शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

जल-जमनी: जमा दे पानी भी


हर्बल खजाना ----------------- 17

जल-जमनी: जमा दे पानी भी

(डॉ दीपक आचार्य)

अहमदाबाद (साई)। जंगलों, खेतों की बाड, छायादार स्थानों और घरों के इर्द-गिर्द पायी जाने वाली इस अनोखी वनस्पति को न जाने आपने कितनी बार देखा हो लेकिन इसकी औषधिय महत्ता को कम लोग ही जानते है। इस वनस्पति का वैज्ञानिक नाम कोक्युलस हिरसुटस है।
जल को जमा देने के गुण की वजह से इसे जल-जमनी कहा जाता है। यदि इसकी कुछ पत्तियों को लेकर कुचल लिया जाए और इसे पानी में मिला दिया जाए तो कुछ ही देर में पानी जम जाता है अर्थात पानी एक जैली की तरह हो जाता है। आदिवासीयों का मानना है कि इस मिश्रण को यदि मिश्री के साथ प्रतिदिन लिया जाए तो पौरुषत्व प्राप्त होता है।
य़ही फ़ार्मुला गोनोरिया के रोगी के लिये भी बडा कारगर है। पत्तियों के काढे का सेवन दस्त, ल्युकोरिया और पेशाब संबंधित तमाम रोगों के निवारण के लिये किया जाता है। पातालकोट के आदिवासी जल-जमनी की पत्तियों और जडों को अच्छी तरह पीसकर जोडों के दर्द में आराम के लिये उपयोग में लाते है। यदि इसी मिश्रण में अदरख और शक्कर मिलाकर लिया जाए तो यह अपचन और कब्जियत में फ़ायदा देता है।
डाँग- गुजरात के आदिवासी सर्पदंश होने पर दंशित व्यक्ति को जल-जमनी की जडें (१० ग्राम) और काली मिर्च (४ ग्राम) को पानी में पीसकर रोगी को प्रत्येक १५ मिनट के अंतराल से पिलाते है। आदिवासियों का मानना है कि इस मिश्रण को देने से उल्टियाँ होती है और जहर का असर कम होने लगता है। (साई फीचर्स)

(लेखक हर्बल मामलों के जाने माने विशेषज्ञ हैं)

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