सिब्बल सही या सोनिया!
(लिमटी खरे)
कांग्रेस की अंदरूनी संस्कृति बड़ी ही अजीब है। कांग्रेस अध्यक्ष अपना राग मल्हार गाती हैं तो उनके कुनबे के अन्य लोग अपनी ढपली अपना राग बजाते रहते हैं। कहीं किसी पर कोई नियंत्रण नहीं है। कांग्रेस की नीति रीति और कांग्रेस के नताओं के बयान में जमीन आसमान का अंतर होता है। जब विवाद बढ़ता है तब कांग्रेस के प्रवक्ता अपना रटा रटाया जुमला ‘‘यह उनके निजी विचार हो सकते हैं।‘‘ कहकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। देखा जाए तो हर सियासी दल के पास अपने प्रवक्ताओं की फौज होती है, प्रवक्तओं के अक्षम होने पर दीगर नेताओं द्वारा बयानबाजी की जाना आम बात है। सवाल यह है कि अगर प्रवक्ता अक्षम है तो उन्हें शोभा की सुपारी बनाकर बिठाने का क्या तात्पर्य हो सकता है?
हाल ही में कांग्रेस के महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने महाराष्ट्र के एटीएस चीफ हेमंत करकरे से बातचीत पर सियासत गर्मा दी। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता इस मामले में अपना मुंह सिले रहे। हायतौबा मचने पर उन्होंने गेेंद एक बार फिर दिग्गी राजा के पाले में ढकेलकर वह सारी बयानबाजी को उनके नितांत निजी विचार बता डाले। जब दिग्गी राजा से पूछा गया कि उन्होंने करकरे से बातचीत के सबूत देने के लिए कांग्रेस मुख्यालय के बजाए कांस्टीट्यूशनल भवन का उपयोग क्यों किया? के जवाब में वे बोले क्या मैं कांग्रेसी नहीं हूं? अरे जनाब आपको कांग्रेसी मानने से इंकार करने की हिमाकत कौन कर सकता है। किन्तु कांग्रेस के उन प्रवक्ताओं को कौन समझाए जो कहे जा रहे हैं कि ये विचार कांग्रेस के नहीं दिग्विजय सिंह के निजी हैं।
बहरहाल अभी वह मामला ठंडा भी नहीं हुआ कि मानव संसाधन मंत्रालय का भारी भरकम प्रभार संभाले कपिल सिब्बल ने संचार मंत्री के बतौर नियंत्रक महालेख परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट को ही सिरे से खारिज कर दिया है। कितने आश्चर्य की बात है कि भारत गणराज्य के एक जिम्मेदार मंत्री होते हुए कपिल सिब्बल यह कह रहे हैं कि टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में 1.76 लाख करोड़ रूपए का नुकसान नहीं हुआ है। वे कहते हैं कि सरकारी खजाने को एक पैसे का भी नुकसान नहीं झेलना पड़ा है।
अगर सिब्बल सही हैं, तो फिर पूर्व दूरसंचार मंत्री ए.राजा को अपने पद से त्यागपत्र क्यों देना पड़ा और कपिल सिब्बल को दूरसंचार विभाग का नया मंत्री क्यों बनाया गया? क्या यह सच नहीं है कि राजा ने 2008 में नियमों को बलाए ताक रख 2001 की दरों पर 122 कंपनियों को लाईसेंस प्रदाय किया था? इसमें आरकाम, टाटा सहित जीएसएम आपरेटर्स को 6.2 मेगाहर्टज से अधिक का स्पेक्ट्रम उपलब्ध कराया गया था।
सिब्बल उवाच का सबसे अधिक असर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी पर पड़ेगा जो इन दिनों बजट सत्र के दौरान संसद को चलने देने के लिए विपक्ष के साथ मान मनौअल में जुटे हैं। विपक्ष के तरकश में सिब्बल का छोड़ा नया तीर आ चुका है। विपक्ष मांग कर सकता है कि जब सरकार खुद परोक्ष तौर पर मान चुकी है कि इसमें घपला हुआ है, तब सिब्बल की नई तान पर उनका त्यागपत्र लिया जाए।
अब तो सरकार और सोनिया गांधी की नीयत पर ही संदेह होना स्वाभाविक ही है। लागों को लग रहा था कि भले ही सरकार द्वारा जेपीसी की मांग स्वीकार न की जाए, पर इस मामले की ईमानदारी से जांच अवश्य ही करवाई जाएगी। इसी तारतम्य में जो भी तथ्य उभरकर सामने आएंगे उन्हें सरकार जनता के समक्ष रखेगी, किन्तु अब सिब्बल के इस बयान से तो लगने लगा है कि मानो कुछ हुआ ही नहीं है, बेचारे ए.राजा की नौकरी मुनाफे में ही चली गई।
