यह है सागर में मनरेगा का हाल सखे
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को सागर जिले में क्रियान्वित हुए ढाई साल पूरे हो गये। योजना का क्रियान्वयन कैसा हो रहा है, यह इस बात पर निर्भ्।र है कि उसमें अधिकारियों की रुचि कैसी है। मगर दुर्भाग्य है कि सागर जिले में मनरेगा प्रशासनिक दुर्गति का श्ंिाकार है। मनरेगा स्कीम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र में निवासरत ग्रामीण परिवारों के वयस्क व्यक्तियों को ,जो अकुशल मानव श्रम करने को तैयार हैं ,एक वित्तीय वर्ष में एक परिवार को कम से कम सौ दिवस का रोजगार उपलब्ध कराकर आजीविका सुनिश्चित करना एवं ग्रामीण क्षेत्रों में स्थाई परिसम्पत्तियॉं सृजित करना है।
मनरेगा स्कीम अन्तर्गत एक वित्तीय वर्ष में सौ दिन का रोजगार प्राप्त करने के लिए एक परिवार पात्र है। सौ दिन के रोजगार की उपलब्धता को परिवार में निवासरत समस्त वयस्क व्यक्तियों के बीच विभाजित करने का प्रावधान स्कीम में है। पता ही है कि सागर जिले में स्कीम लागू होने के शुरुआती दौर में ग्राम पंचायत स्तर पर किए जाने वाले कार्यो के सेल्फ ऑफ प्रोजेक्ट बनाये गये। और यहीं से भ्रष्टाचार करने की शुरुआत भी हो गई। मसलन, मनरेगा के अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि गॉवों में ऐसे निर्माण कार्य ही कराये जायें, जिनमें ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने पर 60 प्रतिशत राशि खर्च हो और कार्य में लगने वाली निर्माण सामग्री पर 40 प्रतिशत राशि लगे। मगर उक्त प्रावधान की खुलेआम धज्जियॉ उढ़ाकर लगभग प्रत्येक ग्राम पंचायत में सीमेन्ट-कॉंक्रीट रोड शामिल कर लिए गये। चूॅकि ग्राम पंचायत को 5 लाख रुपये तक के कार्य स्वीकृत करने का अधिकार है, अतः सीमेन्ट- कॉंक्रीट रोड के एस्टीमेट 4लाख 98हजार रुपये के बनाये गये।
यह महज संयोग नहीं कि जिले की लगभग सभी ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत 4.98 लाख रुपये के सीसी रोड मंजूर किये गये। बात साफ है कि 4.98 लाख रुपये का एक एस्टीमेट बनाकर जिले के सभी 11 ब्लाक में उसकी फोटोकापी बॉट दी गई। सीसी रोड में मजदूरी पर कम और सामग्री पर ज्यादा खर्च आता है। सीसी रोड निर्माण में ठेकेदार या सरपंच को कैसी कमाई है, यह जगजाहिर है। आशय यह कि मनरेगा की नेक मंशा में छेद कर भ्रष्टाचार की राह निकालने की शुरुआत सेल्फ ऑफ प्रोजेक्ट में सीसी रोड जैसे कार्यो को शामिल कर हुई। भ्रष्टाचार का यह प्रशासनिक पक्ष है, जो जिला कलेक्टर और जिला पंचायत के तत्कालीन सीईओ की संलिप्ता के बगैर संभव नहीं था।
गौरतलब है कि मनरेगा स्कीम में एक वित्तीय वर्ष में एक परिवार को सौ दिन का रोजगार पाने की पात्रता है। यानि किसी परिवार में दस वयस्क सदस्य हैं और उनमें से जो रोजगार की मॉंग करते हैं, उनमें प्रत्येक व्यक्ति को नहीं, बल्कि सबको जोडकर सौ दिन का रोजगार दिया जायेगा। यहॉ मनरेगा के बेरोजगारी भत्ते ने गॉव वालों की नीयत खराब कर दी। स्कीम आते ही यह बात जोरों से प्रचारित हो गई थी कि मनरेगा में जिन्हें रोजगार नहीं