डा० निशंक के सामने कांग्रेसी की तैयारियां व रणनीति शून्य
(चन्द्रशेखर जोशी)
(चन्द्रशेखर जोशी)
देहरादून। भाजपा हाईकमान ने उत्तराखण्ड के मामले में स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व आधार पर लडे जाएंगे, इसके बाद ही नेता की भूमिका तय होगी। परन्तु कांग्रेस में चुनाव लडने के बारे में कोई रणनीति तैयार नहीं की गयी है। अब कांग्रेस का हर प्रादेशिक क्षत्रप स्वयं को मुख्यमंत्री मानकर चल रहा है। जिससे उत्तराखण्ड में हर आम कांग्रेसी यह मानने में कतई नहीं हिचक रहा है कि कांग्रेस द्वारा चुनावी रणनीति की कोई तैयारी नहीं की जा रही है, सब कुछ हवा में हैं तथा मात्र निशंक को कोसने तक सीमित है।
वहीं जनता का यह मानना है कि कांग्रेस के जिस नेता को देखो वह डा० निशंक को कोसने मात्र तक सीमित है। उनकी अपनी उपलब्धि शून्य है। हरीश रावत की मुख्य चिंता यह है कि अपने पुत्र को युवा कांग्रेस में अध्यक्ष पद दिलवाने के बाद अब पुत्री को कैसे विधायक बनाया जाए, इसके बाद फिर स्वयं कैसे मुख्यमंत्री बना जाए। इस तरह हर कांग्रेसी नेता व्यक्तिगत गुणा भाग में उलझा है, उसको सूबे की नहीं स्वयं की चिंता ज्यादा सता रही है कि वह कैसे मुख्यमंत्री बन सके। देहरादून में २८ मई को एक कार्यक्रम में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस के विकास खोज मार्च में कांग्रेस नेता हरीश रावत की पुत्री ने राज्य सरकार को कोसा।
कई कांग्रेसी नेताओं ने स्वीकार किया है किं उत्तराखण्ड में कांग्रेस अंदरखाने डरी हुई है। उत्तराखण्ड में जमीन से जुडे कई नेताओं का यह मानना है कि डा० निशंक की जिस तरह से तैयारी व रणनीति तैयार की जा रही है, कोई शक नहीं कि वह विधानसभा चुनाव में भाजपा को रिपीट करवा दें और शह आंकडा एकाध कांग्रेसी नेता या किसी शहर विशेष के कांग्रेसियों का नहीं है, अपितु हमारी टीम ने अनेक शहरों में जमीन से जुडे अनेक कांग्रेसी नेताओं से राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भूमिका के बारे में बात की, जिस पर यह तथ्य निकल कर आया कि डा० निशंक के सामने कांग्रेसी की तैयारियां व रणनीति शून्य है। यही हाल रहा तो डा० निशंक के नेतृत्व में भाजपा रिपीट कर सकती है।
जनता का यह मानना है कि उत्तराखण्ड में मुख्यमंत्री डा० निशंक का करिश्माई नेतृत्व उभर कर सामने आया है, सूबे में अनेक मोर्चो पर डा० निशंक को घेरने की रणनीति बनाने के बावजूद वह अपने कार्यो से डिगे नहीं है। देखा जाए तो एक सफल राजनीतिक के जो गुण मुख्यमंत्री में होने चाहिए वह इस समय सूबे के किसी भी दल के राजनीतिज्ञ में नहीं हैं। आज डा० निशंक हर आम व खास से जिस तरह मिल रहे हैं, उनको तवज्जो दे रहे हैं, क्या यह गुण अन्य किसी में हैं, अपनी कई तरह की दुर्बलता ही उनको उत्तराखण्ड की जनता से दूर कर देती है। वहीं डा० निशंक में क्या कमी है, आज तक ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया है।
इसके अलावा गांधी की तरह सत्याग्रह यात्रा करना उत्तराखण्ड में कांग्रेस को भीड़ ना जुटा पाने के कारण फायदे का सौदा होता नही दिख रहा। गुटो में बटे कांग्रेसी प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्या की मुहिम को झटका लगाने की साजिश में लगे हुए है और यही कारण है कि गढ़वाल के बड़े नेताओ का कुमाउ में चल रही सत्याग्रह यात्रा में दूर दूर तक अता पता नही था। अकेले प्रदेश अध्यक्ष ही यात्रा को सफल बनाने में लगे हुए थे जबकि गढ़वाल के ऐसे नेता जो लगातार प्रदेश अध्यक्ष के इर्द गिर्द डेरा लगाए रहते थे वह कुमाउ में सत्याग्रह यात्रा के दौरान कही भी नजर नही आए जिससे कांग्रेस की कलह खुलकर पूरी तरह जनता के बीच आ गई है।
