खतरनाक होता लाल गलियारा!
(लिमटी खरे)
पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी से निकलकर समूचे भारत में साम्राज्य फैलाने वाले नक्सलवादियों ने लाल गलियारे का दायरा एक के बाद एक कर कमोबेश हर प्रदेश में बढ़ा लिया है। बीते दिनों रांची के पास एक रेलगाड़ी का अपहरण कर नक्सलवादियों ने जता दिया है कि भारत सरकार या प्रदेश सरकारें उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, आंध्रप्रदेश, उड़ीसा आदि राज्यों में नक्सलवादियों की बढ़ती गतिविधियों से आम आदमी का चिंतित होना स्वाभाविक ही है। भले ही सरकारें इस पर संजीदा न हों पर आम आदमी अपने जान माल की सुरक्षा के लिए इस गलियारे से फिकरमंद दिख रहा है।देश के आधे से अधिक राज्यों में नक्सलवादी आतंक के बल पर दशकों से अपनी समानान्तर सरकारें चला रहे हैं। विडम्बना ही कही जाएगी कि नक्सली आतंक वाले क्षेत्रों में प्रदेशों अथवा देश का शासन नहीं वरन् उनका अपना कानून चल रहा है। यह एक एसी कड़वी हकीकत भी है, जिसे सरकारों को स्वीकार करना ही होगा।वस्तुत: नक्सलवादी विचारधारा को खाद किसी कट्टरवादी आधार से नहीं मिल रही है। सामाजिक शोषण के खिलाफ आवाज बुलंद कर नक्सली स्थानीय लोगों को अपना बना लेते हैं। फिर शुरू होता है व्यवस्था सुधारने के नाम पर आतंक का नंगा नाच। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में ही प्रदेश सरकार के तत्कालीन कबीना मंत्री लिखी राम कांवरे की उनके घर पर ही नक्सलियों ने गला रेतकर हत्या कर दी थी, हमारी प्रदेश और केंद्र सरकार तब भी हाथ पर हाथ रखे बैठी रही।आमूमन नक्सलियों के निशाने पर पुलिस, राजस्व और वन विभाग के कर्मचारी होते हैं। दरअसल जनता से इन्हीं विभाग के लोगों का सीधा सामना होता है। इन महकमों के सरकारी नुमाईंदो को डरा धमका कर ग्रामीणों को इंसाफ दिलवा, ये नक्सली अपना प्रभाव क्षेत्र तेजी से बढ़ाने में सफल हो गए हैं।हमारी दम तोड़ती सरकारी व्यवस्था में आज भी इसका विकल्प नहीं खोजा गया है। दरअसल भ्रष्टाचार के सड़ांध मारते सरकारी सिस्टम को सुधारने के लिए उपर से ही सफाई आवश्यक है, जो असंभव है। सरकार यह नहीं सोचती कि इन नक्सलियों को जहां से खाद पानी मिल रहा है, उसी व्यवस्था को अगर सुधार दिया जाए तो आने वाले समय में इनके भूखे मरने की नौबत आ जाएगी।कितने अश्चर्य की बात है लोकतंत्र के इस महाकुंभ के दौरान ही नक्सलवादियों ने रांची से महज सवा सौ किलोमीटर दूर एक रेलगाड़ी का अपहरण कर लिया। वह भी तब जबकि देश पर आतंकवादी खतरा मण्डरा रहा है, और आम चुनाव चल रहे हों। इस घटना से साफ हो जाता है कि हमारे देश में आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति क्या है?लातेहार में घटी इस घटना से नक्सलवादियों ने साफ संकेत दे दिया है कि वे अपने प्रभाव वाले इलाकों मेें अपनी मर्जी से कुछ भी कर सकने में सक्षम हैं। नक्सलियों ने झारखण्ड में रेलगाड़ी पर कब्जा जमाकर सात सौ से ज्यादा यात्रियों को बंधक बनाया, बिहार में बीडीओ के आफिस में बम विस्फोट किया, बीडीओ कार्यालय और चेंबर को बम से उड़ा दिया।इतना ही नहीं बिहार में ही जीटी रोड़ पर आठ ट्रकों को जला कर एक चालक को गोली से उड़ा दिया। पश्चिम बंगाल में तीन सीपीएम कार्यकर्ताओं की हत्या और चार धमाके बारूदी सुरंग से किए। पलामू के उतारी रोड़ रेल्वे स्टेशन पर भी विस्फोट किया।