ये है दिल्ली मेरी जान
लिमटी खरे
कार्यकारी अध्यक्ष की दौड़ में दिग्विजय सिंह
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी को रहस्यमय बीमारी हो गई है। सोनिया कांग्रेस को ज्यादा समय देने की स्थिति में फिलहाल नहीं हैं। कांग्रेस में चर्चा चल पड़ी है कि अगर एसा है तो अब कार्यकारी अध्यक्ष बना ही दिया जाए। लाख टके का सवाल है कि किसे? दो नाम उभरकर सामने आ रहे हैं। पहला है अहमद पटेल का, जिनके नाम की वकालत अंबिका सोनी, गुलाम नवी आजाद, सलमान खुर्शीद और शायद प्रणव मुखर्जी भी कर रहे हैं। दूसरा नाम आता है राजा दिग्विजय सिंह का। दिग्गी राजा के लिए लाबिंग करने वालों में नेता कम हैं पर ब्यूरोक्रेट्स की तादाद बेहद ज्यादा है। आला नेताओं की पेशानी पर पसीना है क्योंकि अहमद अगर इस पद पर आए तो ज्यादा असर नहीं पड़ेगा पर कहीं दिग्गी राजा को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया तो बड़े नेताओं को वे पानी भरवा ही देंगे।
घपले, घोटाले, भ्रष्टाचार के मकड़जाल में उलझी कांग्रेस उहापोह में है कि अगले आम चुनाव वह किसके नेतृत्व में लड़े। मनमोहन सिंह की ईमानदार छवि आज भी ईमानदार ही बनी है पर उन्हें भ्रष्टाचार का ईमानदार संरक्षक माना जा रहा है। उधर कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी अभी तख्त संभालने की स्थिति में नहीं हैं। कांग्रेसियों का कहना है कि जनता मनमोहन सिंह में नरसिंहराव का अक्स देख रही है। नरसिंहराव ने आठ साल तक कांग्रेस को सत्ता से दूर रखा तो अब मनमोहन सिंह तीन गुना यानी चोबीस साल कांग्रेस को सत्ता के गलियारे से बाहर रखने का पुख्ता प्रबंध कर चुके हैं। पार्टी के अदूरदर्शी प्रबंधकों ने अनेक महत्वपूर्ण मुद्दे न केवल सरकार के हाथ से फिलसाए वरन् इन मुद्दों पर सरकार को मुंह की खाने पर मजबूर भी किया। कांग्रेस में नए साफ सुथरी छवि वाले नेता की तलाश तेज हो गई है।
वजीरे आजम डॉ.मनमोहन सिंह की तबियत कुछ दिनों पहले नासाज थी। उनका इलाज हुआ और स्वास्थ्य आधार पर चिकित्सकों द्वारा उन्हें मांसाहार से दूर रहने की सलाह दी गई थी। पिछले कुछ माहों से मनमोहन सिंह पूरी तरह शाकाहारी ही हो चुके हैं। हाल ही की उनकी बंगाल यात्रा में उन्होंने अपने शाकाहार के वृत को तोड़कर वहां की प्रसिद्ध हिलिश मछली का स्वाद चखा। दरअसल शेख हसीना की ओर से आयोजित रात्रि भोज में उन्हें हिलिश माछ परोसी गई। वजीरेआजम अपने आप को रोक नहीं पाए और उन्होंने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह होते हुए इसका मजा लिया। चिकित्सकों के अनुसार मछली का सेवन वैसे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है किन्तु कुछ मामलों में यह अपवाद भी है। वैसे मनमोहन अपने साथ एक पेटी भर हिलिश मछली लेकर वहां से वापस आए हैं।
पहली ईंट रखने के पहले ही बंद हो गई योजनामध्य प्रदेश की सतपुड़ा की वादियों में पनाह पाने वाले सिवनी और छिंदवाड़ा जिले की महात्वाकांक्षी पेंच व्यपवर्तन सिंचाई परियोजना ने इक्कीस साल में दम तोड़ दिया है। इसका विस्तृत प्राक्कलन १९८४ में तैयार किया गया था, उस समय इसकी लागत ९१.६ करोड़ रूपए आंकी गई थी। इस योजना पर वास्तविक काम १९८८ में आरंभ हुआ। १४ साल तक राजनैतिक मकड़जाल में उलझी इस योजना की लागत १९९८ में लगभग छः गुना बढ़कर ५४३.२० करोड़ रूपए हो गई थी। इस परियोजना का आश्चर्यजनक पहलू यह है कि केंद्र और प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता रहते हुए भी क्षेत्रीय सांसद कमल नाथ ने इसे अब तक केंद्र की अनुमति दिलवाने में नाकामी ही हासिल की है। बताया जाता है कि इस परियोजना की बढ़ी लागत से घबराकर प्रदेश सरकार ने इसे बंद करने की गुहार केंद्र से की है। सूत्रों ने कहा कि नई भूअर्जन नीति में मुआवजा चार गुना हो जाने से इसकी लागत काफी अधिक बढ़ जाएगी।
