नये राज्य से खुलेंगे विकास के द्वार
विदर्भ के निर्माण की मांग के समर्थन
में आगे आये महाकौशल का प्रस्तावित संभाग
(ब्यूरो कार्यालय)
सिवनी (साई)। आंध्रप्रदेश में पृथक
तेलंगाना की मांग पूरी होने के साथ ही देश भर में नये प्रदेशों के निर्माण की मांग
सम्बंधी जो आंधी चली है शायद वह इस अभागे और पिछड़े क्षेत्र के विकास में सहायक
साबित हो सकती है। ज्ञातव्य है कि नये राज्यों की मांग के सिलसिले में महाराष्ट्र
की उत्तरी सीमा में फैले लगभग एक दर्जन जिलों को मिलाकर नये विदर्भ प्रांत के गठन
की मांग भी शामिल है।
यह सर्वविदित है कि प्रस्तावत विदर्भ
राज्य की सीमा मध्यप्रदेश के जबलपुर संभाग के उन तीनों जिलों सिवनी, छिंदवाड़ा और बालाघाट को छूती हैं
जिन्हें मिलाकर नये संभाग के गठन की घोषणा प्रदेश के मुखिया द्वारा पांच साल पहले
की गयी थी किंतु इन पांच सालों में वह घोषणा पांच कदम भी आगे नहीं बढ़ पाई।
नये प्रदेश के गठन और उसमें तीनों जिलों
के शामिल होने की बात न तो कोरी कल्पना है, न असंभव और न ही मजाक। आधी सदी पहले तक
सिवनी छिंदवाड़ा और बालाघाट जिले सी पी एण्ड बरार नामक उस ही प्रदेश के अंग थे
जिसकी राजधानी नागपुर थी। राज्यों के पुनर्गठन के समय 1957 में उस प्रदेश के दो
भाग कर सी पी अर्थात मध्यप्रांत को नवगठित मध्यप्रदेश में और बरार अर्थात विदर्भ
को नये महाराष्ट्र राज्य में शामिल कर दिया गया।
मध्यप्रांत के साथ ही मध्यप्रदेश के
वर्तमान तीन और तत्कालीन दो जिले बालाघाट एवं छिंदवाड़ा भी नये मध्यप्रदेश का
हिस्सा बन गय थे। स्मरणीय है कि उस समय तक सिवनी जिले का अस्तित्व नहीं था बल्कि
यह छिंदवाड़ा जिले की एक तहसील मात्र थी। नवगठित प्रदेश की राजधानी भोपाल है जिसकी
दूरी बालाघाट से 500 कि.मी. सिवनी से 400 कि.मी. और और छिंदवाड़ा से 325 कि.मी. है।
इसके विपरीत पुराने प्रदेश की राजधानी
और प्रस्तावित विदर्भ प्रदेश की राजधानी नागपुर की उपरोक्त तीनों ही जिलों से दूरी
सवा सौ कि.मी. से अधिक नहीं है। यह भी सभी लोग भलीभांति जानते हैं कि इन तीनों ही
जिलों के लोगों का व्यावसायिक, शैक्षणिक, सामाजिक और विशेषकर चिकित्सकीय सम्बंध
अभी भी सबसे अधिक नागपुर से ही है। बालाघाट जिले का अधिकांश भूभाग, सिवनी जिले का दक्षिणी सीमांत क्षेत्र
और छिंदवाड़ा जिले का एक तिहाई भाग महाराष्ट्र खासकर विदर्भ की संस्कृति से
अत्याधिक प्रभावित है जहां की बोलचाल में भी उस संस्कृति का प्रभाव साफ नजर आता
है।
ऐसी स्थिति में यदि केंद्र सरकार नये
प्रदेशों के गठन पर नये सिरे से विचार करना प्रारंभ करती है तो प्रस्तावित संभाग
के तीनों जिलों के राजनेताओं को इस पिछड़े क्षेत्र के उत्थान के लिये विदर्भ प्रदेश
में सम्मिलित होने के लिये सयंुक्त रूप से प्रयास करना चाहिये। यह सर्वविदित है कि
राजधानी के निकट होने का लाभ राजनेताओं और आम नागरिकों को मिलता है। हमेशा राजधानी
के निकट वाले क्षेत्रों के विकास को पंख लग जाते हैं जबकि दूरस्थ क्षेत्र विकास
में हमेशा पिछड़े रहते है। जैसा कि अभी प्रस्तावित संभाग के तीनों जिलों के विकास
के साथ हो रहा है।
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