पानी के लिए विश्व युद्ध का दिखने लगा प्रोमो
पानी को लेकर खिचतीं तलवारें
(लिमटी खरे)
कविवर रहीम का दोहा ``रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून``, आज के समय में पूरी तरह प्रासंगिक होता नजर आ रहा है। किसी ने सच ही भविष्यवाणी की थी कि अगर तीसरा विश्वयुद्ध लडा गया तो निश्चित तौर पर यह पानी के लिए ही लडा जाएगा। आज के समय में पानी को लेकर खिंची तलवारों ने इसके अंकुरण साफ दिखाई पडने लगे हैं।राजधानी दिल्ली सहित देश के हर हिस्से में पानी को लेकर जबर्दस्त मारकाट मची हुई है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में एक के बाद एक जानें पानी को लेकर हो रहे झगड़ों में जाती जा रही हैं। उज्जेन की स्थिति कितनी भयावह है इस बात का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है, जहां सप्ताह में एक बार ही पानी की सप्लाई की जा रही हैै। हाल ही में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ के संसदीय क्षेत्र जिला छिंदवाड़ा में दूषित जल पीने से दो लोगों की मौत और 215 के बीमार पड़ने की खबर है।यह प्रदेश और राज्य सरकारों के लिए शर्म की बात है कि पानी जैसी बुनियादी जरूरत मुहैया करवाने में वह विफल है। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय को इसमें दखल देना पडा है। न्यायालय ने साफ कहा था कि अगर पानी नहीं पिला सकते हैं तो पद पर बैठने का हक नहीं है। इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा था कि जल के बिना जीवन संभव नहीं है, अत: इसे हर कीमत पर उपलब्ध कराना सरकार का फर्ज है।राजधानी दिल्ली में पानी की किल्लत की तस्वीर तीन अस्पतालों में दिखाई पड़ रही है। लोकनायक, डीडीयू और जीटीबी अस्पताल में तीन दिन तक शल्य चिकित्सा इसलिए स्थगित रखी गई थी क्योंकि यहां पानी की जबर्दस्त किल्लत थी। कमोबेश देश के हर हिस्से में पानी की भयावह तस्वीर दिखाई पड़ रही है। सुदूर ग्रामीण अंचलों में तो लोग कोसों दूर से पानी लाकर गुजर बसर करने पर मजबूर हैंं।देश की सवा करोड़ से अधिक आबादी में से अस्सी करोड़ से भी अधिक लोगों को साफ पानी मयस्सर नहीं है। देश में पचास फीसदी से अधिक आबादी को साफ पानी नहीं मिल पाता है। वहीं दूसरी ओर देश प्रदेश की सत्ता के सारथी राजनेताओ की बैठकों में मिनरल वाटर की बोतलें टेबिल पर रखी चित्रों में साफ दिख जाती हैं। राजनेताओं और देश की गरीब जनता के बीच के इस फासले को बुंदेलखण्ड की मशहूर कहावत ``घर के लड़का गोही (आम की गुठली) चूसें, मामा खाएं अमावट``!माना जाता है कि हर व्यक्ति को प्रतिदिन पीने से लेकर नित्यकर्म के लिए कम से कम चालीस लीटर पानी की आवश्यक्ता होती है। देश में जनसंख्या के विस्फोट के बाद पानी के स्त्रोतों की कमी निरंतर जारी है। पानी बचाने के लिए शोध भी किए जा रहे हैं, किन्तु सरकारी सहायता के अभाव में ये दम तोड़ रहे हैं।आई आई टी रूड़की के रीडर डॉ.दीपक खरे ने अपने सर गंगाराम इंस्टीट्यूट ऑफ सांईंस एण्ड टेक्नालाजी के कार्यकाल के दौरान सुझाव दिया था कि घरों का उपयोग के उपरांत बहने वाला पानी पुन: प्राकृतिक तरीके से छान कर इसे घरों में संडास में उपयोग किया जाए तो इससे कम से कम 30 फीसदी जल की बचत की जा सकती है। डॉ.खरे की बात में दम था, अगर मध्य प्रदेश में ही उनके सुझावों पर अमल किया जाए तो प्रदेश की तस्वीर बदल सकती है, बाद में सफल होने पर इसे देश में भी लागू किया जा सकता है।पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने नदी जोड़ो योजना की शुरूआत की थी, जिसे पिछले पांच सालों में संप्रग सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया। गुजरात में नरेंद्र मोदी ने नदियों को आपस में जोड़ा। आज गुजरात में हरित क्रांति देखते ही बनती है।कितने आश्चर्य की बात है कि पूरी धरती का तीन चौथाई हिस्सा पानी से ढका होने के बाद भी पानी की मारामारी। सच्चाई यह है कि इसमें से महज तीन फीसदी पानी ही मानव उपयोग के योग्य माना गया है। बढ़ती जनसंख्या और वनों के सफाए के साथ ही कांक्रीट के जंगलों के उगने से तपन में इजाफा हुआ है। तपती धरती में जलसंकट विकराल रूप लेने जा रहा है।शोधकर्ताओं की चिन्ता को बेमानी नहीं कहा जा सकता है कि अगर एक मानसून बिगड़ जाए या कम हो जाए तो हिन्दुस्तान त्राहीमाम बोल उठता है। पिछले साल बुंदेलखण्ड में पानी के संकट से भी केंद्र सरकार ने सीख नहीं ली है। दरअसल जागरूकता के अभाव के चलते पानी का विकराल संकट आन खड़ा हुआ है।