सरकार की चोरी पर
सुप्रीम कोर्ट की सीनाजोरी
(विस्फोट डॉट काम)
नई दिल्ली (साई)।
टूजी स्पेक्ट्रम का आवंटन हो या फिर कोयला ब्लाक का आवंटन, वह घोटाला इसलिए है
क्योंकि आवंटन का तरीका गलत था। गलत तरीके का इस्तेमाल करके मनमानी तरीके से
मनपसंद लोगों को फायदा पहुंचा दिया गया। जिन घोटालों पर संसद पिछले करीब साल भर से
अस्त व्यस्त है और सरकार को सफाई नहीं सूझ रही थी, सरकार के उस संकट
को अब माननीय सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी से बड़ी राहत मिल गई है। सुप्रीम कोर्ट
ने आज टिप्पणी की है कि सिर्फ नीलामी ही आवंटन का एकमात्र तरीका नहीं हो सकता।
हालांकि माननीय
सुप्रीम कोर्ट ने इसे सिर्फ सुझाव के तौर पर ही कहा है लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट
यह सुझाव सरकार को कितना पसंद आया है यह तत्काल कपिल सिब्बल की टिप्पणी से पता चल
जाता है। माननीय सुप्रीम कोर्ट के इस संक्षिप्त सुझाव से सरकार को अपनी समस्त चोरी
पर सीनाजोरी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पूरा मौका जो दे दिया है।
टूजी स्पेक्ट्रम
घोटाले का सार यही था कि नियम कानूनों में बदलाव करके नीलामी नीति को प्रभावित
किया गया। कमोबेश यही आरोप कोयला आवंटन में भी सरकार पर लग रहा है। अगर सरकार के
आवंटन के तरीकों को सही मान लिया जाए तो कहीं कोई घोटाला हुआ ही नहीं। स्पेक्ट्रम
का बाजार मूल्य निर्धारित करने का विवेक सरकार के पास सुरक्षित है। इसी तरह अगर
उद्योग जगत को बढ़ावा देने के लिए सरकार एक रुपये एकड़ के हिसाब से कारोबारियों को
सौ साल के पट्टे पर जमीन दे सकती है तो बिजली उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के
लिए कोयले के ब्लाक निजी घरानों को वांक्षित तरीके से दे दिये जाते हैं तो इसमें
बुराई क्या है? सब जानते
हैं कि कारोबारी पेट भरने के लिए कम से कम कोयला तो नहीं खायेगा। वह कोयला पायेगा
तो बिजली ही बनायेगा।
लेकिन घोटाला इसलिए
है क्योंकि आवंटन में जो पूर्व निर्धारित सरकारी नियम हैं उनकी अनदेखी की गई।
नियमों की खिल्ली उड़ाई गई। और जब सरकारी नियमों को तोड़ा मरोड़ा जाता है तो निश्चित
ही किसी न किसी को फायदा पहुंचाया जाता है। इसी से भ्रष्टाचार का जन्म होता है। तो
फिर भला, सुप्रीम कोर्ट
यह सुझाव कैसे दे सकता है कि आवंटन की एक ही नीति नहीं हो सकती? क्या सुप्रीम कोर्ट
यह सुझाव दे दिया है कि देश का एक ही संविधान नहीं हो सकता? देश में एक ही
सुप्रीम कोर्ट नहीं हो सकती? सरकार का अस्तित्व तभी तक होता है जब तक वह
एक नीति पर कायम है। जिस दिन एक ही काम के लिए अनेक नीतियां पैदा कर दी जाएंगी, देश को बनाना
रिपब्लिक बनने से कौन रोक पायेगा?
लेकिन माननीय
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी है इसलिए लोकतंत्र में अब वही आखिरी सत्य है। लेकिन
माननीय सुप्रीम कोर्ट की इस संक्षिप्त टिप्पणी से लोक खजाने को लगा करीब चार लाख
करोड़ का वह घाटा पूरा हो जाएगा जो इन दो आवंटनों के दौरान लगा है? माननीय सुप्रीम
कोर्ट से पूछने की हिमाकत कौन करेगा?
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