शुक्रवार, 10 मई 2013

भूमिहीनों के लिए जमीन का पट्टा


भूमिहीनों के लिए जमीन का पट्टा

(लिमटी खरे)

मध्य प्रदेश सरकार की योजना के तहत प्रदेश के नगरीय क्षेत्रों में भूमिहीन व्यक्तियों का जमीन का पट्टा देने की योजना है। इसके तहत जिनके पास सर छिपाने की जगह नहीं है उन्हें जमीन का टुकड़ा दिया जाता है। 1984 में बने इस कानून के तहत हर जगह जरूरतमंद लोगों को चिन्हित कर उन्हें जमीन का पट्टा दिया जाता है। शहर के अंदर या उपनगरीय क्षेत्रों में नजूल की भूमि को अमूमन इस काम के लिए उपयोग में लाया जाता है।
भूमिहीन चिन्हित करने के काम में सरकारी सेवकों की मदद में जनसेवा करने वाले सदा से ही आगे आते रहे हैं। नेताओं की इस मामले में विशेष दिलचस्पी इसलिए होती है कि सरकार की योजना को अपने प्रयास से किया जाना बताकर वे इन भूमिहीनों की हमदर्दी जीत लेते हैं। यही लोग बाद में पार्टी विशेष के वोट बैंक बनकर सामने आते हैं। इसमें अंधा बांटे रेवड़ी चीन्ह चीन्ह कर देय की कहावत भी चरितार्थ होती आई है।
प्रदेश में अनेक उदहारण ऐसे भी हैं जिनमें भूमिहीनों ने सरकार से पट्टा लेकर उसे बेच दिया और फिर दुबारा भूमिहीन बनकर पात्रों की फेहरिस्त में अपना नाम जुड़वा लिया। कहते हैं शातिर लोगों के लिए तो यह व्यवसाय और आजीवीकोपार्जन का अच्छा साधन बनकर उभरा है। नेताओं की चरण वंदना कर अनेक लोगों यहां तक कि छुटभैया नेताओं ने भी बिना लागत के इस धंधे को अपना लिया है। अपने, अपने मित्रों परिचितों आदि को भी भूमिहीन बताकर पट्टे ले लिए गए हैं और फिर उन्हें बेच दिया गया है।
चूंकि यह मामला शहरी सीमा के अंदर का होता है अतः भूमाफिया भी इस मामले में पूरी तरह सक्रिय रहता है। भूमाफिया अपने गुर्गों के माध्यम से जमीन पर कब्जा करवाकर उसे बेच देता है। इस काम में स्थानीय जनप्रतिनिधि भी जाने अनजाने उनका साथ देते ही नजर आते हैं। नेताओं की करीबी का एहसास कराकर इस तरह के छुटभैया नेता अफसरों पर दबाव बना लेते हैं और अपना उल्लू सीधा करने से नहीं चूकते हैं।
सिवनी के वर्तमान जिलाधिकारी भरत यादव की पहल स्वागतयोग्य है कि उन्होंने भूमि के पट्टों के वितरण के पहले ना केवल बैठक बुलवाई वरन उसमें विधायकों से रायशुमारी भी की। इस बैठक में विधायक श्रीमति नीता पटेरिया, राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष डॉ.ढाल सिंह बिसेन, जिला पंचायत अध्यक्ष मोहन सिंह चंदेल, नगर पालिका अध्यक्ष राजेश त्रिवेदी, उपाध्यक्ष राजिक अकील सहित वार्ड के पार्षद उपस्थित थे।
जहां तक सिवनी शहर की बात है तो इस बैठक में उपस्थित प्रतिनिधि अपने अपने क्षेत्र के पात्र लोगों से भली भांति परिचित होंगे। अब यह उनके उपर ही निर्भर करता है कि वे पात्रों के चयन में दिलचस्पी दिखाएंगे या अपात्रों को इस योजना का लाभ दिलवाएंगे। जिला कलेक्टर ने इनसे अपील की है कि पात्र लोगों को पट्टे मिलें, पिछली बार जिन्हें मिल चुके हैं, उन्हें दुबारा ना मिल पाएं यह अवश्य सुनिश्चित किया जाए।
देखा जाए तो एक विधायक अपने विधानसभा क्षेत्र, पार्षद अपने निर्वाचन क्षेत्र के एक एक व्यक्ति को भली भांति जानता है। जब कोई जानकारी देता है तो वह जानकारी सत्य है अथवा असत्य इस बारे में पार्षद ही बेहतर बता सकते हैं। चूंकि पार्षदों के सर पर बड़ी जिम्मेदारी होती है और पालिका में उन्हें पूरी तवज्जो नहीं मिल पाती है अतः उनके अंदर रोष होना स्वाभाविक ही है। पार्षदों की इस काम में जवाबदेही सबसे अधिक है अतः पार्षदों को इस काम को दलगत भावना से उठकर करना होगा।
जिला कलेक्टर भरत यादव वाकई बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने इस काम को अंजाम देने के पूर्व पात्र अपात्र के चयन की बात फिजां में उठा दी है। साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि इस बार पट्टे का लाभ उन लोगों को कतई ना मिल पाए जो पहले पट्टा लेकर इसे बेच चुके हैं। इस तरह भरत यादव ने सरकारी पट्टे की लूट पर अंकुश लगाने का मन बनाया है। उनकी इस पहल का आम जनता में तो तहे दिल से स्वागत होगा किन्तु सियासी दलों के नेता मन मसोसकर रह जाएंगे, क्योंकि उनके गुर्गों की रोजी रोटी पर इससे ग्रहण लग सकता है। हो सकता है सिवनी में भाजपा के कुछ नेता कलेक्टर की इस अभिनव और अच्छी पहल के पारितोषक के बतौर आला नेताओं से उनकी शिकायत भी कर दें।
देखा जाए तो जिला कलेक्टर भरत यादव की इस अभिनव पहल का नेताओं द्वारा तहे दिल से स्वागत किया जाना चाहिए। तब जबकि सरकारी सिस्टम में खुली लूट मची हो, जनसेवक सामने से सरकारी खजाना लुटते देख रहे हों, उस वक्त एक नौजवान उर्जावान अधिकारी द्वारा इस तरह की पहल की जाती है तो उसका स्वागत ही होना चाहिए। वस्तुतः भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुके सरकारी सिस्टम और भारत के लोकतंत्र में अब ईमानदारी का स्थान शायद नहीं बचा है।
फिर भी अगर इस तरह की पहल हुई है और वह परवान चढ़ती है तो निश्चित तौर पर यह नजीर साबित होगी, जिसका अनुपालन अन्य अफसरान द्वारा भी आगे की जाने की उम्मीद की जा सकती है। भरत यादव का यह छोटा सा कदम भ्रष्टाचार की अंधेरी काल कोठरी में सूरज की एक रोशनी से कम नहीं दिखाई दे रहा है।

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