गुरुवार, 19 मार्च 2009

१९ मार्च

पर्यावरण फ्रेंडली है ईव्हीएम

- दस हजार टन कागज की होगी बचत

- सुजाता ने किया था ईव्हीएम का अविष्कार

- 64 से ज्यादा उम्मीदवार नहीं सहन कर सकती ईव्हीएम

(लिमटी खरे)


भले ही केंद्र और राज्य सरकारें जंगलों की अंधाधुंध कटाई के मसले पर आंख बंद कर बैठी हों, पर दक्षिण भारत के एक प्रसिद्ध फिल्मकार स्व. सुजाता द्वारा बनाई गई इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईव्हीएम) से देश में पर्यावरण को काफी हद तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
हिन्दुस्तान में पहली मर्तबा ईव्हीएम का प्रयोग 1982 में केरल के पारूर विधानसभा क्षेत्र में किया गया था, जिसमें महज 50 मतदान केंद्रों पर बतौर प्रयोग इसे इस्तेमाल में लाया गया था। इस दौरान इसके प्रयोग पर उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी। 5 मार्च 1984 को सुप्रीम कोर्ट ने इसके प्रयोग पर पाबंदी लगा दी थी। यह रोक जनप्रतिनिधित्व कानून 1951की धारा 59 के तहत लगाया गया था, जिसमें उल्लेखित था कि चुनाव में वोट देने के लिए मतपत्र का उपयोग किया जाए। इसके आधार पर ईव्हीएम में पड़े वोट मान्य नहीं होंगे।
इसके बाद न्यायालय ने इस कानून में बदलाव की सिफारिश की थी। 1990 में इसके प्रयोग में आने वाली व्यवहारिक और नैतिक बारीकियों के अध्ययन के लिए एक कमेटी का गठन किया गया, जिसकी सिफारिशों के उपरांत कानून में जरूरी संशोधन किया गया था, इसके बाद से ईव्हीएम का प्रयोग बदस्तूर जारी है।
वर्तमान में ईव्हीएम का निर्माण भारत सरकार के स्वामित्व वाली भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड और इलेक्ट्रानिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। इसकी यह विशेषता है कि इसे विद्युत विहीन इलाकों में भी प्रयोग में लाया जा सकता है। अगर प्रत्याशियों की संख्या 64 से ज्यादा हो तो वेलेट पेपर (मतपत्र) और वेलेट बाक्स का प्रयोग करना होता है, साथ ही एक ईव्हीएम में 3840 मत ही डाले जा सकते हैं।
मतदान और उसका परिणाम ईव्हीएम की मेमोरी चिप में स्थाई रूप से दर्ज हो जाता है। इसकी बेटरी हटा देने पर भी इसकी मेमोरी मेें ठीक उसी तरह कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जिस तरह मोबाईल की बेटरी निकाल लेने पर उसमें दर्ज मेमोरी पर नहीं पड़ता है। पिछले आम चुनावों (2004) में 10 लाख 75 हजार ईव्हीएम का प्रयोग किया गया था।
पर्यावरण के मामले में इसे ईको फ्रेंडली माना जा सकता है। इस बार इसके प्रयोग से लगभग 10 हजार टन कागज की बचत होने का अनुमान है। इससे कागज के लिए लकड़ी काटने से मुक्ति मिलेगी। ईव्हीएम को तैयार कर सुजाता ने पर्यावरण के लिए शुभ संकेत के तौर पर तैयार किया था। गौरतलब होगा कि 1996 के आम चुनावों में 8 हजार आठ सौ टन तो 1999 में 7 हजार 700 टन कागज का प्रयोग किया गया था।
वैसे भी भारत को विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है, में लगभग 71 करोड़ मतदाता एक साथ अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं। यह आबादी विश्व के तकरीबन 160 छोटे बड़े देश की आबादी से भी कहीं अधिक है। सुजाता के इस अभिनव अविष्कार के बाद बैलेट पेपर चुनावी महाकुंभ के परिदृश्य से एकदम ही गायब हो गया है।
गौरतलब होगा कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम), के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और जाने माने लेखक एस रंगराजन का पिछले दिनों निधन हो गया है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास से इलेक्ट्रानिक इंजीनियर रंगराजन भारत इलेक्ट्रानिक लिमिटेड में महाप्रबंधक, शोध और विकास, थे और देश में मतदान के लिए उपयोग में लाई जा रही ईवीएम मशीन का डिजाइन में उन्होंने महती भूमिका निभाई।
आज आजादी के साठ सालों बाद अगर भारत में पलक झपकते ही मतगणना का काम हो जाता है, वह भी बिना किसी अड़चन के तो इसके लिए समूचा श्रेय जाता है सुजाता रंगनाथन को। भारत इलेक्ट्रानिक्स में अपने कार्यकाल के दौरान सुजाता ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन के निर्माण के लिए गठित दल का नेतृत्व बखूबी किया।
उनके द्वारा अविष्कृत वोटिंग मशीन आज लगभग सभी चुनावों का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। इसके नतीजों की शुद्धता और निर्विवाद होने पर सवालिया निशान नहीं लग सके हैं।दक्षिण भारत की प्रसिद्ध मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी से इलेक्ट्रानिक्स में स्नातकोत्तर डिग्री लेने वाले सुजाता ने अपने केरियर की शुरूआत भारत सरकार के नागरिक एवं उड्डयन विभाग से की। इसके बाद उन्होंने अपनी सेवाएं बंग्लुरू के भारत इलेक्ट्रानिक्स में महाप्रबंधक (शोध और विकास) के रूप में दे दीं।
इतना ही नहीं तमिल सिनेमा में सफलता के सभी रिकार्ड ध्वस्त करने वाली सुपरस्टार रजनीकांत अभिनीत फिल्म `शिवाजी` की पटकथा के लेखक और कोई नहीं सुजाता रंगराजन ही थे। इसके साथ ही साथ कमल हासन अभिनीत `दशावतारम` की पटकथा भी सुजाता की ही लेखनी से निकली थी। मणिरत्नम की मशहूर हिन्दी फिल्म `रोजा` के संवाद किसी ओर ने नहीं वरन् सुजाता ने ही लिखे थे।


