर सुविधाओं के अभाव में संचालित हो रही शालाओं और गैर मान्यता प्राप्त शालाओं द्वारा सीबीएसई के नाम पर पालकों और विद्यार्थियों को जमकर लूटा जा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार का शिक्षा विभाग ध्रतराष्ट्र की भूमिका मंे दोनों आंखों पर पट्टी बांधे सब कुछ देख सुन रहा है। न तो जिला प्रशासन को ही इस बारे में कार्यवाही करने का होश है और न ही जिला शिक्षा अधिकारी ही कोई रूचि ले रहे हैं। सांसद, विधायकों के साथ सारे जनसेवक सुसुप्तावस्था में ही सब कुछ होता देख रहे हैं। सीबीएसई का क्षेत्रीय कार्यालय राजस्थान के अजमेर में है सो वहां तक इसकी आवाज पहुंचना मुश्किल ही प्रतीत होता है। यही कारण है कि सिवनी में राज्य शासन के स्कूल बोर्ड और केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के अधीन संचालित शालाओं में जबर्दस्त तरीके से लूट मची हुई है। आलम यह है कि शालाओं के पे रोल में दर्ज शिक्षक शिक्षिकाएं वास्तव में शाला में अध्यापन का कार्य कर ही नहीं रहे हैं। बताते हैं कि छः सौ से लेकर बारह सौ प्रतिमाह के वेतन पर टीसर्च यहां काम कर रहे हैं। कुल मिलाकर अंधा पीसे कुत्ता खाए की कहावत यहां चरितार्थ होती दिख रही है।

सिवनी।  शहर के ह्दय स्थल में संचालित होने वाले सेंट फ्रांसिस स्कूल के सीबीएसई द्वारा मान्यता के सिलसिले में शहर से लगभग सात किलोमीटर दूर आधे अधूरे शाला भवन में स्थानांतरित होने के कारण एक ओर यहां अध्ययनरत बच्चों के पालकों की जेबें ढीली हो रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर शाला में अध्ययन के समय लगभग दो तीन घंटे तक बच्चों को घर से बाहर रहने पर मजबूर होना पड रहा है.

गौरतलब है कि कचहरी चौक पर पुराने स्टेट बैंक भवन के बाजू में ईसाई मिशनरी द्वारा सेंट फ्रांसिस स्कूल का संचालन किया जाता रहा है. इस शाला का स्तर वैसे तो शहर में संचालित अन्य शालाओं के स्तर से अच्छा माना जाता रहा  है, किन्तु कालांतर में सेंट फ्रांसिस स्कूल के शाला प्रबंधन ने उच्चतर कक्षाओं के लिए मध्य प्रदेश शिक्षा बोर्ड के स्थान पर केंद्रीय शिक्षा बोर्ड अर्थात सीबीएसई से अपने आप को संबंध कराने का उपक्रम किया.

सीबीएसई बोर्ड के अपने नियम कायदे कानून हैं, मान्यता के संबंध में इनके कायदे कानून बहुत ही ज्यादा कठोर हैं, जिसमें कक्षाओं की संख्या के हिसाब से भूखण्ड का रकबा, हर कक्षा में विद्यार्थियों की संख्या, शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता, भोतिकी, रसायन, प्राणीशास्त्र आदि की प्रयोगशाला, खेल का मैदान, कम्पयूटर लेब, फर्नीचर, शिक्षक कक्ष, टायलेट आदि मानक आधार पर होना आवश्यक होता है. इन शालाओं में बच्चों के लिए हवादार कक्ष के साथ ही साथ बच्चों के लिए आवागमनके साधन और सुरक्षा का भी पूरा ध्यान रखा जाता है.

ज्ञातव्य है कि इस साल नए शैक्षणिक सत्र के आरंभ होने के साथ ही साथ शाला प्रबंधन द्वारा आधे अधूरे असुरक्षित माने जाने वाले शाला भवन में कक्षाएं लगाना आरंभ कर दिया है. इस शाला भवन की दक्षिणी दिशा में बहने वाले नाले के पास बाउंड्रीवाल के निर्माण के बिना ही शाला को आरंभ कर दिया गया था. बारिश में लबालब होकर बहने वाले इस नाले में दुधमुंहे बच्चों के साथ किसी भी घटना दुर्घटना की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता था. मीडिया द्वारा इस संबंध में ध्यानाकर्षण के उपरांत जिला प्रशासन हरकत में आया और शाला का निरीक्षण कर यहां बाउंड्रीवाल का निर्माण सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए.

