गुरुवार, 15 सितंबर 2011

क्रेशर और खदानों के मजदूरो की जान से खिलवाड़

क्रेशर और खदानों के मजदूरो की जान से खिलवाड़

सिलिकोसिस की जानलेवा बीमारी की जद में हैं अधिकांश मजदूर

मालिकों द्वारा नहीं कराया जाता मजदूरों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण

(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। देश भर में गिट्टी बनाने के लिए पत्थर तोड़ने वाले क्रेशर और कोयला एवं पत्थर खदानों व रेत का काम करने वाले मजदूरों का जीवन अब खतरे से खाली नहीं है। नियमित स्वास्थ्य जांच के अभाव में यहां काम करने वाले मजदूर सिलिकोसिसनामक बीमारी की जद में आ चुके हैं। मध्य प्रदेश में मंदसौर, पन्ना, झाबुआ, अलीराजपुर, जबलपुर, कटनी आदि में सिलिकोसिस के मजदूर बहुतायत में मिलने की संभावनाएं जताई जा रही हैं।


राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के सूत्रों का कहना है कि देश भर से इस तरह की शिकायतें मिल रहीं है। सूत्रों ने कहा कि पूर्व में आयोग द्वारा 22 नवंबर 2010 में मंदसौर के तीन परिवार जो सिलिकोसिस से पीड़ित थे को तीन तीन लाख रूपए का मुआवजा देने के निर्देश दिए थे। मानव अधिकार आयोग के पास आने वाली शिकायतों के अंबार में मध्य प्रदेश पहले दस राज्यों में अपने आप को रख रहा है।


चिकित्सकों के अनुसार यह बीमारी इतनी खतरनाक है कि इस बीमारी के होने पर इसका कोई उपचार ही नहीं है। बस इससे बचाव ही इसका एकमात्र रास्ता है। चिकित्सकों ने बताया कि सांस तेज चलना, सीने में जकड़न, वजन में कमी, खांसी का ठीक न होना इसके प्रमुख लक्षण हैं। दरअसल पत्थर तोड़ने के दौरान निकलने वाली धूल के कण जब स्वांस के माध्यम से अंदर जाते हैं, तब ये फैंफड़ों में जाकर जम जाते हैं।


सूत्रों ने बताया कि आयोग जल्द ही देश भर के जिला कलेक्टर्स को निर्देश जारी करने वाला है जिसमें उनके जिलों में चल रहे स्लेट उद्योग, क्रेशर, पत्थर फोड़ने के काम, मार्बल उद्योग यहां तक कि पन्ना की हीरे की खदानों तक में काम करने वाले मजदूरों का बाकायदा स्वास्थ्य परीक्षण समय समय पर करवाया जाए। इसके लिए इन उद्योगों के मालिकों को ही पाबंद किया जाए।

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