अजीत का वार चारों खाने चित्त पवार
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार इन दिनों दहशत में हैं। वे अपनी राजनैतिक विरासत अपनी पुत्री सांसद सुप्रिया सुले को सौंपना चाह रहे हैं। सुप्रिया हैं कि अब तक राजनीति में कोई छाप नहीं छोड़ पाई हैं। पवार के भतीजे अजीत महाराष्ट्र में मंत्री हैं। भले ही वे सूबाई राजनीति तक सीमित हों पर अब वे सुप्रिया पर कई गुना भारी पड़ चुके हैं। सूबाई निजाम पृथ्वीराज चव्हाण भी उनसे खौफ खाते हैं। राकांपा के अधिकांश विधायक भी अजीत के समर्थन में हैं। राकांपा के आला नेता प्रफुल्ल पटेल, छगन भुजबल, आर.आर.पाटिल भी शरद पवार से अजीत की शिकायत कर चुके हैं। माना जा रहा है कि अगर अजीत ने राकांपा से नाता तोड़ा तो पार्टी का नामलेवा भी नही बचेगा। इन परिस्थितियों में सुप्रिया की नासमझी से चिंतित पवार को चिंता सता रही है कि उनके कमजोर पड़ते ही पार्टी की लगाम कही अजीत न थाम लें।
लखटके सांसद!
दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित की सीट पर लावारिस हालत में मिले बैग ने दस लाख रूपए उगले। बाद में सांसद ने कहा कि यह पैसा उनके मित्र का है। दीक्षित ने पुलिस में अपने बयान दर्ज करवा दिए हैं पर प्रश्न तो प्रश्न हैं जो अभी भी खड़े ही हैं। अगर यह रकम संदीप दीक्षित की है तो वे इसके स्त्रोत को अवश्य ही उजागर करें। अगर वे किसी अन्य की रकम ले जा रहे थे तो इतनी बड़ी रकम ले जाने का जोखम उन्होंने क्यों उठाया? क्या सांसद संदीप दीक्षित किसी के लिए पैसे लाने ले जाने का काम करते हैं? इतनी बड़ी रकम आखिर किस बैंक से निकाली गई? क्या इतनी बड़ी रकम निकासी के वक्त बैंक द्वारा इसकी सूचना आयकर विभाग को दी थी?
दीदी ने कांग्रेस को दिखाई औकात!
कल तक पश्चिम बंगाल पर शासन का सपना देखते वक्त कांग्रेस की चिरौरी करने वाली ममता बनर्जी अब कांग्रेस को आंख दिखाने से नहीं चूक रही हैं। हाल ही में प्रणव मुखर्जी के निज सचिव मनोज पंत को पदोन्नति मिली और वे संयुक्त सचिव हो गए। इस स्तर के अधिकारी को मंत्री का निज सचिव नहीं बनाया जा सकता। दादा ने अपने गृह जिले के कलेक्टर को इसके चुना। जब इसके लिए ममता की सहमति की आवश्यक्ता पड़ी तो ममता बिफर गईं और लिख दी केंद्र सरकार को पाती। ममता का कहना है कि वैसे भी सूबे में आईएएस अफसरों की कमी है। आप दिल्ली में जमे अफसरों को वापस भेजो। मनोज पंत की घर वापसी के बजाए दादा ने उन्हें वाशिंग्टन में पदस्थापना दिला दी। गौरतलब है कि कार्मिक विभाग के साफ निर्देश हैं कि पांच साल से ज्यादा समय के लिए प्रतिनियुक्ति होने पर उसके खिलाफ कार्यवाही की जाएगी।
चमचागिरी को मूल मंत्र माना सूचना केंद्र ने
