कुंभ की तैयारियों
में घोटालों की गूंज
(निधि श्रीवास्तव)
इलहाबाद (साई)।
अगले वर्ष की शुरुआत में संगम नगरी इलाहाबाद धरती पर लगने वाले सबसे बड़े मेले की
गवाह बनेगी, जब 14 जनवरी से 10 मार्च तक इस
महाकुंभ में देश-विदेश से 10 करोड़ श्रद्घालु और पर्यटक इस पावन नगरी में
अपने कदम रखेंगे। इतने बड़े आयोजन के लिए महज तीन माह ही बचे हैं, लेकिन भ्रष्टाचार, लापरवाही और
कुप्रबंधन से जकड़ी तैयारियां इसकी गवाह हैं कि इस देश में कोई भी बड़ा आयोजन धांधली
का दाग लिए बगैर पूरा नहीं हो सकता।
असल में हर 12 साल बाद इलाहाबाद
में होने वाले महाकुंभ की तैयारियों को इस बार दो चरणों में बांटा गया है। पहले
चरण में इलाहाबाद शहर का सौंदर्यीकरण होना है तो दूसरे चरण में संगम के आसपास मेला
स्थल की तैयारियां पूरी करनी हैं। यह तैयारी तब शुरू होगी जब बारिश के बाद
गंगा-यमुना का जलस्तर कम होगा।
ऐसे में दूसरे चरण
की तैयारी अगले 15 दिनों के
भीतर शुरू होगी, लेकिन पहले
चरण की तैयारियां कागजों पर जितने जोरों पर चल रही हैं उतनी हकीकत में नहीं दिखाई
पड़ रहीं। इन तैयारियों के लिए जरूरी बजट का 70 फीसदी राज्य सरकार मुहैया करा रही है तो
बाकी 30 फीसदी
केंद्र सरकार।
महाकुंभ के सभी काम
2,150 करोड़ रु.
में निबटेंगे जिसमें से अब तक 669 करोड़ रु। का बजट जारी हो चुका है। किसी भी
शहर का सौंदर्य उसकी सड़कों पर टिका होता है। यही समझते हुए इलाहाबाद में भी
सौंदर्यीकरण के कार्य की शुरुआत सड़कों से हुई। इसके लिए लोक निर्माण विभाग
(पीडब्ल्यूडी) को 400 करोड़ रु.
का बजट मिला।
मार्च-अप्रैल के
महीने में सड़कों को चौड़ा करने, उनके बीच डिवाइडर बनाने और चौराहों को नया
रूप देने की कवायद शुरू हुई। यहीं से ही प्रशासनिक कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार का
संगम भी दिखने लगा। सबसे पहले तो सड़कों को चौड़ा किए बगैर शहर के 18 चौराहों पर काम
शुरू हुआ। इन कार्यों से जनता को तकलीफ हुई और जब प्रशासनिक अधिकारियों ने उसकी न
सुनी तो मामला इलाहाबाद हाइकोर्ट में गया और न्यायालय ने चौराहों के निर्माण और
सौंदर्यीकरण पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी।
स्थिति यह है कि हर
जगह खुदी पड़ी सड़कें शहर की पहचान बन गई हैं। जवाहरलाल नेहरू अर्बन रिन्यूवल मिशन
(जेएनएनयूआरएम) के तहत पूरे शहर में सीवर पाइपलाइन डालने का काम भी अभी तक महज 60 फीसदी ही पूरा हुआ
है। बदतर तो यह कि बरसात के दिनों में पाइपलाइन के लिए खोदे गए गड्ढों में डाली गई
मिट्टी नीचे बैठ गई और शहर की सड़कें जगह-जगह धंस गईं।
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