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सुषमा के लिए आसान नहीं है विदिशा की राह

- आड़वाणी के बाद सदन में सबसे शक्तिशाली होने का खतरा सता रहा है विरोधियों को

- अरूण जेतली ने भी चालू की भांजी मारना

- विदिशा से साधना को उतारना चाहते थे शिवराज

- वरूण के बाद अब सुषमा को झेलना पड़ सकता है बाहरी होने का दर्द


(लिमटी खरे)


नई दिल्ली। मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट वैसे तो भाजपा का सुरक्षित गढ़ मानी जाती रही है, किन्तु आने वाले समय में यह गढ़ कितना सुरक्षित रह पाएगा, यह कहा नहीं जा सकता है। विदिशा से भाजपा की घोषित प्रत्याशी सुषमा स्वराज के लिए यह सीट निकालना काफी कठिन साबित हो सकता है।
यह सच है कि सुषमा स्वराज में खूबियां अनगिनत हैं। आम भारतीय नारी की छवि के साथ ही साथ वे कुशल और हाजिर जवाब वक्ता भी हैं। दिल्ली राज्य पर राज कर चुकीं सुषमा की गिनती भाजपा में आधार वाले नेताओं में की जाती है।
गौरतलब होगा कि विदिशा सीट को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बड़े जतन से सींचा था। राज्य के मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट को उन्होंने अपने विश्वस्त रामपाल सिंह के हवाले कर दिया था। अब लोक सभा चुनावों में शिवराज इस सीट को पुन: अपने कब्जे में लेना चाहते थे, इसी लिए उन्होंने अपनी पित्न साधना सिंह का नाम इस सीट से रखा था।
भाजपा के आला दर्जे के सूत्रों का कहना है कि चौहान ने संघ और भाजपा के आला नेताओं के सामने तर्क रखा था कि विदिशा की जनता किसी बाहरी को पचा पाने की स्थिति में नहीं है। (गौरतलब होगा कि इससे पहले शिवराज के त्यागपत्र के बाद इस सीट से वरूण गांधी के नाम पर विचार के दौरान बाहरी कार्ड खेलकर शिवराज ने वरूण का पत्ता कटवा दिया था)
सूत्रों ने बताया कि आला नेताओं को शिवराज की बात जम गई पर एक नेता ने फच्चर फसाते हुए कहा कि सभी इसके लिए सहमत हो सकते हैं, बशतेZ आप (शिवराज सिंह) मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दें। क्योंकि एक ही परिवार से दो पद नहीं दिए जा सकते।
इस पर शिवराज सिंह ने तर्क दिया कि पार्टी ने मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा के पुत्र दुष्यंत, जसवंत सिंह के पुत्र मानवेंद्र, धूमिल के पुत्र अनुराग ठाकुर, मेनका गांधी के पुत्र वरूण सभी को पार्टी ने उपकृत किया है, फिर शिवराज सिंह के साथ यह दोयम दर्जे का व्यवहार क्यों? शिवराज के अकाट्य तकोZ के बावजूद भी पार्टी हाईकमान ने उन्हें साफ इंकार कर दिया था।
बहरहाल भाजपा के सुरक्षित गढ़ विदिशा से पार्टी ने सुषमा स्वराज को उतार दिया है। इससे पार्टी के अनेक नेताओं की नींद हराम हो गई है। लोगों का मानना है कि भले ही आड़वाणी प्रधानमंत्री न बन पाएं, मगर उनके बाद सदन में सबसे शक्तिशाली नेता और नंबर वन स्पीकर के रूप में सुषमा स्वराज ही उभरकर सामने आएंगी।
पार्टी के रणनीतिकार सुषमा को सुरक्षित गढ़ से उतारने को अरूण जेतली की नाराजगी से भी जोड़कर देख रहे हैं। जेतली समर्थकों ने इस बात के लिए एडी चोटी एक कर दी थी कि सुषमा मघ्य प्रदेश से कहीं से भी चुनाव न लड़ सकें। इसके पीछे कारण यह बताया जा रहा है कि पार्टी के एक घड़े ने मध्य प्रदेश को अपना चारागाह बना रखा है, और सुषमा स्वराज के आने से उनके निहित स्वार्थ सिद्ध होने में अडंगे लग सकते हैं।माना जा रहा है कि विदिशा लोकसभा चुनावों में पार्टी के ही आला नेता सुषमा स्वराज की राह में शूल बोने से नहीं चूकेंगे। भले ही यह सीट भाजपा के लिए शुभ और परंपरागत मानी जा रही हो पर इस बार सुषमा स्वराज को इस सीट पर विजयश्री का वरण करने में नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं।

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