फेरबदल तय करेगा मनमोहन और सोनिया का कद
सत्ता और संगठन में टकराव के चलते अहम है फेरबदल पर नजर
सोनिया को किनारे करने की तैयारियों में मनमोहन मण्डली
प्रणव का उप प्रधानमंत्री बनना तय
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में जल्द ही जो होगा वह किसी ने सोचा भी नहीं होगा। संसद के सत्र के पहले संभावित मंत्रीमण्डल फेरबदल से यह तय हो जाएगा कि मनमोहन और सोनिया में किसका कद बड़ा है? कांग्रेस के आला नेताओं के सामने यह बात साफ होकर उभर जाएगी कि सोनिया अब भी ताकतवर बची हैं या उन्होंने मनमोहन सिंह के सामने घुटने टेक दिए हैं।
वैसे भी सरकार की गलत नीतियों और अपने पथ प्रदर्शकों (राजनैतिक सलाहकारों) की अदूरदर्शिता के चलते प्रभावित हुई अपनी छवि से सोनिया गांधी काफी निराश और हताश दिखाई दे रही हैं। अब वे सियासी बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रही हैं। इसका सीधा सीधा फायदा वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने उठा लिया है। कैबनेट के फेरबदल में मनमोहन सिंह अपने सलाहकार नंबर वन प्रणव मुखर्जी के साथ मिलकर एसा संदेश देंगे कि सत्ता का शीर्ष केंद्र 10 जनपथ नहीं वरन् 7 रेसकोर्स ही है, इसलिए अब कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सोनिया के दरबार में हाजिरी लगाना छोड़ दें।
उधर चतुर सुजान प्रणव मुखर्जी अपने विरोधियों के शमन के लिए भी मनमोहन का इस्तेमाल करना चाहेंगे। मुखर्जी को गृह मंत्री पलनिअप्पम चिंदम्बरम फूटी आंख नहीं सुहाते हैं। इस लिहाज से उनकी कुर्सी हिलना तय है। उप प्रधानमंत्री बनने के बाद विभाग चुनने की उन्हें आजादी होगी। कहा जा रहा है कि उप प्रधानमंत्री बनने के बाद वित्त, विदेश या गृह विभाग उनकी प्राथमिकता में ही होगा। प्रणव अगर चाहेंगे तो योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को वित्त मंत्रालय की कमान दी जा सकती है। उद्योग लाबी प्रणव को अतिरूढ़ीवादी मानती है और वह प्रणव की वित्त मंत्रालय से रूखसती चाह रही है।
गृह मंत्रालय का भार कपिल सिब्बल, गुलाम नवी आजाद में से किसी को दिया जा सकता है। अंत में अगर दोनों में से किसी पर सहमति नहीं बनी तो फिर एस.एम.कृष्णा को यह जवाबदारी दी जा सकती है। कानून मंत्री बनने के लिए गुलाम नवी आजाद गोटियां बिछा रहे हैं तो पीएम पवन कुमार बंसल को इस पर बिठाना चाह रहे हैं।
मध्य प्रदेश कोटे से आए कमल नाथ को रेल मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है। साथ ही चार बार राज्य सभा का सुख भोग चुके सुरेश पचौरी को पांचवी बार फिर राज्य सभा से भेजकर उन्हें संसदीय कार्य मंत्रालय की कमान सौंपी जा सकती है, किन्तु पचौरी की दस जनपथ में निष्ठा उनके आड़े आ सकती है। माना जाता है कि वे अहमद पटेल खाते में आते हैं। कांग्रेस के सियासी जानकार अब मंत्रीमण्डल फेरबदल पर नजरें टिकाए हुए हैं, ताकि इसके बाद वे अपनी नई निष्ठा की रणनीति तय कर सकें।
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