राष्ट्रभाषा हिन्दी या हिंग्लिश!
अंग्रेजी हिन्दी के सम्मिश्रण को दी सरकार ने मान्यता
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा के तौर पर मान्यता मिली हुई है। हिन्दी के विकास के लिए अलग से विभाग का गठन भी किया गया है। देश पर पश्चिमी सभ्यता किस कदर हावी हो चुकी है और किस तरह लोग पश्चिमी देशों पर निर्भर होते जा रहे हैं उसका नायब उदहारण है हाल ही में केंद्र सरकार के एक परिपत्र में देखने को मिला। जिस तरह निजी कोरियर कंपनियों को बढ़ावा देने के लिए पोस्टल विभाग की कार्यप्रणाली में ढील पोल लाई गई। राज्यों में सड़क परिवहन को बंद करने के लिए नेशनल परमिट की अवैध यात्री बसों को सड़कों पर दौड़ने दिया गया उसी तरह अब राष्ट्रभाषा हिन्दी का अस्तित्व भी खतरे में ही दिखाई देने लगा है।
कठिन हिंदी शब्दों से आने वाली समस्याओं से पार पाने के लिए सरकार ने अनुभाग अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे आसानी से समझ में आने और भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए वैसे शब्दों की जगह हिन्दी और अंग्रेजी के सम्मिश्रण ‘हिंग्लिश’ शब्दों का प्रयोग करें। यह आदेश गृह मंत्रालय की राजभाषा इकाई ने जारी किया। इसे हाल में विभिन्न कार्यालयों में फिर से भेजा गया है। इसमें आधिकारिक तौर पर उल्लेख किया गया है कि विशुद्ध हिंदी के इस्तेमाल से आम जनता में अरुचि पैदा होती है।
परिपत्र में अनुशंसा की गई है कि आधिकारिक कामों के लिए कठिन हिंदी शब्दों की जगह देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के वैकल्पिक शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है। गृह मंत्रालय में आधिकारिक भाषा विभाग ने उदाहरण देते हुए कहा कि ‘मिसिल’ की जगह फाइल का इस्तेमाल किया जा सकता है। ‘प्रत्याभूति’ की जगह ‘गारंटी’, ‘कुंजीपटल’ की जगह की-बोर्ड और ‘संगणक’ की जगह ‘कंप्यूटर’ का इस्तेमाल किया जा सकता है।
इसमें लोकप्रिय हिंदी शब्दों और वैकल्पिक अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने की भी वकालत की गई है ताकि भाषा को और आकर्षक तथा दफ्तरों और आम जनता के बीच इसे लोकप्रिय बनाया जा सके। परिपत्र में कहा गया है कि जब भी आधिकारिक काम के दौरान अनुवाद की भाषा के तौर पर हिंदी का इस्तेमाल किया जाता है तो यह कठिन और जटिल बन जाती है। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद की प्रक्रिया में बदलाव करने की तत्काल आवश्यकता है। शब्दशरू हिंदी करने की बजाय अनुवाद में मूल पाठ का भावानुवाद होना चाहिए।
आधिकारिक पत्राचार में उर्दू, अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के लोकप्रिय शब्दों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। हिंदी के शुद्ध शब्द साहित्यिक उद्देश्यों के लिए होने चाहिए, जबकि काम के लिए व्यावहारिक ‘मिश्रित’ शब्दों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसमें कहा गया है कि शुद्ध हिंदी में अनुवाद करने की बजाय देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर है।
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