मिल पायेगा, उन्हें बेरोजगारी भत्ता मिलेगा। इसे समझें कि अगर दस वयस्क व्यक्तियों का एक संयुक्त परिवार है तो उसे सौ दिन का रोजगार मिलेगा और अगर दो लोगों का परिवार है तो उसे भी सौ दिन का रोजगार मिलेगा, नहीं तो बेरोजगारी भत्ता है ही। इस तरह अधिक रोजगार और अधिक बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए दस वयस्क व्यक्तियों के संयुक्त परिवार ने अलग-अलग पॉच परिवार दर्शते हुए पॅाच जॉबकार्ड बनवा लिए। जबकि वे एक ही घर में रह रहे हैं और एक ही चूल्हे पर उनका संयुक्त भेजन बनता है। उधर तीसरी चालाकी अधिकॉश सरपंच और पंचायत सचिवों ने की कि फर्जी जॉबकार्ड बनवाकर अपने कब्जे में कर लिए। ताकि उनके नाम पर मस्टर भरकर रकम हडपी जा सके।
ष्टाचार और नीयत का खोट भरी उक्त चालाकियों से मीडिया में लगातार जो खबरें सामने आई हैं, उनका सार यह है कि निगरानी की चाक-चौबंद व्यवस्थाओं के बावजूद निर्माण कार्यो की गुणवत्ता ठाक नहीं है। जो लोग गॉव में है ही नहीं, उनके फर्जी जॉबकार्ड पर मस्टर भरकर शासकीय धन का गवन किया गया है। निर्माण कार्यो में सामग्री पर अधिक और रोजगार देने पर कम राशि खर्च की गई है। जिन लोगों से मजदूरी कराई गई उसका भुगतान नहीं किया गया या फिर निर्धारित अवधि से काफी विलम्ब से भुगतान हुआ। रोजगार देने के फर्जी मस्टर बनाये गये और सामग्री खरीद के फर्जी बिल। यहॉ एक और बात सामने आई कि सरपंच व पंचायत सचिव ने अपने परिजनो तथा चहेतों के जॉबकार्ड भरकर रकम निकाली अथवा उन्हें अधिक काम दिया। दूसरी बात यह कि लोगों से कार्य कराये बगैर उन्हें कुछ रुपये देकर उनके जॉगकार्ड व मस्टर में रोजगार दर्ज कर रकम हडपी गई।
हैरत की बात यह कि उपरोक्त कारगुजारियॉ मनरेगा के कानून में गुणवत्ता, निगरानी और मूल्यॉंकन की चाकचौबन्द व्यवस्था किये जाने के बाद हो रही है। मसलन, योजना अन्तर्गत राज्य एवं जिला स्त्र पर क्वालिटी मानिटर्स को यह सुनिश्चित करना है कि कार्यो की गुणवत्ता निर्धरित मापदण्डों क अनुरुप हो।
योजना की निगरानी हेतु जिला, जनपद और ग्राम पंचायत स्तर पर जिम्मेदारी तय की गई है। ग्राम सभा को यह दायित्व सौंपा गया है कि ग्राम पंचायत द्वारा कराये जाने वाले कार्यो का सतत निरीक्षण करे। कराये गये कार्यो का सामाजिक अंकेक्षण करे। जनपद पंचायत का यह दायित्व है कि वह जनपद स्तरीय कार्यो का सतत निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण करे। यही जिम्मेदारी जिला पंचायत को दी गई है।
उल्लेखनीय है कि मनरेगा स्कीम में कलेक्टर को जिला कार्यक्रम समन्वयक तैनात किया गया गया है। जिन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वे योजना के क्रियान्वयन की पाक्षिक समीक्षा करेंगे, अधीनस्थ कर्मचारियों को समुचित निर्देश देंगे। मगर उपरोक्त स्तर पर कोई भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं कर रहा। जिस कारण गजरुरतमंद ग्रामीणों को गॉव में ही रोजगार उपलब्ध कराने की एक महत्वपूर्ण योजना भ्रष्टाचार करने का जरिया बनकर रह गई है।
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