नेताओं को कैसे
दिखाएंगे आईना
(दिव्या शर्मा)
नई दिल्ली (साई)।
किसी ने कहा है ‘मैं आईना
हूं मेरी अपनी जवाबदारी है, जिसे कुबूल न हो सामने से हट जाए‘। अब वक्त आ गया है
कि सियासत में बैठा हर नेता भागने की बजाए आईने का सामना करे और संसद देष और जनता
के प्रति जवाबदेह बने। अगर वह अपनी नैतिक जिम्मेदारियां पूरी तरह भूल चुके हैं तो
हमारी कानूनी व्यवस्था के जरिए आवाम को इन्हें आईना दिखाना होगा। सीएजी जैसे
स्वतंत्र निकाय यह काम कर रहे हैं जिसके जरिए कोल ब्लॉक आवंटन और कई बड़े घोटाले
सामने आए हैं। इसी तरह सीबीआई को भी सरकारी दबाव से बाहर लाना बेहद जरूरी हो चुका
है। कब तक प्रगति और विकास के नाम पर रोज नए घोटाले सामने आते रहेंगे। कब तक चर्चा
के नाम पर खानापूर्ति कर संसदीय सत्र का समय और पैसा बर्बाद होता रहेगा। बहस में
उलझा कर कब तक सत्ता पक्ष खुद को पाक साफ बताकर निकल जाएगी। रिमोट कंट्रोल्ड जांच
एजेंसिया बनाकर कब तक जनता को भ्रमित किया जाता रहेगा।
मौजूदा हालात बता
रहे हैं कि एक और सत्र घोटाले की भेंट चढ़ जाएगा और सभी नेतागण 2014 के लिए अपने
अपने समीकरण बनाने में जुट जाएंगे। मोटी रकम और ब्लैकमेलिंग जैसे षब्दों को मुद्दा
बनाकर डायवर्षन की सियासत कर रही कांग्रेस षायद यह भूल गई है कि उनके नेताओं ने भी
सभ्य संसदीय आचरण का उदाहरण नहीं दिया है। जीरो लॉस की दलील देने वाली सरकार 2जी
और कॉमनवैल्थ घोटाले में मुंह की खा चुकी है और अब कोयला आवंटन में भी उसके हाथ
काले नज़र आ रहे हैं। वहीं कोयले पर कोहराम की कालख विपक्ष के दामन पर भी है। भाजपा
नैतिक जिम्मेदारी लेकर प्रधानमंत्री से इस्तिफा मांग रही है। वहीं कांग्रेस का
आरोप है कि विपक्ष बहस करने से डर रही है। जवाबी हमले में विपक्ष का कहना है कि
कांग्रेस को जांच से डर क्यों? ब्लैकमेल वही होता है जिसने कोई अनैतिक काम
किया हो। बेषक कोयला आवंटन जिस स्क्रीनिंग कमेटी ने किया है वह कांग्रेस की है
इसलिए वह इन आरोपो से पलड़ा नहीं झाड़ सकते लेकिन इसमें एनडीए भी बेदाग नहीं हैं।
ऐसे मंे प्रधानमंत्री की ईराक यात्रा से क्या उपलब्धि हासिल होगी ये देखने लायक
होगा।
कोल वॉर के बाद से
कभी एनडीए में फूट तो कभी मुलायम का कांग्रेस का साथ छोड़ने जैसे खबरे गरमा रही हैं
। अब पक्ष और विपक्ष इस कोल वॉर को सड़क पर लाकर 2014 और उससे पहले हिमाचल और
गुजरात के चुनावों में फायदा उठाने की तैयारी में हैैं। इससे ज्यादा नेताओं को कोई
लेना-देना नहीं है कि इन घोटालों से देष को कितना आर्थिक नुकसान हुआ है।
इन सबके बीच हर
भारतीय के मन में यही सवाल खड़े हो रहे हैं कि पूरी सियासती बस्ती ने संसद को
स्वार्थपूर्ति का आखाड़ा बना रखा है ऐसे में गणतांत्रिक मर्यादाएं कब तक बची
रहेंगी। क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ देष में उठे जनआंदोलन मौजूदा तस्वीर बदल पाएंगे? कब आम आदमी विष्वास
कर पाएगा कि हमारी कानूनी प्रणाली सियासती लोगों पर भी षिकंजा कस सकती है और
भ्रष्ट नीतियों पर लगाम लगा सकती है । इसके लिए बेहद ज़रूरी है कि सीबीआई को सरकारी
नियंत्रण से मुक्त किया जाए ताकि हर बार की तरह उजागर हुए घोटालों मंे लिप्त
रसूखदार सियासती लोग सीबीआई जांच की आड़ में खुद पर लगे आरोपों का इतिश्री न कर
पाएं। सीबीआई जैसी जांच एजेंसियांे का काम सिर्फ सरकार के इषारों पर उनके खिलाफ
आवाज उठाने वालों पर षिकंजा कसना ही न रह जाए। सियासती जमात को आईना दिखाने के लिए
सीबीआई को स्वतंत्र करना बेहद जरूरी हो चुका है।
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