यात्राओ में कुछ स्थानो पर इतनी कम भीड़ एकत्र हुई जिसने कांग्रेस को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि सत्याग्रह यात्राएं जनता के बीच अपनी कोई खास पकड़ नही बनाती हुई नजर आ रही। कांग्रेस सत्याग्रह यात्रा के माध्यम से उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार के खिलाफ जनआन्दोलन इक्ठ्ठा करना चाहती थी लेकिन प्रदेश की जनता ने कांग्रेस का साथ नही दिया। तीन चरणो की सत्याग्रह यात्रा को निपटा चुके कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अपने ऐसे नेताओ से बेहद दुखी हैं जो कुमाउ में सत्याग्रह यात्रा के दौरान कही भी नजर नही आए। भले ही प्रदेश अध्यक्ष इस बात को सार्वजनिक मंच पर उजागर ना करना चाहते हो लेकिन वह इससे बेहद नाराज है कि जिन्होने सत्याग्रह यात्रा को शुरू करने का ढोल तो जोर शोर से पीटा और बाद में कदम पीछे खींच लिए। कुमाउ में सत्याग्रह यात्रा के दौरान विजय बहुगुणा व सतपाल महाराज भले ही नजर आए हो लेकिन सांसद हरीश रावत किसी भी सत्याग्रह यात्रा में अभी तक नजर नही आए हैं। जिससे माना जा रहा है कि अभी भी कांगेस में याशपाल आर्या व हरीश रावत के बीच छत्तीस का आंकड़ा जारी है।
इससे पूर्व नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत व प्रदेश अध्यक्ष के बीच भी छत्तीस का आंकड़ा रहा है और हरीश रावत यशपाल आर्या के किसी भी कार्यक्रम में खुलकर नजर नही आए हैं। इसके अलावा हरक सिंह रावत भी यशपाल आर्या से दूरी बनाकर चल रहे हैं और इससे पूर्व भी प्रदेश अध्यक्ष के अलावा वह अपने कई ऐसे कार्यक्रम कर चुके हैं जिससे दोनो में गुटबाजी होने को बल मिलता ळै। कांग्रेस में चल रही अन्र्तकलह पूरी तरह खुलकर नजर आ रही है और इसी का कारण है कि हरिद्वार में जिला पंचायत के चुनाव में बाजी बसपा के हाथो चली गई क्योकि हरिद्वार में हरीश रावत अपने किले को बचाना चाहते थे लेकिन प्रदेश अध्यक्ष ने इस सीट पर कोई तवज्जो ना देते हुए कोई ध्यान नही दिया जिसका नतीजा जिला पंचायत के चुनाव में कांग्रेस को हार के रूप में देखने को सामने आया।
लोकसभा की पांचो सीटे जीतने के बाद कांग्रेस के बड़े नेता अपनी अपनी गुटबाजी में उलझकर रह गए हैं और एनडी तिवारी के शासन काल में जहां कांग्रेस में हरीश रावत व एनडी तिवारी गुट हुआ करते थे वहीं वर्तमान में सतपाल महाराज, विजय बहुगुणा, हरक सिंह रावत, हरीश रावत, यशपाल आर्या गुट हो गए हैं। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी चैधरी वीरेन्द्र सिंह भले ही गुटबाजी को कम करने के लिए अनुशासन का डंडा उठाए दौड़ रहे हो लेकिन उत्तराखण्ड में कांग्रेस में उपजी गुटबाजी को खत्म नही किया जा सकता। गुटबाजी का दंश कांग्रेस की सत्याग्रह यात्रा मे तो खुलकर सामने आ गया है और यशपाल आर्या की मुहिम को उनके विरोधी धक्का लगाने में जुट गए हैं जिससे कांग्रेस कमजोर ििस्थ्त में आ गई है । भले ही कांग्रेसी नेता सत्याग्रह यात्रा को सफल बता रहे हो लेकिन दबी जुबान से कांग्रेस के ऐसे नेता जो जमीनी पकड़ रखते हैं इसे फ्लाॅप साबित कर रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस की सत्याग्रह यात्रा गुटबाजी की भेंट चढ़ गई है। अब देखना यह होगा कि चैथे चरण की शरू होने वाली 31 मई की यात्रा अब गढ़वाल में अपना क्या रंग दिखाती है।
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