मंगलवार, 20 सितंबर 2011

आडवाणी जी का दिवा स्वप्न


आडवाणी जी का दिवा स्वप्न
(संजय दृष्टि)
आडवाणी जी मंझे हुए राजनैतिक खिलाड़ी की तरह यह सब जानते थे कि भाजपा बदले हुए राजनेतिक परिदृश्य में अकेले के दम पर सत्ता हासिल कर पाना लगभग असम्भव है। और इस उद्देश्य के लिए उन्हें विभिन्न दलों में स्वीकार्य होना उनकी रजनैतिक मजबूरी। बदलते हुए समय को भांपते हुए उन्होंने अपना केसरिया चोला उतारना उचित समझा और धर्मनिरपेक्ष छवि को बनाने के प्रयास में जुट गए। अब आडवाणी सर्वधर्म सम्भाव की सोच पर चलते हुए उन्होंने पार्टी की विचारधारा से अलग सोच बनाते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण की राहत पकड़ी और अपने गृह नगर (पाकिस्तान) जाकर पाकिस्तान के प्रणेता मोहम्मद अली जिन्ना की मज़ार पर घड़ियाली आंसू बहाए। और अपने तथा कथित मुस्लिम भाईयों पर किये गये कृत पर अफसोस जताया। यह बात अलग है कि उनके इस कृत्य से संघ और पार्टी को नाराज ही नहीं किया बल्कि पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष से भी हाथ धोना पड़ा और उसके बाद जो उनकी गत हुई सब जानते हैं।
अब आडवाणी जी नया शगूफा की देश में फैले भ्रष्टाचार के मुद्दे से वह इतने आहत हैं कि इसके लिए देशभर में भ्रष्टाचार के विरोध में यात्रा करेंगे और जनमानस को जागृत करेंगे। अब भला आडवाणी जी से पूछिए कि देश की जनता को अन्ना हजारे ने जागृत कर दिया है और देश की जनता इतनी मूर्ख नहीं है जितना की राजनेता लोग समझते हैं। अन्ना के आंदोलन ने नेताओं को दिखा दिया है कि जन जनता तक हो जाए तो सरकार को भी झुकना पड़ता है और समझौता करना पड़ता हे। अन्ना ने सरकार के खिलाफ एक माहौल बना दिया है जिसको कि आडवाणी जी भुनाना चाहते हैं। उन्हें शायद यह नहीं पता कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती।
आडवाणी जी की यात्रा से शायद संघ और उनकी पार्टी भी इत्तफाक नहीं रखती पर लगता है कि आडवाणी जी का अंतिम प्रयास है। जिसको सफल बनाने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकते हैं। यात्रा का समय, स्थान और मार्ग निश्चित करना अभी बाकी है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर आडवाणी जी यात्रा देश के उत्तर भाग से  शुरू करेंगे या दक्षिण से। दोनों ही तरफ भाजपा शासित राज्य हैं एक तरफ उत्तराखण्ड तो दूसरी तरफ कर्नाटक। दोनों ही राज्यों में अभी हाल ही में भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन किया है। कारण भ्रष्टाचार में लिप्त मुख्यमंत्री और उनकी सरकार। अभी इन राज्यों में मामला थमा नहीं है। और कर्नाटक ने तो परिस्थितियां पार्टी के काबू में नहीं हैं। आंध्र प्रदेश में रेड्डी बंधुओं के भाजपा से संबंध जगजाहिर हैं जिनके ऊपर भी कानूनी कार्रवाई चल रही है, तो क्या पार्टी नेतृत्व उनको इस यात्रा में सहयोग देगा। गुजरात में निर्भर करता है नरेन्द्र मोदी पर बदले हुए परिवेश में नरेन्द्र मोदी आडवाणी से राजनैतिक रूप में बड़े नेता बनकर उभर रहे हैं। अभी मोदी जी की उम्र भी उनके साथ है और उनका भविष्य भी उज्जवल है तो क्या नरेन्द्र मोदी इस यात्रा में आडवाणी जी का साथ देंगे। यह यक्ष प्रश्न है। इसी तरह मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की भी स्थितियां कुछ अलग हैं वहां भी शिवराज सिंह चौहान और रमन सिंह ने अपने-अपने तरीके से जनता में पैठ बना ली है और शायद ही वह इस यात्रा का मन से समर्थन करे।
देश अभी राम मंदिर की यात्रा के कटु अनुभव भी पूरी तरह उभर नहीं पाया है और   बदलते समय में जनता किसी भी प्रकार से राजनेताओं द्वारा किए जा रहे नित नये स्वांग में आने वाली नहीं है। उन्हें पता है कि किसी भी प्रकार की यात्राओं से समस्याओं का हल नहीं निकलने वाला है। समस्या जस की तस रहती है। असल में आडवाणी जी खुद भाजपा में अपनी जमीन तलाश रहे हैं। पार्टी में अगली पीढ़ी ने कमान सम्भाल ली है। अब आडवाणी जी अपनी अधूरी अभिलाषा को लेकर क्या करें ? उनकी जीवन भर की राजनीति बेकार होती नजर आ रही है। उनका प्रधानमंत्री बनने का दिव्य स्वप्न और तिरंगे झंडे में लपेटे जाने की अभिलाषा इस जन्म में तो पूरी होना असम्भव लगता है। सपने सपने रहते हैं हकीकत हकीकत होती है।

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