थुरूर का गुरूर बना कांग्रेस के गले की फांस
(लिमटी खरे)
विदेश में रहकर अपने जीवन के दो दशक से भी अधिक समय बिताने वाले देश के विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर के बयानों ने कांग्रेस के प्याले में तूफान ला दिया है। थुरूर की अनावश्यक बयानबाजी से अब कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के साथ ``हुई गति सांप छछूंदर केरी, उगलत निगलत पीर घनेरी`` की सी स्थिति निर्मित हो गई है। एक तरफ वे सादगी का आडंबर कर कार्यकर्ताओं को संदेश देने का प्रयास कर रही हैं, तो दूसरी ओर मंत्रिमण्डल में शमिल मंत्री ही उनके इस कदम का उपहास उड़ाने से नहीं चूक रहे हैं।
गौरतलब होगा कि मंहगे आलीशान होटलों को लगभग तीन माहों से अपना आशियाना बनाए रखने के चलते विदेश मंत्री एम.एम.कृष्णा और राज्य मंत्री शशि थुरूर चर्चाओं में आ गए थे। इसके बाद उन्होंने इस विवाद को विराम देने की गरज से संभवत: यह बयान दे दिया कि उन्होने सरकारी धन का अपव्यय नहीं किया है। वे अपने अपने निजी खर्चों पर होटलों में रूके हुए थे।
सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस जनों को सादगी का संदेश देने की गरज से कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने कमान संभाली और लगभग बारह सीटें आरक्षित करवाकर उन्हें खाली रखकर विमान की इकानामी क्लास में यात्रा कर उन्होंने एक मिसाल पेश की है।
उनके पुत्र और कांग्रेस की नजरों में भविष्य के प्रधानमंत्री राहुल गांधी भला सादगी दर्शन में पीछे कहां रहने वाले थे। उन्होंने भी शताब्दी एक्सप्रेस की पूरी एक बोगी ही रिजर्व करवाकर सोनिया गांधी से बड़ी सादगी भरी यात्रा कर एक और बेहतरीन संदेश दे डाला। वस्तुत: देखा जाए तो इन दोनों ही की यात्राओं में हुए कुल खर्च का योग किया जाए तो वह चार्टर्ड हवाई जहाज से की जाने वाली यात्रा से ज्यादा ही निकलेगा।
बहरहाल, मामला जैसे तैसे थमता नजर आया कि इंटरनेट की सोशल वेव साईट पर विदेश राज्य मंत्री ने एक टिप्पणी कर बासी कढी मेें एक बार फिर उबाल ला दिया है। थुरूर ने विमान में इकानामी क्लास को ``केटल क्लास`` की उपाधि से नवाज दिया है, जिसका अर्थ है मवेशियों के परिवहन के लिए उपयुक्त दर्जा।विडम्बना ही कही जाएगी कि देश के नीति निर्धारक अभी भी देश की सांस्कृतिक आबोहवा से परिचित नहीं हो सके हैं। विदेशी मूल की भारतीय बहू श्रीमति सोनिया गांधी ने वषो बाद देश की संस्कृति और रहन सहन को अंगीकार किया। भले ही वह उन्होंने अपने मैनेजरों के कहने पर दिखावे के लिए किया हो, पर किया तो सही।
इसी तरह उनके पुत्र और नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी के सदस्य राहुल गांधी भी अपनी कोलंबियाई गर्लफ्रेंड के चक्कर को लेकर जब तब चर्चाओं में बने रहते हैं। देश की सवा करोड़ से अधिक आबादी में एक अदद लड़की राहुल गांधी को जीवन साथी बनाने के लिए पसंद न आना आश्चर्य का ही विषय है। इसमें राहुल गांधी का दोष नहीं कहा जा सकता है। दरअसल जिसका लालन पालन (ब्राटअप) जैसे माहौल में हुआ हो, उसकी सोच कमोबेश उसी तरह की ही हो जाती है।
बहरहाल थुरूर द्वारा सवा करोड़ से अधिक की आबादी में एक से भी कम फीसदी आबादी जो कि हवाई यात्रा करती है, के दर्जे की तुलना मवेशियों से की गई है। कांग्रेस को मजबूरी में इस मामले में आगे आकर थुरूर की बातों की आलोचना करनी पड़ी है। एक समय था जब मंत्रियों या पदाधिकारियों को कुछ भी बोलने के पहले पार्टी लाईन की हिदायत दी जाती थी।
वर्तमान में इंटरनेट के अनंत सागर में गोते लगाकर मदमस्त मंत्री पार्टी लाईन को भूलकर नए इतिहास लिखने में ज्यादा व्यस्त दिख रहे हैं। शशि थुरूर के आचरण से पार्टी की भी काफी हद तक फजीहत हो रही है। राजनयिक से राजनीति की वादियों में विचरण करने वाले थुरूर शायद भूल गए हैं कि बतौर मंत्री उनकी एक भी टीका टिप्पणी सीधे सीधे कांग्रेस और सरकार का प्रतिनिधित्व करती है। थुरूर का बयान यह माना जा सकता है कि सरकार ही इकानामी क्लास के लोगों को मवेशी समझ रहा है।