गत दिवस शाला के विद्यार्थियों को सुबह छ बजे से शाम पांच बजे तक घर से बाहर रहने पर मजबूर होना पडा था. इसका कारण शाला प्रबंधन की अदूरदर्शिता ही माना जा सकता है. शाला प्रबंधन ने बिना किसी पूर्व योजना के शाला भवन को स्थानांतरित तो कर दिया गया है, किन्तु आवागमन के साधनों की पूर्ण व्यवस्था न किया जाना आश्चर्यजनक ही माना जाएगा. पहली से लेकर नवमी कक्षा तक के बच्चों को दस घंटे से ज्यादा घर से बाहर रहने पर पालकों में रोष और असंतोष की स्थिति निर्मित हो गई.

आलम यह था कि बुधवार को पालकों द्वारा निजी आटो संचालकों की चिरौरी कर अपने अपने बच्चों को स्कूल भेजने का प्रबंध करने पर मजबूर होना पडा. बताया जाता है कि शाला प्रबंधन के तुगलकी फरमान के चलते नया शिक्षण सत्र तो लूघरवाडा के आगे आरंभ हो गया है, किन्तु वहां परिवहन के पर्याप्त साधन न होने के कारण पालकों के साथ ही साथ विद्यार्थिंयों के लिए कष्ट का कारण बनता जा रहा है. भले ही सेंट फ्रांसिस स्कूल का नया शाला भवन सीबीएसई के मापदण्डों पर खरा न उतरता हो, पर शाला प्रबंधन अपनी मुर्गी की डेढ टांग पर पूरी तरह से अडा हुआ है.

बताया जाता है कि भारी मांग को देखते हुए शहर में आटो संचालकों के भाव भी आसमान पर पहुंच गए हैं. कमरतोड मंहगाई में एक एक बच्चे को स्कूल पहुंचाने के एवज में आटो, टेक्सी चालक चार से छरू सौ रूपए तक वसूल कर रहे हैं. पालकों की मुसीबत यह है कि शाला प्रबंधन द्वारा परिवहन की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं किए जाने के चलते उनकी जेब पर सीधा डाका डाला जा रहा है, एक ओर शाला की भारी भरकम फीस और साथ में केपीटेशन फीस भी विद्यार्थियों से वसूली जाना बताया जाता है.

बुधवार को अनेक पालक या तो अपने बच्चों को अपने निजी वाहन से घर से सेंट फ्रांसिस स्कूल छोडने और लेने गए या फिर आटो संचालकों को मनाते नजर आए. अमूमन शाला के बच्चों को लाने ले जाने में प्रयुक्त वाहनों का रंग पीला होता है, पर सिवनी में इस काम में लगे वाहनों में से अनेक वाहनों द्वारा इस नियम का पालन नहीं किया जा रहा है.

अगर एक परिवार के दो बच्चे जूनियर कक्षा में अध्ययनरत हैं तो आटो के पांच सौ और टयूशन फीस के नाम पर दो सौ से एक हजार रूपए तक की वसूल होने की दशा में तीन हजार रूपए महीना तो वह पालक अपने बच्चे के अध्ययन में खर्च करता है. इसके अलावा उसके गणवेश और किताबों, बस्ते का बोझ अलग से उस पर आयत होता है. मंहगाई के इस दौर में सरकारी स्कूलों के गिरते स्तर का फायदा उठाकर व्यवसाईयों ने शाला का संचालन सेठ साहूकारी का धंधा बना लिया है. अपने लाभ के लिए शाला प्रबंधन द्वारा पालकों का सीधा सीधा शोषण किया जा रहा है.यहां गौरतलब होगा कि एक एक आटो में लदे फदे बच्चे शहर की यातायात पुलिस को दिखाई नहीं पडते हैं. इसके साथ ही साथ जिला प्रशासन सहित विधायक, सांसद से अपेक्षा है कि बच्चों के भविष्य और सुविधाओं को देखते हुए कम से कम शिक्षा विभाग के प्रभारी अधिकारी (ओआईसी, डिप्टी कलेक्टर) को निर्देशित करे कि शहर में कुकुर मुत्ते की तरह संचालित होने वाले निजी स्कूलों में जाकर कम से कम यह बात तो सुनिश्चित करे कि विद्यार्थियों के पालकों की जेब पर डाका डालने वाले शाला प्रबंधन द्वारा बच्चों को मूल भूत सुविधाएं मुहैया करवाई जा रहीं हैं या फिर उनका उददेश्य शिक्षा को व्यवसाय बनाने का ही रह गया है.
(क्रमशः जारी)

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