शनिवार, 25 अप्रैल 2009

२५ अप्रैल हिन्दी

विषाक्त होता मध्यान भोजन

(लिमटी खरे)


केंद्र सरकार द्वारा देश भर में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में मध्यान भोजन की योजना लागू की थी। इस योजना को लागू करने के पीछे संभवत: सरकार की दो ही मंशाएं रही होंगी। अव्वल तो यह कि बच्चों को पोष्टिक भोजन मिल सके, वे मन लगाकर पढ़ाई कर सकें और दूसरी यह कि भोजन के लालच में गरीब बेसहारा बच्चे कम से कम प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने स्कूलों की ओर रूख तो करेंगे।
सच्चे मन और समाज कल्याण की भावना से आरंभ की गई इस अभिनव योजना में भी भ्रष्टाचारियों ने पलीता लगा दिया। इस योजना के लागू होते ही जगह जगह से मिड डे मील में गड़बड़ियों के सुर बुलंद होने लगे। जमीनी स्तर पर इस योजना में व्यापक घालमेल भी हुआ है।
कितने आश्चर्य की बात है कि बच्चों से जुड़ी इस योजना के क्रियान्वयन के लिए देश के सर्वोच्च न्यायालय को हस्ताक्षेप करना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि आंगनवाड़ी केन्द्रों के जरिये तीन से छह साल के बच्चों को सुबह का नाश्ता और गर्म भोजन दिया जाए। कोर्ट ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को दिसंबर तक योजना लागू करने का आदेश दिया है। साथ ही अगले वर्ष 15 जनवरी तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। समेकित बाल विकास योजना के तहत बच्चों को पूरक पोषाहार दिए जाने के बारे में केंद्र सरकार द्वारा दाखिल हलफनामा देखने के बाद कोर्ट ने ये निर्देश जारी किए।
वस्तुत: स्कूल प्रशासन की लापरवाही के चलते मध्यान भोजन बच्चों के लिए पोष्टिक तो कम जान लेवा ज्यादा हो गया है। हमारा दुर्भाग्य तो यह है कि स्कूल प्रशासन इस तरह के वाक्यातों से सबक लेकर इन्हें रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाता है। देश भर के स्कूलों में न जाने कितने बच्चों को विषाक्त भोजन दिया जा रहा होगा।
हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं कि रोजना हर प्रदेश के न जाने कितने अखबार बदबूदार या कीड़े युक्त सड़े भोजनों की खबरों से अटे पड़े रहने के बाद भी केंद्र सरकार, राज्य सरकार और जिला प्रशासन भी इससे सबक नहीं लेता है। राजधानी दिल्ली के लाजपत नगर इलाके के एक स्कूल में विषाक्त भोजन करने से 34 बच्चों का बीमार होना अपने आप में एक बड़ी बात है। जब देश की राजनैतिक राजधानी का यह आलम है, तो फिर सुदूर अंचलों की कल्पना मात्र से ही रूह कांप उठती है।
आज यक्ष प्रश्न तो यह है कि मध्यान भोजन में अनियमितताओं की शुरूआत हुई थी तब सरकारों ने कारगर कदम क्यों नहीं उठाए? जाहिर है किसी को भी इस ओर देखने की फुर्सत नहीं है। अमूमन स्कूल प्रशासन भी मध्यान भोजन बनाना और बांटना एक बोझ से कम नहीं समझता है। ग्रामीण अंचलों में तो जंगलों का सफाया कर बच्चों से ही पढ़ाई के स्थान पर भोजन बनवाने की बातें भी सामने आती हैं।
संभव है मध्यान भोजन बनाना और परोसना दोनों ही कार्यों में स्कूल प्रशासन को कुछ व्यवहारिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता हो, किन्तु इसका मतलब यह तो नहीं हो जाता कि अपनी समस्या के बदले नौनिहालोंं को गंदा बदबूदार भोजन परोसा जाए। हद तो तब हो जाती है जब महिला प्राचार्या भी इस मामले में अनदेखी कर देतीं हैं। हमारे कहने का तातपर्य महज इतना ही है कि क्या वे अपने बच्चों को भी इस तरह का भोजन बनाकर परोसने की हिमाकत कर सकेंगी।
इस मामले में एक तथ्य यह भी उभरकर सामने आया है कि मध्यान भोजन के लिए खरीदे जाने वाले अनाज और जिंसों में भी भ्रष्टाचार की दीमक लग चुकी है। अपने मुनाफे के लिए सड़ा गला घुन लगा अनाज और सब्जियां, दाल ही इन बच्चों के निवालों में परोसा जा रहा है।
अभी भी देर नहीं हुई है, सरकारों को चेतन होगा और इस योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदारी निर्धारित करना आवश्यक है। कहीं एसा न हो कि बच्चों को पोष्टिक भोजन देकर स्वास्थ्य बनाने की यह योजना आने वाले दिनों में बच्चों के लिए काल स्वरूप साबित न हो जाए।


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दिल्ली के लिए मध्य प्रदेश के दो दिग्गज होंगे स्टार प्रचारक

