अरबों में खेल रही
राजनैतिक पार्टियां
(लिमटी खरे)
देश के नीति
निर्धारक और नीतियों का विरोध करने वाले सियासी दलों के पास इतनी दौलत है कि देश
कभी भी भूखा ना मरे। इनकी एक नंबर की कमाई पर ही नजर डालें तो देश की गरीबी वैसे
भी दूर हो सकती है। औद्योगिक घराने इस पार्टियों को दिल खोलकर चंदा देते हैं।
सियासी दलों ने अब तो चार्टर्ड एकांउटेंट्टस को भी अपने दल का हिस्सा बनाकर इस
कमाई को सुरक्षित रखने का तोड़ निकाल लिया है। पार्टी के केंद्रीय पदाधिकारी चंदे
की रकम पर एश करते हैं। वहीं दूसरी ओर इन पार्टियों को ताकत देने वाली जिला
इकाईयां आज भी ‘मानसेवी‘ होकर काम करने पर
मजबूर हैं। आश्चर्य तो इस बात पर है कि आम जनता की सेवा की सेवा की कथित तौर पर
चिन्ता करने वाली ये पार्टियां जनता ही के लिए फिकरमंद प्रतीत नहीं होती हैं।
राजनीतिक और चुनावी
व्यवस्था में पारदर्शिता के लिए काम कर रहे संगठनों एडीआर (असोसिएशन फॉर
डेमोक्रैटिक रिफॉर्म)और नैशनल इलेक्शन वॉच द्वारा हाल ही में जारी किए सर्वे से
देश के निवासियों के होश उड़ना स्वाभाविक ही हैं। इस सर्वे से साफ हो जाता है कि
राजनैतिक दल किस कदर ‘पार्टी फंड‘ का खेल खेल रहे हैं। राजनैतिक दलों को चंदा
देने में औद्योगिक घराने सबसे आगे हैं। मजे की बात तो यह है कि ये दल जीतने और
हारने वाले दोनों दलों पर ही दांव लगाते हैं।
इस संगठन के माध्यम
से राजनैतिक दलों के आय के विभिन्न स्त्रोतों की जो जानकारी सामने आई है उसमें
नामी गिरामी कंपनियों और संगठनों ने स्वेच्दिक योगदान दिया है। यद्यपि यह इन दलों
की आय का महज बीस फीसदी ही है पर बाकी के अस्सी फीसदी के स्त्रोतों के नाम और व्यय
की जानकारी इन दलों ने अपने मुनीमों के द्वारा इजाद की गई तकनीक से छिपा लिया है।
विभिन्न दलों ने कूपन की बिक्री या सदस्यता अभियान से सबसे अधिक आमदनी होने की बात
कही है। लेकिन, कूपन किसे
बेचे गए, इसका कोई
ब्यौरा नहीं है।
देखा जाए तो कानूनन
अगर किसी राजनैतिक दल को बीस हजार रूपए से अधिक का चंदा मिलता है उसे उसकी जानकारी
देना आवश्यक होता है। एडीआर का आरोप काफी हद तक सही ही लग रहा है कि राजनैतिक दलों
ने अपने अपने मुनीमों के माध्यम से चंदे की राशि को बीस हजार से कम कई गुणांकों
में कर दी गई है। अब बहुजन समाज पार्टी को ही लें, तो उसका दावा है कि
पिछले दो सालों में उसे बीस हजार रूपए से अधिक की राशि अब तक मिली ही नहीं है।
कानून के अनुसार
राजनैतिक दल विदेशी कंपनियों से चंदा नहीं ले सकते हैं। इसके बावजूद भी विदेशों
में लिस्टिड कंपनियां दिल खोलकर राजनैतिक दलों को चंदा देकर अपनी मनमाफिक नीतियां
बनवाने के मार्ग प्रशस्त करती हैं। एक उदहारण के बतौर देखा जाए तो भारत पर दो सौ
साल राज करने वाले ग्रेट ब्रिटेन की राजधानी लंदन में वेदांता नामक कंपनी लिस्टिड
होने के बाद भी राजनैतिक दलों को चंदा दे रही हैं।
माना जा रहा है कि
कानूनी दांव पेंच से बचने इस तरह की कंपनियों द्वारा भारत में अपनी एक शाखा या
ट्रस्ट का गठन कर लेती हैं जिसके माध्यम से ये चंदा देकर अपना हित साधती हैं। देश
और राज्यों में बनने वाले कानून कायदे, व्यापार व्यवसाय में छूट आदि के बारे में आम
जनता को बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती है। वैसे भी केंद्र अथवा राज्य के बजट में
जनता सिर्फ अपने काम की चीजों के बारे में ही देखती है, पर उसके पार्श्च
में ये विदेशी कंपनियां अपना खेल कर जाती हैं।
