क्या न्यायधीश आम आदमी नहीं हैर्षोर्षो
(लिमटी खरे)
न्यायधीशों की संपत्ति सार्वजनिक न किए जाने संबंधी विधेयक के राज्य सभा में ही दम तोड़ देने से कांग्रेसनीत केंद्र सरकार की जमकर किरकिरी हुई। विपक्ष तो विपक्ष कांग्रेस के ही जयंती नटराजन और राजीव शुक्ला जैसे संसद सदस्यों ने राज्यसभा में जब इस विधेयक का विरोध किया तब साफ हो गया था कि कांग्रेस में ही इस मसले पर रायशुमारी किए बिना ही जल्दबाजी में इस विधेयक को सदन में रख दिया गया।
सरकार द्वारा पेश इस विधेयक मेें यह प्रावधान किया गया है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायधीश अपनी संपत्ति के विवरण की घोषणा करेंगे किन्तु वे इसे देश के मुख्य न्यायधीश के समक्ष ही करेंगे और अगर जरूरत पड़ी तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया इस विवरण को सार्वजनिक करेंगे।
देखा जाए तो यह विधेयक सभी को बराबरी देने वाले संवैधानिक अधिकार का खुला माखौल उड़ा रहा है। न्यायधीश अगर अपनी संपत्ति को सार्वजनिक करते हैं तो इसमें बुराई ही क्या है। देश में विधायक, सांसद यहां तक कि प्रधानमंत्री और महामहिम राष्ट्रपति जैसे पदों के लिए चुनाव लड़ने के पूर्व उन्हें भी अपनी संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा करनी पड़ती है।
इससे इन जनप्रतिनिधियों की माली हालत को जनता भांप लेती है, फिर दुबारा चुनाव लड़ते वक्त इनकी संपत्ति में हुए इजाफे से जनता आसानी से अनुमान लगा सकती है कि इन्होंने अपने कार्यकाल में कितनी ईमानदारी से काम किया है। जब आम आदमी को बराबरी मिलने का संवैधानिक अधिकार है, तो उससे न्यायधीशों को प्रथक रखना आपत्तिजनक माना जा सकता है।
क्या न्यायधीश आम आदमी से इतर कुछ और हैर्षोर्षो क्या वह आम आदमी से अलग कुछ और खाता पीता और अलग तरीके का रहन सहन अपनाता हैर्षोर्षो राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेतली का कहना तर्कसंगत है कि अभिव्यक्ति की स्वंतत्रता से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 19 (1), (ए) की उम्मीदवारों के लिए अलग और न्यायधीशों के लिए अलग व्याख्या नहीं की जा सकती है।
देश में सुरक्षा से जुड़े मामलों को गोपनीय रखने की बात तो गले उतरती है, किन्तु न्यायधीशों की संपत्ति को गोपनीय रखा जाना समझ से परे ही है। सरकार का यह कदम आम आदमी को कांग्रेस से दूर ले जाने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है, क्योंकि इससे लोगों के बीच यह धारणा भी बन सकती है कि न्यायपालिका को खुश करने की गरज से विधायिका और कार्यपालिका न्यायधीशों को इस तरह की छूट प्रदान करने का कुित्सत प्रयास कर रही है। इसके पीछे यह वजह भी बताई जा रही है कि राजनेताओं के अनेकों प्रकरण न्यायालयों में लंबित जो हैं।
भारत की न्याय व्यवस्था पर पूर्व में कभी प्रश्नचिन्ह नहीं लगे हैं, किन्तु ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल के 2007 के सर्वे में साफ किया गया था कि देश के 77 फीसदी लोगों की नजरों में न्यायपलिका भ्रष्ट करार दी गई थी। वैसे भी न्याय का जो सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है, उसके अनुसार न्याय होना नहीं आम लोगों को न्याय होते दिखना भी चाहिए।
