सुनाई देने लगी ‘आपातकाल‘ की पदचाप
(लिमटी खरे)
देश की आजादी के वक्त आजादी के परवानों और महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेताओं ने इक्कीसवीं सदी में भारत की जो कल्पना की होगी, भारत गणराज्य उससे एकदम ही उलट नजर आ रहा है। गरीब और अधिक गरीब तो अमीर की तिजोरी इतनी भर चुकी है कि उसका मुंह बंद नहीं हो पा रहा है। कांग्रेस की नाक के नीचे जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के लाखों करोड़ों रूपयों की होली खेली जा रही है, पर कांग्रेस नीत कंेद्र सरकार आखें बंद कर बैठी है। ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ‘ का नारा देने वाली कांग्रेस की पोल अब खुलने लगी है। हालात देखकर लगने लगा है कि कांग्रेस को अपना नारा बदलकर ‘कांग्रेस का हाथ आम आदमी की गर्दन के साथ‘ कर देना चाहिए। बाबा रामदेव और उनके समर्थकों के साथ रामलीला मैदान पर जो भी हुआ उससे भान होने लगा है कि आने वाले समय में आपतकाल लागू होजाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
देश की जनता घपले, घोटाले और भ्रष्टाचार से पूरी तरह आजिज आ चुकी है। चूंकि कानून में बदलाव का हक संसद, विधानसभा, सांसदों और विधायकों को ही होता है इसलिए आम जनता अपने आप को निरीह, निर्बल, मजबूर ही महसूस कर रही है। जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी के द्वारा देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था, हालात कुछ उसी तरह के बनते नजर आ रहे हैं। उस वक्त श्रीमति इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष तो उनके पुत्र संजय गांधी कांग्रेस के महासचिव हुआ करते थे। कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, आज कांग्रेस अध्यक्ष की आसनी पर इंदिरा गांधी के बजाए उनकी इटली मूल की बहू श्रीमति सोनिया गांधी तो महासचिव के पद पर संजय गांधी के भतीजे राहुल गांधी विराजमान हैं।
सोनिया की चाटुकार मण्डली में भी इंदिरा गांधी की कोटरी का अक्स ही दिखाई दे रहा है। उस वक्त प्रकाश चंद सेठी और नारायण दत्त तिवारी के जो स्वर थे वही तल्खी और स्वामीभक्ति राजा दिग्विजय सिंह के सुरों में दिखाई दे रही है। आपात काल में जिस तरह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई थी, वही हालात आज भी दिख रहे हैं। सरकार का विरोध करने पर अन्ना हजारे के बाद अब रामदेव बाबा को आम ‘चोर‘ की तरह पकड़ा जाना निंदनीय है।
रामलीला मैदान में 4 और 5 जून की दरमयानी रात को जो रावण लीला हुई उससे देश दुनिया का हर नागरिक हतप्रभ है। कांग्रेस के इशारे पर पुलिस की बर्बरता से साफ हो गया है कि लोकतंत्र की स्थापना करने वाली कांग्रेस की वर्तमान पीढ़ी को अब लोकतंत्र पर विश्वास नहीं रहा। आज के हालात देखकर लगने लगा है मानो भारत गणराज्य में ‘हिटलरशाही‘ हावी होती जा रही है। अगर कोई सरकार या तंत्र के खिलाफ बोलने का साहस जुटाता है तो उसे मिटाने के लिए राजनेता एड़ी चोटी एक कर देते हैं।
आजादी के उपरांत 1975 में जय प्रकाश नारायण ने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी के कदमों से त्रस्त जनता को उस जंगल राज से मुक्ति दिलाने के लिए आंदोलन छेड़ा और इंदिरा गांधी से त्यागपत्र मांग लिया। जेपी की यह कथित घ्रष्टता इंदिरा गांधी और संजय गांधी को इतनी नागवार गुजरी कि उसी वक्त देश में आपातकाल लगा दिया गया। सरकार का विरोध करने वालों को तरह तरह की यातनाएं देकर जेल मंे बंद कर दिया गया था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सदस्यों को मीसा में बंद कर जिस तरह की अमानवीय यातनाएं दी थीं, उसे याद कर आज भी मीसाबंदियों सिहर उठते हैं।