बीजेपी की आय में
डोनेशन का हिस्सा 22.76 फीसदी है, जबकि कांग्रेस की
आय में यह हिस्सा महज 11.89 फीसदी है। पिछले दो सालों के दौरान में कांग्रेस को सबसे
ज्यादा आय कूपन की बिक्री से हुई, जबकि बीजेपी को स्वैच्छिक योगदान से। तृणमूल
कांग्रेस, जम्मू-कश्मीर
नैशनल कॉन्फ्रेंस,
आरएलडी और जेएमएम सहित 18 क्षेत्रीय और राज्य पार्टियों ने कमाई का
अब तक कोई हिसाब नहीं दिया है। समाजवादी पार्टी ने आय में कमी होने का दावा किया
है। उधर, सीपीआई को
सबसे अधिक आर्थिक मदद देने में इनके नेता ए.बी.बर्द्धन और डी.राजा आगे रहे।
बर्द्धन ने 65 लाख जबकि
राजा ने 21 लाख रुपये
के डोनेशन अपने स्तर पर दिए।
देश में आधी से
ज्यादा आबादी महज बीस रूपए प्रतिदिन से कम की आय में गुजारा करती है। सरकार ने भी
गरीबी रेखा के नीचे के मापदण्ड निर्धारित कर रखे हैं। वहीं दूसरी ओर देश को हांकने
वाली सियासी पार्टियों का अच्छा जलजला है। वित्तीय वर्ष वर्ष 2005 - 2005 से
वित्तीय वर्ष 2010
- 2011 के बीच अगर राजनैतिक दलों की आय का लेखा जोखा देख लिया जाए
तो आम आदमी के तो होश ही फाख्ता हो जाएं। इस आलोच्य अविध में में कांग्रेस - 2008 करोड़ रुपये, बीजेपी- 994 करोड़ रुपये, बीएसपी- 484 करोड़ रुपये, सीपीएम- 417 करोड़ रुपये, एसपी- 279 करोड़ रुपये अर्थात
इन पांच पार्टियों को इस अवधि में 4,182 करोड़ रूपए का चंदा मिला।
चंदा देने में देश
की नामी गिरामी कंपनियां अग्रणी रही हैं। नामी गिरामी कंपनियों ने कांग्रेस भाजपा
सहित सारे राजनैकि दलों को पूरी तरह साध रखा है। कुछ कंपनियों ने तो बाकायदा आम
चुनावों के लिए फंड अलग रख रखा है। सबसे अधिक डोनेशन देने वालों में मोबाईल सेवा
प्रदाता कंपनी के मालिकान आदित्य बिड़ला ग्रुप का जनरल इलेक्शन ट्रस्ट, टॉरेंट पॉवर
लिमिटेड, भारती
इलेक्टोरल ट्रस्ट,
टाटा ग्रुप का इलेक्टोरल ट्रस्ट, स्टरलाइट
इंडस्ट्रीज टाटा कंपनी का जनरल इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट और सत्य इलेक्टोरल ट्रस्ट, अनिल अग्रवाल के
स्टरलाइट इंडस्ट्रीज का द पब्लिक एण्ड पोलिटिकल अवेयरनेस ट्रस्ट, एयरटेल कंपनी का
भारती इलेक्टोरल ट्रस्ट, अनिल अग्रवाल के ही वेदान्ता समूह का हार्मनी इलेक्टोरल
ट्रस्ट, चौगले समूह
का चौगले चौरिटेबल ट्रस्ट और कारोपोरेट इलेक्टोरल ट्रस्ट। इन ट्रस्टों के अलावा भी
कंपनिया सीधे तौर पर पैसा देती हैं। इसमें टोरेन्ट पॉवर, विडियोकान समूह, आईटीसी, वेदान्ता समूह, एशियानेट
होल्डिंग्स और लार्सन एण्ड टुब्रो जैसी कंपनिया शामिल हैं।
कांग्रेस को चंदा
देने वाले मुख्य दानकर्ताओं में टोरेंट पावर लिमिटेड (14.15 करोड़ रुपये), एयरटेल का भारती
इलेक्टोरल ट्रस्ट (11 करोड़
रुपये), टाटा का
इलेक्टोरल ट्रस्ट (नौ करोड़ रुपये), स्टरलाइट इंडस्ट्रीज (छह करोड़ रुपये), आईटीसी (पांच करोड़
रुपये), अडानी
इंटरप्राइजेज, जिंदल
स्टील और वीडियोकोन एपलाएंसेंस रहे। वहीं दूसरी ओर भाजपा की आय में बड़ा हिस्सा
जीईटी के चंदे (26 करोड़
रुपये) का रहा जिसके बाद टोरेंट पावर लिमिटेड (13 करोड़ रुपये) और
पब्लिक एंड पोलिटिकल अवेयरनेस सेंटर (9.5 करोड़ रुपये) का रहा। एनजीओ ने इस सेंटर के
वेदांता से जुड़े होने का दावा किया। एक और रोचक तथ्य सामने सामने आया कि एशियानेट
टीवी होल्डिंग ने पिछले सात सालों में भाजपा को 10 करोड़ रुपये दिए
जबकि कांग्रेस को ढाई करोड़ रूपये का चंदा दिया। (साई फीचर्स)
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