मंगलवार, 28 जून 2011

क्या उमा का फरमान मानेगी भाजश?


क्या उमा का फरमान मानेगी भाजश?

संशय में हैं भाजश के पांचों विधायक

उमा के निर्णयों से नाराज हैं कार्यकर्ता

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में जनाधार के साथ भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाने वाली भारतीय जनशक्ति पार्टी के 29 जून को दिल्ली में भाजपा में विलय की तैयारियां तो आरंभ हो गई हैं किन्तु उमा की यह कोशिश परवान चढ़ पाएगी इसमें संशय ही लग रहा है। भाजश के पांचों विधायक किस शर्त पर भाजपा में शामिल होंगे इस बारे में अभी खुलासा नहीं हो सका है। विधायकों को यह चिंता भी सताए जा रही है कि कहीं अगली बार उनका टिकिट ही न काट दिया जाए!

गौरतलब है कि भाजपा से बाहर का रास्ता दिखाने के बाद उमा भारती ने हाशिए में जाने से बचने की गरज से भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया था। उस समय भाजपा से नाता तोड़ने वाले मदन लाल खुराना, प्रहलाद सिंह पटेल, संघ प्रिय गौतम ने भाजश को थामा और मध्य प्रदेश में इसका जनाधार बढ़ाया। भाजपा में वापसी के लिए लालायित उमा भारती ने लोकसभा चुनावों के दौरान भाजश को अचानक ही अखाड़े से बाहर कर सभी को चौंका दिया था। इसके बाद वे टीकमगढ़ से खुद भी विधानसभा चुनावों में चारांे खाने चित्त गिर गईं थीं। बाद में युवा तुर्क प्रहलाद पटेल की भाजपा में सम्मानजनक वापसी हो गई और उन्हें असंगठित मजदूर संगठन का नेशनल प्रेजीडेंट बना दिया गया।

भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी ने अध्यक्ष बनते ही पार्टी छोड़कर गए नेताओं की घर वापसी की मुहिम आरंभ की। इसी के तहत जसवंत सिंह, प्रहलाद पटेल और खुराना के भाजपा में वापसी के मार्ग प्रशस्त हुए। इसके बाद उमा भारती के लिए गड़करी को एड़ी चोटी एक करनी पड़ी। मध्य प्रदेश के भाजपा नेता अब केंद्रीय नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं कि उमा की भाजश को एमपी में नेस्तनाबूत कर दिया जाए। भाजपा के चतुर सुजान नेता जानते हैं कि भाजश को छोड़कर जाने वाली उमा भारती के लिए भाजश के नेताओं को भाजपा में वापसी के लिए मनाना टेड़ी खीर ही साबित होने वाला है।

भाजश के विधायकों के बीच चल रही चर्चाओं के अनुसार बिना किसी से मशविरा किए उमा भारती ने भाजश के भाजपा में विलय की बात सोच कैसे ली, जबकि वे खुद आध्यात्मिक चिंतन के लिए काफी पहले ही भाजश को छोड़कर जा चुकी हैं। चर्चाओं के अनुसार इन पांच में से किसी एक विधायक को शिवराज सिंह चौहान द्वारा मंत्रीमण्डल में स्थान दिया जा सकता है, इसके अलावा निगम मण्डलों के माध्यम से भी विधायकों को लाल बत्ती से नवाजा जा सकता है। भाजश नेताओं के साथ सबसे बड़ी समस्या यह आ रही है कि अगर भाजश का भाजपा में विलय हो गया तो फिर वे भविष्य में भाजश का गठन नहीं कर पाएंगे, साथ ही अगले विधानसभा चुनावांे में अगर उनका टिकिट ही काट दिया गया तो उनकी राजनैतिक हत्या हो जाएगी।

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