शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

01 augest 2009

देश की सड़कें आपकी राह देख रहीं हैं बाबा

(लिमटी खरे)


इक्कीसवीं सदी में अचानक ही देश के परिदृश्य में उभरकर सामने आए योग गुरू बाबा रामदेव का देशवासियों को निश्चित तौर पर आभार मानना चाहिए कि उन्होंने सदियों पुराने भारतीय योग को उसी स्वरूप में किन्तु नया कलेवर देकर पेश किया है। आज देश के अधिकांश लोग बाबा रामदेव से प्रेरणा लेकर नियमित योगाभ्यास कर रहे हैं। बाबा रामदेव ने देश भर के कमोबेश हर जिले में अपने संस्थान की शाखा की स्थापना कर दी है।
लोगों की स्मृति से अभी विस्मृत नहीं हुआ होगा कि अप्रेल और मई माह में संपन्न हुए आम चुनावों में जब भारतीय जनता पार्टी ने विदेश से काले धन वापसी का मुद्दा चुनावों में झोंका तो बाबा रामदेव ने भी भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए कहा था कि वे भी विदेशों से काला धन वापस लाने के मुद्दे पर जनमत तैयार कर सड़कों पर उतरेंगे। बाबा ने कहा था कि वे इस मामले में चुप नहीं बैठेगें।
उस दौरान कुछ लोगों ने दबी जुबान से बाबा रामदेव पर यह आरोप भी लगाया था कि वे ``पीएम इन वेटिंग`` लाल कृष्ण आड़वाणी के सात रेसकोर्स रोड़ नई दिल्ली (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) के मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। चुनाव हुआ और भाजपा का यह राग कहां विलुप्त हो गया पता नहीं। इतना ही नहीं बाबा रामदेव ने भी इस बारे में पूरी तरह चुप्पी साध ली।
कुछ सालों पहले बाबा रामदेव ने दंभ से कहा था कि वे योग को दुनिया भर में फैलाना चाहते हैं, किन्तु वे भारत देश के बाहर तभी कदम रखेंगे जब वे संपूर्ण देशवासियों को योग के जरिए निरोगी बना देंगे। अपनी इस बात से उलट बाबा रामदेव ने विदेशों में जाकर योग प्रशिक्षण देना आरंभ कर दिया है।
इतना ही नहीं बाबा रामदेव की कार्यप्रणाली के चलते यह भी कहा जाने लगा है कि बाबा रामदेव सिर्फ अमीरों को ही योग सिखाना चाहते हैं, क्योंकि उनके शिवरों में देश की गरीब जरूरतमंद जनता मंहगी टिकिट होने के कारण जा ही नहीं पाती है। बेहतर होगा कि बाबा रामदेव गरीब गुरबों के लिए भी योग शिविर का आयोजन किया करें।
बाबा रामेदव के हरिद्वार स्थित पतांजली योग संस्थान मेें जाना आम आदमी के लिए आसान नहीं है। कहा जाता है कि अगर कोई बाबा की दवाओं की एजेंसी (जिला स्तर पर) लेना चाहे तो उसे एक मुश्त आठ लाख रूपए की दवाएं खरीदनी होती हैं। इतने मंहगे तरीके से अगर बाबा देश के गरीब गुरबों का इलाज करना चाह रहे हैं तो इससे बेहतर तो नीम हकीम ही हैं, जो कम से कम गरीबों की जेब देखकर ही अपनी फीस और दवाअों की कीमत निर्धारित करते हैं।
हमारे पौराणिक परिदृश्य पर अगर नजर डाली जाए तो बाबा सदा से ही समाज के अगुआ (पायोनियर) रहे हैं। बाबाओं की दी सीख और शिक्षा के चलते ही हमारा सभ्य समाज कुरीतियों से बचकर इक्कीसवीं सदी में सुखमय जीवन बिता रहा है। इतिहास गवाह है कि बाबा लोग जो भी कहते हैं हमारा समाज उसे निर्विकार भाव से अंगीकार कर लेता है। इसका कारण बाबाओं का ``काम, क्रोध, मद, लोभ`` से परे होना है।
बाबा रामदेव का चर्चाओ में बना रहना नई बात नहीं है। इसके पहले सांसद वृंदा करात ने बाबा रामदेव की औषधियों में मानव शरीर के अंगों के होने की बात कहकर सनसनी फैला दी थी। इसके बाद अर्धकुंभ में भाग लेने इलहाबाद पहुंचे ग्वालियर के योगी शिवराज गिरी ने तो बाबा रामदेव को लालकारते हुए कहा था कि बाबा यह साबित कर दिखाएं कि योग से कैंसर और एड्स जैसे रोगों का इलाज होता है। इसके साथ ही साथ पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अंबूमणि रामदास भी बाबा से सीधे ही भिड़ चुके हैं।
बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में स्वामियों और बाबाओं की बढ़ती भीड़ के चलते ये बाबा विवाद में भी घिरे रहे हैं। अमेरिका के आरगन में 64 हजार एकड़ भूमि के स्वामी रहे आचार्य रजनीश एक ओर जहां उन्मुक्त यौन संबंधों के कारण विवादों में रहे, वहीं दूसरी ओर एफबीआई के 35 आरोपों में से उन्होंने दो को स्वीकारा था जो फर्जी आव्रजन और शादियां कराने का मामला।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी के योग गुरू रहे धीरेंद्र ब्रम्हचारी जिन्होंने बाद में अपना योग स्कूल खोला भी कम विवादित नहीं रहे हैं। इन पर इंदिरा गांधी शासनकाल में सियासी फैसलों में हस्ताक्षेप करने और जम्मू में गन फैक्ट्री के साथ अन्य कई संगीन आरोप भी मढ़े गए थे।
मौनी बाबा के नाम से विख्यात हुए पूर्व प्रधानमंत्री स्व.नरसिंहराव के जमाने में चंद्रास्वामी की तूती बोलती रही है। एक जमाने में इनके दिल्ली स्थित आश्रम में व्हीव्हीआईपी और नेताओं की कतार लगा करती थी, पर अंर्तराष्ट्रीय हथियार व्यापारी खगोशी से संबंध रखने के आरोप के साथ ही साथ इन्होंने कई आरोपों में जेल की हवा भी खाई है।
दक्षिण भारत में तिरूचिरापलली के एक तांत्रिक प्रेमानंद पर आश्रम में हत्या, 13 बलात्कार के आरोप के बाद चेन्नई हाईकोर्ट ने इन्हें उमरकेद की सजा सुनाई जिसे सर्वोच्च न्यायालन ने बरकरार रखा। प्रशांति निलयम में निवास करने वाले सत्य साई बाबा खुद को शिरडी वाले साई बाबा का अवतार बताते हैं।
इनके भक्तों मेंं अनेक पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सिने स्टार और खिलाड़ियों का शुमार है। इन पर आरोप रहा है कि पुट्टपर्ती स्थित इनके आश्रम में आश्रम की अंदरूनी राजनीति के चलते हुए गोलीकांड में छ: लोगों की जान गई थी। इनके चमत्कारों पर सवालिया निशान लगाते हुए अनेक टीवी न्यूज चेनल्स ने लंबी स्टोरी भी चलाई है।
बहरहाल बाबा रामदेव की पहल प्रशंसनीय कही जा सकती है कि उन्होंने देश के काले धन को देश में वापस लाने की शांत पर मुहिम तो छेड़ी। बाबा रामदेव ने समलेंगिकता के खिलाफ कोर्ट के दरवाजे खटखटाने के अपने वादे को भी निभाया। कांग्रेसनीत केंद्र सरकार ने विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। इसी बीच देश की जनता अब बाबा रामदेव की राह देख रही है कि वे कब अपना कौल निभाते हुए सड़कों पर उतरेंगे और काला धन देश में वापस लाकर इन धन कुबेरों के चेहरों पर से नकाब उतारेंगे।

