आलेख 12 अगस्त 2009
किस बात का चिंतन करने जा रही है भाजपा!
(लिमटी खरे)
लगभग तीस साल पुरानी भारतीय जनता पार्टी के सामने वर्तमान में चुनौतियों के अंबार लगे हुए हैं। कभी काडर बेस्ड सबसे अनुशासित पार्टी समझी जाने वाली भाजपा में इन दिनों अनुशासन तार तार हो चुका है। पार्टी के अंदर ओर बाहर नेतृत्व सहित अनेक मुद्दों पर अनेक धड़ों में बंटी पार्टी में घमासन मचा हुआ है।यह सच है कि जिस तरीके से सुनोजित षणयंत्र के तहत उज्जवल छवि के धनी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को दरकिनार कर चतुर सुजान लाल कृष्ण आड़वाणी द्वारा अपने आप को भाजपा और राजग का सर्वमान्य ``पीएम इन वेटिंग`` घोषित करवा लिया था, उसे देखकर लगने लगा था कि आड़वाणी के भरोसे राजग की वेतरणी शायद ही पार हो सके।लोकसभा चुनावों में औंधे मुंह गिरी भाजपा अभी भी हताशा से अब तक उबर नहीं सकी है। मुश्किल तमाम भाजपा की चिंतन बैठक का स्थान तय किया जा सका। शिमला में अगले सप्ताह होने वाली चिंतन बैठक में वैसे तो हार के कारणों पर प्रकाश डालते हुए भविष्य की रणनीति ही बनाई जाएगी।वैसे 30 वषीZय भाजपा के इतिहास में पहला एसा मौका होगा जबकि पार्टी की अिग्रम पंक्ति के नेता इस कदर लाचार और निरीह नजर आ रहे हैं। पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी भाजपा को उसके हाल पर ही छोड़ने का उपक्रम आरंभ कर दिया है। 1984 में लोकसभा में महज दो सीटें जीतने के बाद भी भाजपा इतनी निस्तेज नजर नहीं आई जितनी कि वर्तमान में दिख रही है।राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के सामने चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। भाजपा के भविष्य के मार्ग शूल से अटे पड़े हैं। गुटबाजी, अनुशासनहीनता, कहल के साथ ही धड़ों में बंटा नेतृत्व भाजपा की प्रमुख चुनौतियों में शामिल है। कुल मिलाकर भाजपा लोकसभा चुनाव में पराजय के कारणों पर विस्तार से चर्चा करने से कतरा ही रही है।एक समय में अनुशासन के लिए विरोधी दलों से स्तुतिगान गववाने वाली भाजपा अब अन्य दलोें की ही तरह अनुशासनहीनता के उस मुकाम तक पहुंच चुकी है, जहां अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए अपनी ही पार्टी के अन्य नेताओं की गिरेबां पकड़ने, उन पर कीचड़ उछालने, उन की छीछालेदर करने से परहेज नहीं किया जाता है।अभी लोगों की स्मृति से वह दृश्य विस्मृत नहीं हुआ होगा, जबकि पार्टी की ही बैठक में तत्कालीन भाजपा नेत्री उमाश्री भारती ने इसी सब के लिए पार्टी के नेताओं को जिम्मेदार बताया था। इतना ही नहीं खुद पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी नेताओं के बड़ाबेलेपन से आजिज आ चुके हैं।पार्टी के इस चिंतन शिविर के एजेंडे में निश्चित तौर पर भविष्य की रणनीति तो होगी ही। भाजपा का मजबूत होना सिर्फ भाजपा ही नहीं देश के लिए भी आवश्यक है। पिछले दो दशकों में देश के राजनैतिक परिदृश्य से साफ हो गया है कि देश में सिर्फ कांग्रेस और भाजपा ही एसे राजनैतिक दल हैं, जिन्हें राष्ट्रीय दल के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है। शेष राजनैतिक दल भी इन्हीं की गणेश परिक्रमा में जुटे रहते हैं।वैसे भी लोकतंत्र में दमदार विपक्ष होना अत्यावश्यक है। जय प्रकाश नारायण रहे हों या राम मनोहर लोहिया, इनके सामने विपक्षी दलों द्वारा कमजोर प्रत्याशी को ही मैदान में उतारा जाता रहा है, इसका कारण यह था कि जवाहर लाल नेहरू या इंदिरा गांधी सरीखे कद्दावर नेता भी यह नहीं चाहते थे कि वे सत्ता के मद में चूर होकर बेलगाम हो जाएं। वर्तमान समय में राजनेताओं ने सारी वर्जनाएं तोड़ कर रख दी हैं।सची ही है अगर विपक्ष मजबूत होगा तो सरकार पर अंकुुश अपने आप ही लग जाता है। विडम्बना ही कही जाएगी कि परस्पर विरोधी राजनैतिक दलों के सदस्य होने के बाद भी राजनेताओं द्वारा अंडर टेबिल हाथ मिलाकर देश को पतन के मार्ग पर ढकेला जा रहा है, जो चिंता का विषय है।