मध्य प्रदेश सरकार की छवि के निर्माण के लिए पाबंद दिल्ली स्थित जनसंपर्क विभाग के कार्यालय सूचना केंद्र द्वारा इन दिनों अपने मूल काम को छोड़कर अपना भाजपाईकरण कर लिया है। कभी यह भाजपा के अनुषांगिक संगठनों की विज्ञप्तियों का प्रचार प्रसार करता नजर आता है तो कभी सांसद विधायकों के धरने प्रदर्शन को कव्हर करता नजर आता है। सूचना केंद्र के वाहनों को पत्रकारों के बजाए सांसदों की तीमारदारी में लगाया जाता है। इतना ही नहीं कभी अपने किसी आला अधिकारी के परिजन की प्रदर्शनी की खबर जारी करता है तो कभी किसी कर्मचारी को मिले पुरूस्कार की खबर और फोटो। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कार्यालय द्वारा अब भेदभाव करना आरंभ कर दिया गया है। हिन्दी दिवस पर इसी तरह का एक नजारा देखने को मिला जब तीन लोगों को पुरूस्कार मिला पर खबर जारी हुई एक ही की।
क्यों नाराज हैं चतुर्वेदी और नाथ
मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के जिलाध्यक्षों की घोषणा करने में सूबे के कांग्रेसी निजाम कांतिलाल भूरिया को मानो पसीना आ रहा हो। बमुश्किल कुछ जिलों की घोषणा अवश्य कर दी गई किन्तु अब भी कमल नाथ की सांसदी वाले छिंदवाड़ा और सत्यव्रत चर्तुवेदी के छतरपुर और टीकमगढ़ जिलों के जिलाध्यक्षों की घोषणा अब तक नहीं हो पाई है। माना जाता है कि मध्य प्रदेश के इन दोनों ही क्षत्रपों का एकाधिकार अपने अपने कार्यक्षेत्र में है। इनकी इच्छा के बिना पत्ता भी यहां नहीं हिल पाता है। कांग्रेस के आला नेता इस बात पर शोध कर रहे हैं कि आखिर एसी कौन सी बात है कि देश प्रदेश में अपनी लंगोट घुमाने वाले ये क्षत्रप अपने ही घरों में एक नाम पर आम सहमति नहीं बनवा पा रहे हैं।
पलनिअप्पम का शनि है भारी
केंद्रीय गृह मंत्री पलनिअप्पम चिदम्बर इन दिनों खासे परेशान चल रहे हैं। लगता है उनके गृहों की चाल कुछ तिरछी है या फिर उनका शनि पूरी तरह भारी हो चुका है। अव्वल तो अण्णा हजारे के साथ वार्ता में वे बुरी तरह अपमानित हुए। फिर इसके बाद मनमोहन सिंह ने उनकी ओर से नजरें फेर लीं। एक के बाद एक ब्लास्ट से पार्टी भी उनसे खफा है। ममता बनर्जी द्वारा प्रणव मुखर्जी को ठेंगा दिखाने के बाद अब तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जय ललिता ने चिदम्बरम को उनकी जगह दिखा दी। जब वे अपने चुनाव क्षेत्र शिवगंगा में विजलेंस मानीटरिंग समिति की बैठक में भाग लेने गए तब प्रोटोकाल के बावजूद उनकी अगवानी में कोई नहीं पहुंचा। कहा जा रहा है कि जयललिता का निर्देश था कि वहां कोई न जाए। बेचारे चिदम्बरम मियां अपना सा मुंह लेकर वापस आ गए।
चीन से आते ही दिल्ली तलब होंगे शिवराज
मध्य प्रदेश के निजाम शिवराज सिंह चौहान चीन की यात्रा पर हैं। वहां से वापसी के बाद वे अपने मंत्रीमण्डल का अंतिम फेरबदल करेंगे। इस फेरबदल के लिए चीन यात्रा के पूर्व सारी प्राथमिक तैयारियां की जा चुकी हैं। नई टीम शिवराज से बिदा होने वाले चार मंत्रियों गौरी शंकर बिसेन, नारायण सिंह कुशवाह, पारस जैन एवं राघवजी ने अपनी अपनी कुर्सी बचाने की जुगत लगा ली है। इन नेताओं ने संघ और भाजपा के आला नेताओं को सिद्ध कर लिया है। वैसे अभी पितरों की समाप्ति तक भाजपाध्यक्ष नितिन गड़करी भी सर्जरी के उपरांत आराम फरमाएंगे। इसलिए २० सितम्बर को चीन से वापसी के बाद शिवराज को दिल्ली तलब कर उन्हें अपने मंत्रीमण्डल की प्रस्तावित सूची पर एक बार फिर विचार करने को कहा जा सकता है।
खाली होने लगा कांग्रेस मुख्यालय
सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस का अकबर रोड़ स्थित मुख्यालय अब खाली होने लगा है। कांग्रेस कोषाध्यक्ष मोती लाल वोरा ने एक प्रस्ताव दिया है कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक दर्जन से अधिक विभागों और एक सेल को २४ अकबर रोड़ से कहीं और स्थानांतरित कर दिया जाए। वैसे भी कांग्रेस का मुख्यालय गुरूद्वारा रकाबगंज रोड़, जवाहर भवन और ९९, साउथ एवेन्यू में भी लगता है। एमपीसीसी से हटाए गए मुखिया सुरेश पचौरी के कार्यालय को भी रकाबगंज रोड़ में संचालित किया जा रहा है। कांग्रेस संदेश से हटाए गए अनिल शास्त्री को भी हिन्दी विभाग के लिए अकबर रोड़ से इतर कमरा खोजने के निर्देश दे दिए गए हैं। मुख्यालय के प्रबंधक इस बात से परेशान हैं कि हर कोई महासचिव और सचिव खुद के लिए स्वतंत्र कमरे की मांग कर रहा है।
हिन्दी का माखौल उड़ा हिन्दी दिवस पर
मौका हिन्दी के प्रोत्साहन के लिए पुरूस्कारों का था। पुरूस्कार भी दिए जा रहे थे उन्हें जिन्होंने हिन्दी में बेहतरीन काम किए हैं। पुरूस्कार पाने वाले लोग अपने आप को गोरवान्वित महसूस कर रहे थे। अचानक ही हिन्दी की चिन्दी तब उड़ती नजर आई जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री के.जी. बालाकृष्णन ने अपना उद्बोधन आरंभ किया। बालाकृष्णन ने अपने उद्बोधन में हिन्दी के विकास का जिकर किया। वक्ता हक्का बक्का थे क्योंकि समूचा उद्बोधन अंग्रेजी भाषा में था। श्रोता अंग्रेजी में हुए उद्बोधन पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए खुसर पुसर करते रहे। हिन्दी दिवस पर मुख्य वक्ता का अंग्रेजी में उद्बोधन सुनने के बाद लोगों को लगने लगा कि हिन्दी की दुर्दशा का कारण आखिर क्या है?
ब्लेक लेबल के लिए ब्लेक में रिश्वत!
क्या शराब के ब्रांड को प्रमोट करते हुए कभी सरेआम देखा है किसी ने! नहीं ना, पर सेना में अपने ब्रांड की पैठ बनाने के लिए डिएगो कंपनी ने सेना के अफसरों को एक दो नहीं तीन करोड़ रूपए की रिश्वत दी है। दरअसल कुछ सालों से सेना की केंटीन में मिलने वाली शराब में जानी वाकर ब्लेक लेबल को शामिल किया गया है। इस मंहगी शराब के बाजार और केंटीन के दामों में भारी अंतर है। अमरिका प्रतिभूति और व्यापार आयोग के प्रतिवेदन में कहा गया है कि कंपनी ने सेना में अपना व्यापार करने के लिए यह रिश्वत दी है। एआईसी ने डिएगो पर विदेशी भ्रष्ट और व्यापार अधिनियम के तहत अस्सी करोड़ की शस्ति आहूत की है। जब शराब की बिकावली बढ़ाने के लिए सेना ही रिश्वत लेने लगे तो देश तो भगवान भरोसे होगा ही।
पुच्छल तारा
भ्रष्टाचार के खिलाफ अण्णा हजारे का आंदोलन अभी थमा नहीं है। लोग आज भी अण्णा के समर्थन में मेल और एसएमएस की बौछार पर बौछार किए हुए हैं। देहरादून से अर्जुन कुमार ने एक एसएमएस भेजा है। अर्जुन लिखते हैं कि एक पत्रकार ने अण्णा से पूछा कि अण्णा यह बताईए कि कफन में जेब क्यों नहीं होती है? अण्णा मुस्कुराए और बोले -च्च्प्यारे इतनी सी बात नहीं पता। अरे सीधी सी बात है, मौत रिश्वत नहीं मांगती इसलिए कफन में जेब नहीं होती है।च्च् इस एसएमएस को पढ़ने के बाद शायद देश के भ्रष्ट लोग समझ सकें कि जो वे कमा रहे हैं उसे वे साथ नहीं ले जा पाएंगे फिर पैसों को लेकर यह मारामारी आखिर क्यों?
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