बिना इंजन दौड़ रही भारतीय रेल!
भ्रष्टाचार की शिकायतों का सिरमोर बना रेल महकमा
सीवीसी को मिलीं एक तिहाई शिकायतें रेल की
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। पहले लालू प्रसाद यादव फिर ममता बनर्जी और अब दिनेश त्रिवेदी ये हैं इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में भारतीय रेल के चालक। इन तीनों के ही राज में भारतीय रेल पटरी से पूरी तरह उतर चुकी है। केंद्रीय सतर्कता आयोग को मिली कुल शिकायतों में एक तिहाई से अधिक शिकायतें सिर्फ भारतीय रेल की ही मिली हैं। वर्ष 2010 की वार्षिक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है। सीवीसी को मिली 25 हजार 359 शिकायतों में से आठ हजार 330 शिकायतें रेल्वे की हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयोग के वर्ष 2010 के सालाना प्रतिवेदन में कहा गया है कि उसे जो शिकायतें मिली हैं उनमें भारतीय रेल सबसे उपर है। इसके उपरांत 6520 के साथ बैक दूसरे तो 1836 के साथ तेल विभाग तीसरी पायदान पर है। दूरसंचार महकमे की भी 1572 शिकायतें मिली हैं। प्रतिवेदन दर्शाता है कि इन 8 हजार 330 शिकायतों में अधिकांश शिकायतें कर्तव्य के निर्वहन न करने की हैं। आयोग द्वारा जिन 1646 मामलों में कार्यवाही के निर्देश दिए हैं उनमें से 321 मामले रेल्वे के खिलाफ वाले हैं।
गौरतलब है कि इक्कीसवीं सदी के स्वयंभू प्रबंधन गुरू लालू प्रसाद यादव ने सुर्खियां बटोरने के चक्कर में भारतीय रेल को प्रयोग शाला बना दिया था। कभी वे स्लीपर कोच में 72 के बजाए 84 बर्थ का आदेश देते तो कभी कुल्हड़ में चाय बेचने का तुगलकी फरमान। इसके बाद रेल मंत्री बनीं ममता बनर्जी ने भारतीय रेल को अपने पीछे पीछे पश्चिम बंगाल में झोंक दिया था। बंगाल की निजाम बनने के चक्कर में रेल के आला अधिकारी नस्तियों पर उनके हस्ताक्षर लेने उनके पीछे पीछे पश्चिम बंगाल की सैर ही करते रहे।
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