वैसे कपिल सिब्बल का बयान दूरसंचार मंत्री की हैसियत से आया है, और उन्होंने कैग के प्रतिवेदन पर उंगली उठाई है। अगर सिब्बल सही हैं, तो फिर कैग जैसा ईमानदार संगठन भी भ्रष्टाचार के दलदल का एक नगीना बन गया है, और अगर एसा है तो फिर कैग की विश्वसनीयता ही नहीं रह जाती है। प्रधानमंत्री को चाहिए कि इसकी जांच अवश्य करवाएं वह भी टाईम फ्रेम में बांधकर। जांच में जो भी गलत साबित हो उसे जनता के सामने लाया जाए बिना किसी राजनैतिक नफा नुकसान को सोचे हुए, क्योंकि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ही इकलौती एसी संस्था बची है, जिस पर लोगों का भरोसा अभी तक कायम है। सीबीआई और केंद्रीय विजलेंस की कारगुजारियों से तो लोगों के मानस पटल पर इनका होना न होना बराबर ही माना जा रहा है। वैसे भी जब भारत गणराज्य के मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठा शख्स जब संवैधानिक संस्थाओं की ओर उंगली उठाएगा तो इससे इन संस्थाओं की साख में इजाफा तो होने से रहा।
हो सकता है कि सिब्बल को यह मशविरा दिया गया हो कि तमिलनाडू में जल्द ही विधानसभा चुनाव है और टूजी का मसला वहां स्थानीय स्तर पर उठापटक कर सकता हैै, इसलिए इस मामले के पटाक्षेप का प्रयास किया जाए। डीएमके के दबाव में आकर कांग्रेस किसी भी स्तर पर आ सकती है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है, किन्तु कांग्रेस को यह नहीं भूलना चाहिए कि गठबंधन धर्म के पहले कांग्रेस का राजधर्म है, जिसकी तह में देश की सेवा करना वह भी सच्चाई और ईमानदारी के साथ है।
पिछले साल ही स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से भारत के वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह ने कामन वेल्थ गेम्स के बारे में कहा था कि इसे राष्ट्रीय पर्व के तौर पर लेना चाहिए, प्रधानमंत्री बेहतरीन छवि के कारण उनकी अपील के बाद इसमें हुए भ्रष्टाचार पर चीत्कार कुछ कम हुआ। लोगों को लगा कि जल्द ही जांच हो जाएगी, किन्तु अब लोगों को लगने लगा है कि प्रधानमंत्री की अपील महज दिखावा ही थी। कांग्रेस को लगने लगा है कि देश का मीडिया और अन्य सियासी दल उनकी छवि के चलते खामोश रह सकते हैं। प्रधानमंत्री डॉ.मनमोहन सिंह को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है किन्तु उनकी छवि की कीमत पर भ्रष्टाचार, अनाचार, दुराचार कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता है।
पिछले कुछ माहों से कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी भी भ्रष्टाचार पर काफी संजीदा प्रतीत हो रही हैं। बार बार वे भ्रष्टाचार पर बोलती नजर आ रही हैं। सोनिया के इस स्वरूप से देश की जनता के मन में एक बार आस जगी थी कि हो सकता है कि सवा सौ साल पुराने सियासी दल द्वारा देश को आज आकंठ भ्रष्टाचार में दलदल में फंसाने के बाद उसका ही एक अध्यक्ष रहनुमा बनकर आया है, जो देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करा सकेंगी।
तीन चार सालों में सोनिया गांधी ने युवराज राहुल गांधी के साथ सादगी का प्रहसन किया। चाटुकार मीडिया ने उसे खूब हवा दी। कम ही ईमानदार पत्रकार होंगे जिन्होंने इस बात को रेखांकित किया होगा कि दिल्ली से मुंबई की सोनिया गांधी की यात्रा इकानामिक क्लास में अवश्य ही हुई किन्तु उनके लिए बीस सीट खाली रखी गईं थीं। इन बीस सीट का भोगमान किसने भोगा, यह बात आज भी किसी को नहीं पता।
इसी तरह युवराज राहुल गांधी ने शताब्दी में यात्रा की। यात्रा के लिए पूरी की पूरी एक बोगी बुक करवा दी गई थी। आलम यह था कि उसके आगे और पीछे के डिब्बे वाले यात्री एक दूसरे के डिब्बे में नहीं जा पा रहे थे। यह थी कांग्रेस की नजर में देश के भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी की सादगी की नौटंकी। मंदी के दौर में मंत्रियों ने पांच सितारा होटलों में रातें रंगीन की, वह भी सरकारी खर्चे पर। न तो प्रधानमंत्री डॉ.एम.एम.सिंह, न सोनिया गांधी, न वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने आज तक यह पता कर जनता को बताने का प्रयास किया है कि उन होटलों का बिल किस मद से किसने भुगतान किया है?
कुल मिलाकर नब्बे के दशक की गूंगी गुडिया कही जाने वाली कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को भी सियासी कीचड़ के रंगे हुए सियारों ने अपनी तरह ही बना लिया है। रही राहुल गांधी की बात तो राहुल का भी इसी दिशा में प्रशिक्षण जारी है। सच ही कहा है किसी ने देश में जनसेवक खाएंगे मोती और उन्हें चुनने वाली जनता खाएगी दाना।
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