भारत गणराज्य में न्यायपालिका को सबसे उपर दर्जा दिया गया है। हमारे देश में न्यायधीशों को सभी बाध्यताओं से परे रखा गया है। इसे अक्ष्क्षुण रखने के लिए आवश्यक है कि न्यायपलिका का दामन पूरी तरह उजला और पारदशीZ होना चाहिए। इसके पूर्व भी न्यायधीश इंक्वायरी बिल नहीं रखा जा सका था।
वर्तमान विधेयक में भी जो बातें सामने आईं हैं, उससे जनता के बीच यह संदेश अवश्य गया होगा कि देश को न्याय देने वाले न्यायधीश अपने आप को हर तरह की जवाबदेही से मुक्त रखना चाह रहे हैं, जो उचित नहीं कहा जा सकता है।
यह तो संतोष की बात मानी जा सकती है कि इस बिल को राज्यसभा ने ही पारित नहीं किया। राज्यसभा में खुद कांग्रेस के सांसदों के विरोध से सरकार को समझ लेना चाहिए कि इस तरह का अत्मघाती कदम सरकार के लिए बाद में गले की हड्डी बन सकता है। लोकतंत्र में सबसे अधिक जरूरी पारदर्शिता है। पारदर्शिता के बिना सब कुछ गोल मोल ही कहा जा सकता है। सरकार को चाहिए कि इस विधेयक में संशोधन कर इसे सदन में रखे।
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0 फोरलेन विवाद
इंटरनेट पर भारत के मानचित्र पर उभरा है लखनादौन
0 2369 किलोमीटर लंबा है एनएच 07
0 रेल के नक्शे पर नहीं सड़क के नक्शे पर दिखा तो सिवनी जिला
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। उत्तर दक्षिण गलियारे के नक्शे पर भविष्य में सिवनी जिले का नाम होगा या नहीं यह तो नहीं कहा जा सकता है किन्तु वर्तमान में इंटरनेट पर सरकारी वेवसाईट पर सिवनी जिले के लखनादौन का नाम अवश्य इसमें दिखाई पड़ रहा है। सिवनीवासियों के लिए यह संतोष की बात मानी जा सकती है कि भले ही रेल के मानचित्र पर सिवनी जिले के नाम का उल्लेख नहीं किया गया हो, किन्तु भूतल परिवहन मंत्रालय के नक्शे में तो जिले का नाम उकेरा गया है।
एनएचएआई के नक्शे में लखनादौन का नाम बड़े अक्षरों में लिखा गया है, जो सिवनी वासियों को गोरवािन्वत करने के लिए पर्याप्त माना जा सकता है। आने वाले दिनों में कितने समय तक यह नाम उस नक्शे पर बरकरार रहता है, इस बात का जवाब तो सिवनी को दशा और दिशा देने वाले राजनेताओं द्वारा ही बताया जा सकेगा।
गौरतलब होगा कि पूर्व में छिंदवाड़ा सिवनी नैनपुर को नेरोगेज से ब्राडगेज में तब्दील कराने के अभियान में एक एसएमएस बहुत ही चर्चित रहा था, कि पहले भारतीय रेल के नक्शे मेें सिवनी जिले का नाम तो लाओ फिर अमान परिवर्तन की बात करना। रेल न सही सड़क मार्ग पर तो जिले के लखनादौन का नाम होना ही संतोषजनक माना जा सकता है।
कुल 2369 किलोमीटर लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात का एक बड़ा हिस्सा मध्य प्रदेश से होकर गुजरता है। वैसे उत्तर प्रदेश के हिस्से में 128, मध्य प्रदेश से 504, महाराष्ट्र से होकर 232, आंध्रा प्रदेश से 753, कर्नाटक से 125 और तमिलनाडू से होकर एनएच 07 का 627 किलोमीटर का हिस्सा गुजरता है।
वैसे काबिलेगोर बात यह भी है कि एक ओर जहां इंटरनेट पर एनएचएआई के मानचित्र पर लखनादौन से बरास्ता लखनादौन, सिवनी, नागपुर कन्याकुमारी जाने वाला मार्ग अब उत्तर दक्षिण कारीडोर का हिस्सा बन गया है, वहीं दूसरी ओर भूतल परिवहन मंत्रालय की वेब साईट पर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक सात आज भी इसी मार्ग के तोर पर जीवित है।
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दिनोंदिन गिर रहा है डीडी के न्यूज का स्तर
0 अफसरों की भरमार हो गई है डीडी भोपाल में
0 नौसिखिए बना रहे हैं खबरें!