शिवराज और ज्योतिरादित्य की मांग सर्वाधिक

बचे कद्दावर नेताओं को नहीं मिला न्योता

(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। चुनावी महासमर में राजधानी दिल्ली की सात सीटों के लिए देश भर से स्टार प्रचारकों का जमावड़ा जल्द ही होने वाला है। इस फेहरिस्त में जिन नामों का शुमार है, उनमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और युवा तुर्क पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अव्वल हैं।
मध्य प्रदेश में वैसे तो भाजपा के पास सुषमा स्वराज के अलावा और कोई क्षत्रप एसा नहीं है, जो राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिलब्ध हो। कांग्रेस के पास अलबत्ता अजुZन सिंह, कमल नाथ, सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, जमुना देवी, उर्मिला सिंह आदि की लंबी फेहरिस्त होने के बाद भी युवा तुर्क ज्योतिरादित्य की मांग सर्वाधिक आ रही है। शेष बचे नेताओं को सभाओं के लिए बुलौआ नहीं भेजा गया है। माना जा रहा है कि राज्यों के निजामों को राजधानी दिल्ली में चुनावी सभाओं के लिए आमंत्रित किया जाएगा।
एक ओर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, हरियाणा के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दिल्ली की शीला दीक्षित जहां कांग्रेस की अगुआई में होंगी, वहीं पार्टी महासचिव राहुल गांधी,, राज बब्बर से इतर सिंधिया घराने के ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनावी सभाओं को संबोधित करते नजर आएंगे। कांग्रेस के आला सूत्रों का कहना है कि इस महासमर में जम्मू काश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के अलावा कुछ फिल्मी सितारों को भी बुलाए जाने की संभावना है।
उधर भाजपा ने भी कांग्रेस के इस गढ़ को भेदने के लिए सारी तैयारियां कर ली हैं। भाजपा की ओर से पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी, फायर ब्रांड नेता और गुजरात के निजाम नरेंद्र मोदी, सुषमा स्वराज, उत्तराखण्ड के सीएम भुवनचंद खण्डूरी, भाजपा के गांधी माने जाने वाले वरूण गांधी, नवजोत सिंह सिद्धू, राजनाथ सिंह के अलावा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतारा जाएगा।
बसपा सुप्रीमो मायावती भी 3 मई को रामलीला मैदान में शक्ति प्रदर्शन के साथ अपने सातों उम्मीदवारों को एक साथ लेकर मैदान में उतरेंगी।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के कद्दावर नेताओं को दिल्ली की सभाओं को संबोधित करने न बुलाए जाने को लेकर तरह तरह की चर्चाओं का बाजार गर्मा गया है। राजनैतिक हल्कों में चल रही बयार के मुताबिक विधानसभा चुनावों में आपसी सर फुट्व्वल के चलते प्रदेश के क्षत्रपों ने अपनी अपनी साख गवां दी है।
मध्य प्रदेश में अब उभरते हुए सितारे के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही देखा जा रहा है। जानकारों का मानना है कि वर्तमान में ज्योतिरादित्य का क्रेज कुछ उसी तरह सर चढ़ कर बोल रहा है, जिस तरह अस्सी के दशक में कुंवर अजुZन सिंह का तो नब्बे के दशक में कमल नाथ का था।


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भगवा गांधी से परेशान हैं भाजपा दिग्गज

तेजी से बढ़ते लोकप्रियता के ग्राफ ने उड़ाई क्षत्रपों की नींद

वरूण फेक्टर बना अगि्रम पंक्ति के नेताओं के लिए परेशानी का सबब


(लिमटी खरे)

नई दिल्ली। किसी ने सच ही कहा है कि आजाद भारत में सत्ता की धुरी गांधी नेहरू परिवार के इर्द गिर्द ही घूमती प्रतीत होती है। कांग्रेस में जहां इंदिरा गांधी,, राजीव गांधी के बाद अब कमान सोनिया और गांधी नेहरू परिवार की पांचवी पीढ़ी राहुल के हाथ में है, तो वहीं दूसरी ओर भाजपा में अब भगवा गांधी अवतरित हुए हैं।
एक ओर जहां भाजपा के युवा उम्मीदवारों द्वारा प्रचार के लिए वरूण गांधी की जबर्दस्त मांग की जा रही है, वहीं दूसरी ओर भाजपा के शीर्ष नेताओं ने उन्हें पिंजरे में बंद करने की ठान ली है। भाजपा के आला दर्जे के सूत्रों की माने तो वरूण गांधी को उनके संसदीय क्षेत्र पीली भीत और उनकी मां मेनका के क्षेत्र आंवल तक ही सीमित रहने का मशविरा दिया गया है।
सूत्रों का कहना है कि भाजपा के आला नेता परेशान हैं कि वरूण फेक्टर से निपटा कैसे जाए? यद्यपि वरूण गांधी ने उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को जीवनदान अवश्य दिया है, भाजपा नेता वरूण फेक्टर को केश कराने को तो आमदा हैं, पर वे वरूण के हाथ में नेतृत्व देने को तैयार नहीं हैं।
उधर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिन्दु परिषद के साथ ही साथ शिवसेना द्वारा वरूण को पाश्र्व से निकालकर फ्रंटफुट पर लाने की पैरवी की जा रही है, ताकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही में (राहुल) गांधी वसेZस (वरूण) गांधी की बिसात बिछाई जा सके।
माना जा रहा है कि अगर वरूण के तेवरी इसी तरह तल्ख रहे तो जल्द ही वे तरूणाई के प्रतीक बन जाएंगे तथा भाजपा के उमर दराज नेताओं को वरूण की चिरोरी के लिए मजबूर होना पड़ेगा जो उन्हें गवारा नहीं होगा।

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