0 महाकौशल प्रांत का सपना . . . 3
पूरी तरह समृद्ध है महाकौशल का आंचल
प्राकृतिक और हर तरह के संसाधनों में आत्मनिर्भर होगा महाकौशल
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। महाकौशल प्रांत का अगर निर्माण किया जाता है तो यह प्रांत हर मामले में आत्मनिर्भर साबित हो सकता है। प्राकृतिक और नैसर्गिक संसाधनों के मामले में महाकौशल क्षेत्र का कोई सानी नहीं है। वनोपज के अथाह भण्डार को अपने दामन में सहेजने वाले महाकौशल के नेताओं को चाहिए कि वे महाकौशल की माटी के उपकार का कर्ज चुकाने इस प्रांत के प्रथक गठन के मार्ग प्रशस्त करें।
महाकौशल क्षेत्र में भगवान की अनुपम कृति के बतौर आदिवासी बाहुल्य छिंदवाड़ा जिले का पतालकोट है। इस क्षेत्र में भारिया नामक जनजाति सालों से गुजर बसर कर ही है। इस जनजाति का रहन सहन अपने आप में अनोखा और शोध का विषय है। इसी तरह प्रदेश की ताम्र परियोजना बालाघाट जिले में बैहर क्षेत्र तो छिंदवाड़ा जिले में सौंसर में है।
महाकौशल प्रांत से ही मध्य प्रदेश की जीवनरेखा पुण्य सलिला नर्मदा नदी का उद्गम डिंडोरी के अमरकंटक में तो पुण्य सलिला बैनगंगा का उद्गम सिवनी जिले के मुण्डारा में है। नर्मदा पर बने विशाल जलसंग्रह वाले रानी अवंती बाई सागर परियोजना के बरगी बांध और बैनगंगा पर बने संजय सरोवर परियोजना के एशिया के सबसे बड़े मिट्टी के बांध भीमगढ़ का नजारा ही अकल्पनीय है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त साफ्ट संगमरमर की खदानें भेड़ाघाट में हैं। भेड़ाघाट में ही नर्मदा नदी पर बने जल प्रपात के नयनाभिराम दृश्य देखने के लिए देश विदेश से सैलानी यहां आते हैं। पान में लगाने वाला और दीवारों को सफेद करने वाला चूना भी इसी प्रांत के कटनी और मण्डला जिले में बहुतायत में पाया जाता है।
प्राकृतिक संसाधनों के मामले में महाकौशल का कोई सानी नहीं है। सतपुड़ा की वादियों में छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला, डिंडोरी, बालाघाट जिलों के जंगलों की धरती वनोपज से लदी फदी है। जिसका अगर ठीक तरीके से दोहन कर लिया जाए तो देश विदेश में महाकौशल प्रांत धूम मचा सकता है। आयुर्वेद औषधियों के काम आने वाली जड़ी बूटियां भी इन्हीं जिलों में बहुतायत में पाई जाती है। महाकौशल प्रांत में ही आर्युवेदिक विश्विद्यालय की स्थापना की जाकर आयुष पद्यति को तेजी से बढ़ावा दिया जा सकता है।
(क्रमशः जारी)
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