-------------------------

सुषमा की चतुराई से भाजपा को मिली संजीवनी

(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। संसद के दोनों सदनों में भारतीय जनता पार्टी के सांसदों के बीच हिलोरे मार रहे असंतोष पर सुषमा स्वराज ने अपनी चतुराई भरी चाल से घड़ों पानी डाल दिया है। पहले मध्य प्रदेश से राज्यसभा सदस्य फिर विदिशा से संसद सदस्य बनीं सुषमा स्वराज ने कूटनीतिक तरीके से असंतोष के फन को दबा दिया है।
भाजपा के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा सदन में भाजपा की ओर से मुख्य वक्ता बनने के लिए हाथ पैर मार रहे थे। यही कारण था कि दोनों ही असंतुष्टों को हवा दे रहे थे। सूत्रों ने कहा कि लोकसभा चुनाव में शीर्ष नेतृत्व की कार्यप्रणाली और अपनी उपेक्षा के कारण दोनों ही नेता रूष्ट चल रहे थे। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को मशविरा दिया गया था कि इन्हें इन्हीं के हाल पर छोड़ दिया जाना चाहिए। इसके उपरांत जब सदन में चर्चा की शुरूआत का मुद्दा आया तो दोनों ही नेताओं ने एक बार फिर नजरें तरेरना आरंभ कर दिया।
सूत्रों ने आगे बताया कि लोकसभा में पार्टी की उपनेता सुषमा स्वराज ने भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह, डॉ.मुरली मनोहर जोशी, अनंत कुमार, यशवंत सिन्हा, जसवंत सिंह आदि के बीच सदन में अहम विषयों पर होने वाली चर्चाओं का विभाजन इस तरह किया कि सभी प्रसन्न हो गए।
भाजपा में आर्थिक और विदेश मामलों के विशेषज्ञ समझे जाने वाले जसवंत सिंह और यशवंत सिन्हा को दरकिनार कर पार्टी ने बजट पर अधिकृत वक्तव्य सुषमा स्वराज के माध्यम से बनवा दिया। और इस पर प्रथम वक्ता के रूप में डॉ. एम.एम.जोशी को खड़ा कर दिया। इतना ही नहीं विदेश मामलों में महामहिम राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन का ड्राफ्ट भी राज्य सभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने बना दिया।
मजे की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री की विदेश यात्रा पर सदन में चर्चा के लिए जब यशवंत सिन्हा के पास प्रथम वक्ता बनने का पैगाम भेजा गया तो एक असेZ से उपेक्षित सिन्हा ने गदगद होकर इसे स्वीकार कर लिया। संसद में इस सामंजस्य का श्रेय अगर किसी को जाता है तो मध्य प्रदेश कोटे से जीतकर आईं सुषमा स्वराज को।

1 टिप्पणी:

DINESH GAUTAM ने कहा…

दादा....पहली बार आपका ब्लॉग पढा मां कसम मज़ा आ गया....यदुवंशियों के त्रिफला से ले कर...देश की सड़कें आप की राह देख रहीं हैं बाबा तक...खबरें पेश करने का बेहद रोचक ढंग...साधुवाद...