रामलीला मैदान में भी कांग्रेस नीत कंेद्र सरकार द्वारा ने कमोबश यही कदम उठाया है। आधी रात को चोरों की तरह जाकर बाबा रामदेव को पकड़ने और शांति पूर्वक अनशन करने वालों के खिलाफ लाठियां भाजनें का ओचित्य किसी को समझ नही आ पाया है। महिलाओं और उनके साथ आए बच्चों को भी पुलिस ने अपना निशाना बनाया। सवाल यह है कि आखिर एसी कौन सी आफत आ गई थी सरकार को अंधेरी रात में इस तरह के कदम उठाने पर मजबूर होना पड़ा।
देश की सवा करोड़ जनता प्रधानमंत्री डाॅ.मनमोहन सिंह से इस बात का उत्तर अवश्य चाह रही है कि अगर देश में वाकई लोकतंत्र बचा हुआ है, तो वे इस बात का जवाब अवश्य ही दें कि आखिर क्या वजह थी कि बाबा रामदेव को पकड़ने और अनशनकारियों पर अश्रु गैस और लाठियां भांजने के लिए दिन होने का इंतजार नहीं किया गया? क्या कारण था कि सोते निर्दोष लोगों को बेतहाशा पीटा गया? क्या यही लोकतंत्र की परिभाषा है? क्या यही नेहरू और महात्मा गांधी के सपने के भारत के शासक हैं? इसे तो सोनिया और राहुल के शासन के प्रजातंत्र का नमूना कहा जा सकता है।
यह तो वाकई उपर वाले का शुक्र मनाना चाहिए कि चार और पांच जून की दर्मयानी रात को रामलीला मैदान में पुलिसिया कहर के बावजूद भी कोई अनहोनी नहीं घटी, वरना हालात संभालना मुश्किल हो जाता। देश के चेहरे पर भ्रष्टाचार, घपले, घोटालों के साथ ही साथ कुछ इस तरह के दाग भी लग जाते जिन्हें धोने में सालों साल का समय भी कम पड़ जाता। बाबा रामदेव के साथ ‘डीलिंग‘ करने में सरकार द्वारा जो तरीका अपनाया गया, वह अपने आप में इस बात को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि बाबा रामदेव के अनशन से सरकार किस कदर खौफजदा है।
उधर बाबा रामदेव इस आंदोलन की सफलता से फूले नहीं समा रहे हैं। बाबा का कहना है कि अगर आंदोलन तीन दिन चल जाता तो सरकार गिर जाती? हो सकता है बाबा की बात में दम हो, किन्तु बाबा को इस तरह का अहम नहीं पालना चाहिए। पहले भी मीडिया ने बाबा रामदेव का अनेक बार साक्षात्कार में भी उनका अहम छलका है। बाबा ने संवाददाताओं को ही डामीनेट करने के हथकंडे भी अपनाए। कहा जाता है कि ‘अहम‘ में से ‘अ‘ को अलग कर दिया जाए तो बाकी बचता है ‘हम‘।
केंद्र सरकार के इस तरह के कदम के उपरांत देश की सबसे बड़ी अदालत ने खुद संज्ञान लिया है। जस्टिस स्वतंत्र कुमार और जस्टिस बी.एस.चैहान की पीठ ने केंद्र सरकार के गृह सचिव, दिल्ली सरकार के गृह सचिव और पुलिस आयुक्त दिल्ली को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब तलब किया है। इस मामले की अगली सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में की जाएगी। एक याचिका कर्ता अधिवक्ता अग्रवाल के अनुसार कोर्ट ने उनकी अपील दाखिल करने के साथ ही कहा कि न्यायालय इस मामले में खुद ही स्वमोटिव नोटिस ले रहा है। कोर्ट खुद भी समाचार पत्र की कतरनों और विजुअल्स देखकर सन्न रह गया है। कोर्ट ने इस मामले को बेहद संगीन माना है।
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