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। दूरदर्शन के भोपाल केंद्र में जब से मनीष गौतम की पदस्थापना बतौर डिप्टी डायरेक्टर न्यूज (डीडीएन) हुई है, तब से डीडी भोपाल में खबरों का स्तर काफी हद तक गिर गया है। श्री गौतम पर लगाम कसने की गरज से सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आई एण्ड बी मिनिस्ट्री) द्वारा एक अन्य डीडीएन की पदस्थापना कर दी है।
मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि दूरदर्शन भोपाल के परफारमेंस से उच्चाधिकारी प्रसन्न नहीं हैं। वैसे भी भोपाल मनीष गौतम के खिलाफ आकाशवाणी और दूरदर्शन भोपाल में रहते हुए की गई अनियमितताओं की जांच अभी जारी है। लागलपेट में माहिर उक्त अधिकारी पर अंकुश लगाने के लिए विभाग ने एक और डीडीएन की पदस्थापना के आदेश जारी कर दिए हैं।
सूत्रों का कहना है कि महज 15 मिनिट की न्यूज के लिए भोपाल में भारी भरकम अफसरों का अमला रखने का ओचित्य नही है। सूत्रों ने यह भी कहा कि उच्चाधिकारियों के ध्यान में इस बात को भी लाया गया है कि डीडी भोपाल में खबरें बनाने का काम नौसिखियों द्वारा किया जा रहा है।
बताते हैं कि यहां खबरें बनाने का काम संपादकों के बजाए बाहरी लोगों और ``केजुअल्स`` से कराया जा रहा है। भोपाल में आकाशवाणी और दूरदर्शन की कमान डीडीएन मनीष गौतम के पास ही है, एवं गोतम के नेतृत्व में अनुभवहीन लोगों की फौज के भरोसे इस सरकारी विश्वसनीय प्रसारण माध्यम से खबरें प्रसारित की जा रही हैं।
एक उच्चाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर टिप्पणी करते हुए कहा कि आई एण्ड बी मिनिस्ट्री के भोपाल स्थित कार्यालय राजनीति का अड्डा बनकर रह गए हैं। उन्होंने कहा कि भोपाल आकाशवाणी और दूरदर्शन की खबरों में विश्वसनीयता की कमी साफ तौर पर परिलक्षित हो रही है।
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आड़वाणी को मुख्य धारा में लाने एक और टोटका!
0 ``माय कंट्री, माय लाईफ`` का उर्दू संस्करण ``मेरा वतन, मेरी जिंदगी``
0 संघ और भाजपा हो सकते हैं आमने सामने
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी के आरक्षण को अगले आम चुनावों तक कनफर्म करवाने की गरज से चुनिंदा भाजपा नेताओं ने कमर कस ली है। भाजपा के इन रणनीतिकारों ने आड़वाणी को हिन्दुत्व के घेरे से निकालकर अब मुसलमानों के बीच ले जाने की कवायद आरंभ कर दी है।
भाजपा के ये चुनिंदा रणनीतिकार इन दिनों आड़वाणी की चर्चित किताब माय कंट्री माय लाईफ को ध्यान से पढ़कर इसे आत्मसात करने का प्रयास कर रहे हैं। मुसलमानों के बीच आड़वाणी को लोकप्रिय बनाने और उन्हें हिन्दुत्व के घेरे से बाहर निकालने की रणनीति के तहत उनकी किताब का उर्दू संस्करण ``मेरा वतन, मेरी जिंदगी`` का विमोचन राजधानी के फिक्की सभागार में किया गया।
सूत्रों की मानें तो अब आड़वाणी की छवि इस तरह की बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि वे न तो मुस्लिम विरोधी हैं, और न ही कट्टरवादी। वे तो महज राष्ट्रवादी हैं। आम चुनावों के पूर्व तैयार हो चुकी इस पुस्तक का विमोचन तभी किया जाने वाला था, ताकि उसका लाभ आम चुनावों में भाजपा को मिल सके।
सूत्रों ने बताया कि पार्टी मंच पर आम राय न बन पाने, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के दबाव और समयाभाव के चलते इसका कार्यक्रम नहीं फायनल हो सका था। बाद में गुपचुप ही इसकी सारी तैयारियां कर अब इसका विमोचन किया जा रहा है।
आड़वाणी की किताब के उर्दू संस्करण के कार्यक्रम ने भाजपा और संघ के आमने सामने आने की संभावनओं को बढ़ा दिया है। गौरतलब होगा कि आम चुनावों में भाजपा की शिकस्त के बाद से ही संघ और भाजपा दोनों ही में विचारधारा को लेकर तलवारें भांजी जा रही हैं।
भाजपा से जुड़े लेखक क्षत्रपों ने तो पार्टी को यहां तक सलाह दे डाली है कि अगर पार्टी को जीवित रखना है तो आने वाले समय में वरूण गांधी और नरेंद्र मोदी की तरह के हिन्दुत्व से किनारा करना ही उचित होगा। खेमों में बंट चुकी भाजपा में अंदर ही अंदर इस बात की खिचड़ी खदबदाने लगी है कि अब मुसलमानों को भाजपा से जोड़ने का समय आ गया है।
उधर दूसरी ओर भाजपा के अंदर संघ के आलंबरदार और खुद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ द्वारा हिन्दुत्व की कीमत पर रजनीतिक लाभ के फार्मूले को सिरे से खारिज करने की कवायद की जा रही है।
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