मध्य प्रदेश का ही उदहारण लें तो विशाल जलभराव वाले बड़े, छोटे और केरवां डेम के हाते हुए राजधानी भोपालवासियों के कण्ठ सूखे रहते हैं। इसी तरह बरगी जलाशय के बाद भी जबलपुर प्यासा रह जाता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि एशिया के सबसे बडे मिट्टी के बांध भीमगढ़ से आरंभ की गई सुआखोड़ा परियोजना जिसे जिला मुख्यालय सिवनी की प्यास बुझाने दोनों समय जलापूर्ति किए जाने की गरज से 2025 की आबादी का अनुमान लगाकर तैयार किया गया था, वह औसतन महीने में दो तिहाई दिन ही एक समय पानी आपूर्ति कर पा रहा है।अब भी वक्त है। हमेें जागना होगा, हमें अपने समाज को पानी के लिए जागरूक करना होगा, वरना आने वाले दिनों में पानी को लेेकर मचने वाली मारकाट से निपटना शासन, प्रशासन के माथे का नया सरदर्द ही साबित होगा, जिससे शासन अभी संभवत: अनिभिज्ञ ही है। आने वाले दिनों में सहज सुलभ पानी की राशनिंग भी होने लगे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
आड़वाणी की बंद कमरे में भागवत से मुलाकात के बाद सियासत गर्माई
हार का ठीकरा संघ पर फोड़ना चाह रहे आड़वाणी
आड़वाणी के नाम पर संघ में घमासान
कांग्रेस के दलित कार्ड से भाजपा में मंथन का नया दौर
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। कड़क फैसले लेने के लिए मशहूर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत की नेता प्रतिपक्ष लाल कृष्ण आड़वाणी के साथ झंडेवालन स्थित संघ मुख्यालय ``केशव कुंज`` में हुए 75 मिनिट लंबे विचार विमर्श के उपरांत सियासत गर्मा गई है। उधर लोकसभाध्यक्ष के लिए कांग्रेस द्वारा दलित कार्ड खेले जाने से लोकसभा उपाध्यक्ष के लिए अब भाजपा में रायशुमारी का दौर चल पड़ा है।संघ प्रमुख से चर्चा के उपरांत पत्रकारों से मुखातिब आड़वाणी ने इशारों ही इशारों में संघ को भी भाजपा की हार के लिए परोक्ष रूप से जिम्मेदार बता ही दिया। मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि मार्च के बाद से वे भागवत ने नहीं मिले थे। मुलाकात के मजमून पर कोई टिप्पणी किए बिना आड़वाणी ने इशारों में कहा कि चुनावों में संघ ने जो सहयोग प्रदान किया है, उसके लिए वे भागवत को धन्यवाद ज्ञापित करने आए थे।संघ के पूर्व प्रवक्ता रहे एम.जी.वैद्य ने सीधे तोर पर आड़वाणी पर वार करना आरंभ कर दिया है। एक अखबार में उनके हवाले से छपे लेख में कहा गया है कि संघ को आपात धर्म निभाते हुए भाजपा में व्यापक परिवर्तन के लिए कठोर कदम उठाना चाहिए। वैसे आड़वाणी की वेब साईट पर कार्यकर्ताओं की जो प्रतिक्रियाएं आ रहीं हैं उनमें सुषमा स्वराज को नेता प्रतिपक्ष और हिन्दुवादी छवि के पुरोधा माने जाने वाले नरेंद्र मोदी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की बात कही जा रही है।नेता प्रतिपक्ष के लिए आड़वाणी के नाम पर सहमति बनने के उपरांत संघ में उनके नाम पर घमासान आरंभ हो गया है। उधर संघ प्रमुख के करीबी सूत्रों का कहना है कि संघ प्रमुख चाहते हैं कि आड़वाणी नेता प्रतिपक्ष का पद एक माह में ही छोड़ दें, किन्तु आड़वाणी ने कुछ और समय मांगा है। संघ में अधिकतर नेताओं का मत है कि अब समय आ गया है जब आड़वाणी को भी अटल बिहारी बाजपेयी का अनुसरण करना चाहिए।उधर कांग्रेस द्वारा लोस अध्यक्ष पद पर दलित नेता मीरा कुमार की ताजपोशी की तैयारियों ने भाजपा के अंदरखाने में उबल रही खिचड़ी खदबदा दी है। भाजपा अब उपाध्यक्ष पद के लिए दलित के नाम पर विचार कर रही है। पहले इस पद के लिए सुषमा स्वराज और सुमित्रा महाजन के नाम की चर्चा थी, किन्तु अब गोपीनाथ मुंडे, श्रीपद नायक और करिया मुंडा के नाम राजनैतिक फिजां में तैर गए हैं।
देश की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है अरूण यादव के लिए
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश कोटे से केंद्र में राज्यमंत्री बने अरूण यादव ने बतौर खेल एवं युवा मामलों के राज्यमंत्री का कामकाज संभालने के उपरांत अपनी प्रथमिकताएं तय कर दीं हैं। बकौल अरूण यादव उनकी पहली प्रथमिकता देश की प्रतिष्ठा से जुड़े अगले साले होने वाले राष्ट्रमण्डल खेल हैं।अरूण यादव मानते हैं कि केंद्र सरकार की 100 दिनी कार्ययोजना में कामन वेल्थ गेम्स में तयशुदा सीमा में बेहतर मेजबानी प्रमुख एवं चुनौतिपूर्ण होगी। मध्य प्रदेश में भी ग्रामीण स्तर पर प्रतिभाओं को उभारने के लिए वे काफी वचनबद्ध भी दिखाई दिए। कार्यभार ग्रहण करते समय उनके पिता एवं मध्य प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव सहित अनेक समर्थक उनके साथ मौजूद थे।
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