जिला चिकित्सालय बना चिकित्सकों की
जागीर
(श्रीकांत बर्वे)
सिवनी (साई)। अच्छी खासी, प्रतिमाह मोटी तनख्वाह सहित अन्य
सुविधाओं के बावजूद जिला चिकित्सालय में पदस्थ डॉक्टर सरे-आम शासन और मुख्यमंत्री
के दिशा निदेंशों की धज्जियॉं उड़ाने में कोई कोर कसर न छोड़, अपने-अपने निजि चिकित्सकीय व्यवसाय में
डूबे हुए हैं।
इंदिरा गॉंधी जिला चिकित्सालय में पदस्थ सभी
सरकारी डॉक्टर अपनी-अपनी निजि क्लिनिक खोल-कर बैठे हैं। बताया जाता है कि ये
डॉक्टर सरकारी अस्पताल में अपनी नौकरी की मात्र खानापूर्ति कर रहे हैं। सरकारी
डॉक्टर अस्पताल के निर्धारित समय पर (विलंब से आकर), चंद मरीजों को आनन-फानन में देख, समय से पूर्व ही अपने गंतव्य निजि
चिकित्सालयों में जा बैठते हैं। मरीजों की लंबी कतार बगैर जॉंच के खड़ी की खड़ी रह
जाती है। दर्द और मर्ज से परेशान ये मरीज मजबूरन सरकारी डॉक्टरों की निजि क्लिनिकों
का रूख करते है। निजि क्लिीनिकों में सरकारी डॉक्टरों द्वारा मनमानी फीस ली जाती
है, जो प्रत्येक मरीज- ‘‘हाथ पकड़ आला लगाने‘‘ की 100 रूपये से लेकर 150 रूपये तक होती है। यह रकम आम मजदूर की
शासन द्वारा प्रतिदिन हाड़-तोड़ मेहनत के लिए निर्धारित राशि के बराबर है। कहॉं पूरे
दिन की मजदूरी और कहॉं एक मरीज के हाथ को छूने मात्र की फीस!!?
जिला चिकित्सालय के वर्षों से यहॉं
पदस्थ चिकित्सक एक समानांतर चिकित्सा व्यवस्था बना चुके हैं। बताया जाता है कि
अपने रसूख के बल पर वरिष्ठ डॉक्टर जिनकी ड्यूटी वार्डाें में होती है, वे वार्डों को जूनियर डॉक्टरों के हवाले
छोड़ चले जाते हैं।
निजि चिकित्सा व्यवसाय में आकंठ डूबे
सरकारी डॉक्टरों ने अपने क्लिनिकों के साथ निजि तौर पर अपनी पैथॉलाजी भी खोल रखी
है, जहॉं मंहगी दरों पर खून, थूक, पेशाब आदि की जांच की जाती है। कुल
मिलाकर देखा जाए तो इस तरह से ऐसे हर डॉक्टर की प्रतिदिन की अघोषित आय 15 से 20 हजार प्रतिदिन आंकी जा रही है।
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह लाख
घोषणाऐं करें, स्वास्थ्य सुविधा पूरी तरह से निःशुल्क घोषित करंे, पर वह सब उक्त माहौल के चलते चरमराती
देखी जा रही है।
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