सरकारी तंत्र की सुरक्षा को भेदकर नक्सलियों ने इस तरह की ध्रष्टता का परिचय दिया है। चुनाव के दौरान भी व्यापक हिंसा कर नक्सलवादियों ने अपने इरादे साफ कर दिए थे, कि वे साहूकारी, जमींदारी के साथ ही साथ सरकारी व्यवस्था के अथाZत लोकतंत्र के भी खिलाफ हैं।हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या यह है कि देश की सरकारें नक्सलवाद को कानून और व्यवस्था की ही समस्या मानकार उसका निदान करने का प्रयास करती आईं हैं। वस्तुत: इसकी वजह कुछ लोगों के मुख्यधारा से भटककर अव्यवस्थाओं को अस्त्र बनाने से उभरी है।दशकों से दलित, आदिवासी और सर्वहारा वर्ग जो सामंतशाही के कुचक्र की चक्की में पिसता आया है, को अपनी ताकत बनाकर नक्सली अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने में सफल हो जाते हैं। सरकारों को चाहिए कि पुलिस को वदीZ के साथ ही साथ व्यवहारिक होने का पाठ भी पढ़ाएं ताकि मुख्य धारा से भटके इन भारतवंशियों को वापस मुख्यधारा में लाया जा सके।
कमजोर प्रदर्शन रहा मध्य प्रदेश के सांसदों!
- कमल नाथ, अशोक अर्गल, यशोधरा दिखा न सके करिश्मा
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के संसद सदस्य चौदहवीं लोकसभा में कुछ खास परफारमेंस नहीं दिखा सके। वैसे तो ग्वालियर के अटल बिहारी बाजपेयी उत्तर प्रदेश के लखनउ से निर्वतमान सांसद थे, किन्तु उन्होंने भी सक्रिय रूप से भागीदारी नहीं दिखाई।कांग्रेस के अभैद्य दुर्ग माने जाने वाले मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले का प्रतिनिधित्व कमल नाथ वर्ष 1980 से लगातार करते आ रहे हैं। 1997 के उपचुनाव में सुंदर लाल पटवा के हाथों मात खाने के अलावा उन्होंने कोई चुनाव अब तक नहीं हारा है। संजय गांधी के बालसखा और प्रियदर्शनी इंदिरा गांधी के तीसरे बेटे माने जाने वाले नाथ ने बतौर वाणिज्य और उद्योग मंत्री 23 मई 04 से अब तक कुल पांच विधेयक संसद में पेश किए। इनमें से स्पेशल इकानामिक जोन और सेस लॉ, बिल पारित हो गया किन्तु फेक्ट्री संशोधन बिल अभी लंबित है। सांसद निधि के खर्च में कमल नाथ अव्वल रहे हैं। उन्होंने चार सालों में आठ करोड़ रूपए में से 7 करोड़ दो लाख रूपए खर्च किए हैं।मुरैना सांसद अशोक अर्गल ने कुल 31 प्रश्न पूछे जिनमें से सामाजिक कल्याण के छ:, आर्थिक मुद्दों के तीन, इंफ्रास्टक्चर के आठ, पर्यावारण के चार, जल, एवं स्वास्थ्य के दो एवं अन्य मुद्दों पर आठ प्रश्न पूछे है। सांसद निधि खर्च के मामले में अर्गल ने महज पचास लाख रूपए ही खर्च किए हैं।मण्डला सांसद रहे फग्गन सिंह कुलस्ते ने तो महज पांच प्रश्न ही लोकसभा में उठाए हैं, जिनमें सामाजिक कल्याण और आर्थिक मुद्दों पर दो दो तथा इंफ्रास्टक्चर पर एक प्रश्न पूछा है। आठ करोड़ की सांसद निधि में से इन्होंने महज एक करोड़ नब्बे लाख रूपए ही खर्च किए हैं।ग्वालियर की सांसद रहीं राजघराने की यशोधरा राजे सिंधिया ने बतौर सांसद छ: प्रश्न ही पूछे हैं, तथा सांसद निधि की एक पाई भी खर्च नहीं की है। इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री एवं लखनउ से संसद सदस्य रहे अटल बिहारी बाजपेयी ने न तो एक भी प्रश्न पूछा और न ही सांसद निधि की राशि ही किसी को दी।
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