भाजपा के अपने लिए ही नहीं वरन देश के लिए एक बार फिर अपने पैरों के नीचे जमीन लाना जरूरी है। भाजपा को आज आवश्यक्ता आत्मावलोकन की है। जिन सिद्धांतों और उद्देश्यों को लेकर भाजपा की स्थापना की गई थी, वे आज की कार्यप्रणाली में कहीं परिलक्षित होते नहीं दिख रहे हैं।जिन मुद्दों को लेकर पार्टी ने जनता जनार्दश का विश्वास हासिल कर उनके बीच पैठ बनाई थी, आज जब भाजपा ने ही उन मुद्दों को भुला दिया तो जनता ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। पार्टी ने लोकसभा चुनावों के पूर्व जिस तरह से अटल बिहारी बाजपेयी को पाश्र्व में ढकेला था वह बेहद आश्चर्यजनक ही माना जा सकता है। इसके बाद 7 रेसकोर्स रोड़ (प्रधानमंत्री के सरकारी आवास) पर कब्जा बनाने की चाह में आड़वाणी ने सभी को बाहुपाश में ले लिया था।आज आवश्यक्ता इस बात की है कि पार्टी के नेता सेवा भाव को अपनाएं न कि स्वयंसिद्धि के मार्ग को। पार्टी के शीर्ष नेताओं को चाहिए कि रेवड़ी बांटने की परंपरा बंद कर अपने पराए का भेद मिटाए, और इस चिंतन बैठक के बहाने ही हार के कारणों पर चर्चा कर एक सकारात्मक एजेंडा तैयार करे, ताकि भाजपा को संजीवनी मिल सके।
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संघ ने तैयार किया भविष्य की भाजपा का खांका
0 संघ फिर कसने लगा है भाजपा की मुश्कें
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। पिछले कुछ सालों से अपने मूल मार्ग से भटक चुकी भारतीय जनता पार्टी को पटरी पर लाने के लिए अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा पर अपना नियंत्रण बढ़ा दिया है। आलम यह है कि दिल्ली आने वाले भाजपा नेता भाजपा मुख्यालय के बजाए संघ के मुख्यालय ``केशव कुंज`` की देहरी अधिक चूमते नजर आते हैं।आम चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन से बुरी तरह खफा संघ नेतृत्व, चुनावों की पराजय में आरोप प्रत्यारोपों से खासा आहत नजर आ रहा है। मुख्य धारा से लगभग भटक चुकी भाजपा को राह पर लाने के लिए अब संघ ने भाजपा में अपनी दखल तेजी से बढ़ा दी है।गौरतलब होगा कि हाल ही में संपन्न हुए राज्य सभा के चुनावों में प्रत्याशी तय करने में संघ की भूमिका काफी हद तक महात्वपूर्ण रही है। भले ही संघ का कोई प्रतिनिधि भाजपा की चिंतन बैठक में शिरकत न कर रहा हो किन्तु इस बैठक पर संघ की पूरी नजर है। सूत्र बताते हैं कि ``भविष्य की भाजपा`` रणनीति तैयार कर ली है।सूत्रों की मानें तो चिंतन बैठक में आमंत्रितों की सूची संघ पृष्ठभूमि वाले भाजपा के संगठन मंत्री रामलाल द्वारा तैयार की जा रही है। अंतिम रूप देने के पहले यह संघ की नजरों से अवश्य गुजारी जाएगी ताकि आमंत्रितों में कोई गलत नेता शामिल न हो सके और कोई विश्वस्त छूट न सके।ज्ञातव्य है कि पिछले लगभग डेढ़ दशक में संघ ने अपना नियंत्रण भाजपा से लगभग हटा ही लिया था। इसी बीच संयोग से भाजपा शीर्ष पर पहुंच गई थी। इस दौर में भाजपा के फैसले संघ के बजाए अटल आड़वाणी की जुगल जोड़ी लिया करती थी। इस समय संघ की ओर से परोक्ष रूप से इस जोड़ी को फैसले लेने फ्री हेण्ड दिया गया था।इसके उपरांत संघ में भी शीर्ष स्तर पर बदलाव हुए। नई सोच के अगुआ के आने से भाजपा पर अंकुश लगाना आरंभ किया गया है। इसके साथ ही साथ भाजपा की स्वतंत्रता के दिन भी समाप्त होते नजर आ रहे हैं। जिन्ना प्रकरण से कमजोर हुए आड़वाणी की पकड़ भाजपा में बुरी तरह कमजोर हो गई, भाजपा आम चुनावों में धड़ाम से गिर गई, भाजपा के निजाम राजनाथ भी एक कदम बिना संध की सलाह के आगे नहीं बढ़ाते हैं।संघ के कदमतालों से भाजपा के राज्यों के क्षत्रप भी भविष्य की रणनीति तैयार करने माहौल को भांपने लगे हैं। राज्यों से दिल्ली आने वाले भाजपा नेता अब भाजपा के राष्ट्रीय मुख्यालय 11 अशोक रोड़ के साथ ही साथ संघ के दिल्ली के झंडेवालान स्थित मुख्यालय ``केशव कुंज`` में अपनी आमद देने लगे हैं।
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