शिवराज को नहीं राज्य सुरक्षा की चिंता
एमपी ने नहीं भेजे केंद्र को नियमित प्रशिक्षण के प्रस्ताव
भर्ती के दौरान मिला प्रशिक्षण ही होता है संपूर्ण सेवाकाल में आधार
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार और कांग्रेसनीत कंेद्र सरकार के बीच सामंजस्य का जबर्दस्त अभाव चल रहा है। इधर शिवराज चौहान द्वारा केंद्र पर मध्य प्रदेश के साथ सौतेला व्यवहार करने का आरोप लगाया जाता है, वहीं दूसरी और कांग्रेस के प्रधानमंत्री एमपी के निजाम से केंद्र की इमदाद की पाई पाई का हिसाब मांगकर शिवराज को असमंजस में डाल दिया जाता है। हाल ही में केद्र सरकार के गृह मंत्रालय और एमपी गर्वमेंट के बीच टकराव की स्थिति निर्मित होती प्रतीत हो रही है।
गृह मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि मध्य प्रदेश सहित अनेक सूबों ने अपने राज्य की पुलिस को नियमित अंतराल में प्रशिक्षण देने में रूचि नहीं दिखाई है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने तेहरवें वित्त आयोग से देश में राज्यों की पुलिए को नियमित अंतराल के दरम्यान प्रशिक्षण देने के लिए दो हजार करोड़ रूपयों की मांग की थी। केंद्र ने इस मद में राशि स्वीकृत भी की। गृह मंत्रालय द्वारा स्वीकृत 1759 करोड़ रूपयों में से मध्य प्रदेश की झोली में एक सौ अस्सी करोड़ रूपए आए थे।
विडम्बना ही कही जाएगी कि गुजरात, केरल मणिपुर के अलावा किसी भी राज्य ने अब तक इस मामले में कोई भी प्रस्ताव केंद्र सरकार को नहीं भेजा है। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि देश की आंतरिक सुरक्षा के चलते केंद्र सरकार की पेशानी पर पसीने की बूंदे छलकने लगी हैं। यही कारण है कि पुलिस को नियमित प्रशिक्षण देने की आवश्यक्ता महसूस की जा रही है।
उन्होने कहा कि गृह मंत्रालय को मिलने वाली सूचनाओं के अनुसार माओवादी, आतंकवादी, नक्सलवादी आदि के द्वारा अत्याघुनिक हथियारों का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि राज्यों की पुलिस आज भी वही पुराने बाबा आदम के जमाने के हथियारों पर ही गुजर बसर कर रही है। उन्होंने कहा कि जब पुलिस में कोई भर्ती होता है तब वह जो प्रशिक्षण पाता है, वही प्रशिक्षण उसके समूचे सेवाकाल तक चलता है। सेवा के दौरान पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षण न देना चिंताजनक ही है। देखा जाए तो कम से कम पांच साल में पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षण देना चाहिए, किन्तु पुलिस बल के अभाव में उन्हें नियमित अंतराल के बाद प्रशिक्षण नहीं दिया जा पा रहा है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार महाराष्ट्र को 223 करोड़ रू. बिहार को 206 करोड़ रू., पंजाब को 200 करोड रू.़, एमपी को 180 करोड़ रू. कर्नाटक को 150 करोड़ रू., यूपी को 132 करोड़ रू. आंध्र प्रदेश को 113 करोड़ रू. हरियाणा और राजस्थान को सौ सौ करोड़ रू. झारखण्ड को 73 अ असम को पचास करोड़ रू. छत्तीसगढ़ को 42 करोड़ रू एवं सबसे कम उत्ताखण्ड को 20 करोड़ रू प्रदान किए गए हैं।
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