अब आलू लगा सकता है
थाली में आग!
(शरद खरे)
नई दिल्ली (साई)।
आलू बड़ा ही मिलनसार माना जाता है। इसका कारण यह है कि आलू को किसी से बैर नहीं है, यह हर सब्जी में
अपने आप को सहज महसूस करता है। आलू की पैदावार भी काफी अधिक होती है। सब्जियों में
यह मंहगा भी नहीं होता है, पर इस साल आलू की दों में तेज उछाल दर्ज किए जाने की
संभावनाएं तेजड़ियों द्वारा व्यक्त की जा रही है। इसका कारण पिछले साल हजारों टन
आलू का बर्बाद होना और इस साल आलू की पैदावार में कमी को बताया जा रहा है।
ज्ञातव्य है कि
पिछले साल आलू की अधिक पैदावार होने और किसानों को पैदावार की लागत ना निकल पाने
के चलते हजारों टन आलू सड़कों पर फेंक दिया था। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा
के आलू उत्पादक किसान आलू की लागत ना मिल पाने से खासे परेशान थे और दिसंबर माह
में उन्होंने आलू को सड़कों पर ही फेंक दिया था।
देश की राजधानी
दिल्ली सहित उत्तर भारत के अनेक आलू विक्रेता संघों के साथ ही साथ तेजड़ियों ने आलू
की कीमतों में आग लगने की संभावनाएं जताई हैं। समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को मिली
जानकारी के अनुसार इस साल लोगों को मंहगा आलू खरीदने और खाने के लिए तैयार रहना
चाहिए।
आलू की दरों में
वृद्धि का सीधा असर लोगों की थाली के साथ ही साथ बच्चों पर भी पड़ने वाला है।
बच्चों पर इसलिए क्योंकि बच्चों के लुभावने पैकेट में बंद चिप्स भी आलू से ही
निर्मित होते हैं। अगर आलू की कीमतों ने उछाल मारी तो चिप्स की कीमतों में भारी
बढ़ोत्तरी से इंकार नहीं किया जा सकता है।
इन संघों ने आशंका
जतलाई है कि अगर दक्षिण भारत में पर्याप्त बारिश नहीं हुई तो इसका सीधा प्रभाव
दक्षिण भारत के दो आलू उत्पादक राज्यों कर्नाटक और आंध्र प्रदेश पर पड़ सकता है।
माना जा रहा है कि देश में कोल्ड स्टोरेज के अभाव के चलते आलू सड़ता रहा और लगभग
बीस फीसदी आलू की बर्बादी ने भाव तेज करने की ओर इशारा करना आरंभ कर दिया है। वैसे
कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के अलावा आलू उत्पादन में उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा जैसे सूबे
महती भूमिका निभाते हैं।
एक अनुमान के
अनुसार देश भर में 220 लाख टन
आलू का भण्डारण कोल्ड स्टोरेज में किया जाता है। इनमें सर्वाधिक 89 लाख टन उत्तर
प्रदेश में, 50 लाख टन
पश्चिम बंगाल में,
16 लाख टन पंजाब तो 10 लाख टन बिहार में किया जाता है।
उधर, सरकारी सूत्रों ने
समाचार एजेंसी ऑफ इंडिया को बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब तक मॉनसून की
कम वर्षा को देखते हुए अनाज के भण्डार की स्थिति की समीक्षा करना आरंभ कर दिया है।
खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद पत्रकारों को बताया कि
उन्होंने अनाज की स्थिति, कम वर्षा, निर्यात, खरीद और सार्वजनिक
वितरण प्रणाली को आध्ुानिक बनाने जैसे मुद्दों पर बातचीत की। उन्होंने बताया कि इन
सभी मुद्दों की १५ दिन बाद फिर समीक्षा की जाएगी। भारत में मॉनसून की वर्षा अब तक
२१ प्रतिशत कम रही है। खासतौर पर कर्नाटक और मध्य महाराष्ट्र में स्थिति चिंताजनक
है। कम वर्षा के कारण खरीफ फसलों, मुख्य रूप से धान, दलहन, तिलहन और मोटे
अनाजों की बुआई पर असर पड़ा है।
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