चूंकि इस बयान को कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन ने खारिज किया है, अत: यह माना जा सकता है कि थुरूर की टिप्पणी से कांग्रेस अपने आप को अलग रख रही है। शशि थुरूर केंद्र सरकार में विदेश विभाग जैसे महत्वपूर्ण महकमे के मंत्री हैं, अत: सरकारी तौर पर भी इस मामले में कोई टिप्पणी आना चाहिए।
वैसे भी थुरूर को यह समझना होगा कि वे सेलीब्रिटी नहीं हैं जो कि अपने प्रशसंकों से ब्लॉग के माध्यम से बात करें। शशि थुरूर आजाद भारत में विदेश राज्यमंत्री हैं। उन्हें देश की विदेश नीति के बारे में चिंता करनी चाहिए, न कि अपने प्रशंसकों के सवाल जवाब में उलझकर समय गंवाने की। ब्लाग लिखना या सवाल जवाब थुरूर का नितांत निजी मामला है, इस पर टिप्पणी करना बेमानी है, किन्तु जब पानी नाक तक पहुंच जाए तब मंत्रियों को चेताना भी जरूरी है। अगर थुरूर को वाकई अपने प्रशंसकों की इतनी ही फिकर है, और वे प्रशसंको की तादाद में इजाफा करना चाहते हैं तो हर माह एक राज्य में जाकर खुले मंच से सवाल जवाब करें तो बेहतर होगा।
थुरूर की टिप्पणी पर हायतौबा इसलिए भी मची है, क्योंकि थुरूर की टिप्पणी उस वक्त हुई जब कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी दिल्ली से मुंबई तक विमान में इकानामी क्लास में और युवराज राहुल गांधी दिल्ली से लुधियाना तक शताब्दी में सफर कर चुके थे। लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि इकानामी क्लास को मवेशियों का बाड़ा कहकर क्या सोनिया गांधी के लिए कोई टिप्पणी की गई है।
विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी द्वारा भी प्रभावी विपक्ष की भूमिका अदा न किया जाना निराशाजनक ही कहा जा सकता है। इस मामले में सरकार को घेरने के बजाए अंतर्कलह में फंसा विपक्ष खामोशी अिख्तयार किए हुए है। वस्तुत: यह एक एसा मुद्दा बैठे बिठाए विपक्ष को मिल गया है, जिसे लेकर वह जनता के बीच जाकर खासा जनसमर्थन हासिल कर सकता है।
जो भी हो, विदेश राज्य मंत्री शशि थुरूर की इस टिप्पणी से कांग्रेस बेकफुट पर आ गई है। थुरूर की टिप्पणी के बाद कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डॉ.मन मोहन सिंह को कड़े कदम उठाने होंगे, वरना मंत्रीमण्डल में मनमानी करने वाले मंत्रियों की खासी फौज है, जो आने वाले समय में कांग्रेस के लिए सरदर्द खड़ा करने से नहीं चूकेगी।
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सौ दिनी एजेंडा टांय टांय फिस्स
0 सादगी दर्शन स्वांग के पीछे टांय टांय फिस्स हो गया एजेंडा
0 एक रणनीति का अहम हिस्सा है सोनिया, राहुल का ``जात्रा नाटक``
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज होने के बाद कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार द्वारा सौ दिन का एजेंडा बड़े ही जोर शोर से लागू किया था। सौ दिन पूरे हो गए किन्तु इस एजेंडे का क्या हुआ इस पर सरकार ने मौन साध रखा है।
सरकार ने राज्य विधानमण्डलों और संसद में महिलाओं के लिए तेंतीस प्रतिशत की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए महिला आरक्षण बिल पेश करने की बात इसमें प्रमुखता से रखी थी। इसके आलवा और अनेक बिन्दुओं का समावेश किया गया था, इस एजेंडे में।
इस बार मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने शिक्षा प्रणाली में अमूल चूल परिवर्तन का एजेंडा रखकर खासी वाहवाही बटोरी इतना ही नहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी एचआरडी मिनिस्टर कपिल सिब्बल की पीठ थपथपाई। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भी अपना आकर्षक एजेंडा पेश किया।
इस बार मंत्री बनने से चूक गए एक वरिष्ठ इंका नेता ने नाम उजागर न करने की शर्त पर कहा कि सरकार ने सौ दिनी एजेंडा ऐसे लागू किया था मानो सौ मीटर की रेस में उसेन बोल्ट दौड़ रहे हों। सौ दिन पूरे होने के बाद भी सरकार द्वारा रिपोर्ट कार्ड पेश न किया जाना यह दर्शाता है कि सरकार खुद ही अपने मंत्रियों के सौ दिनी काम काज से संतुष्ट नहीं है।
कहा जा रहा है कि अगर सरकार सौ दिनी एजेंडी का रिपोर्ट कार्ड पेश कर दे तो सरकार की खासी भद्द पिट सकती है। जानकारों का कहना है कि अगर विदेश मंत्री एम.एस.कृष्णा और शशि थुरूर का होटल विवाद न उपजा होता तो सरकार की मुश्किलें बढ़ सकती थीं।
सादगी के प्रहसन ने देशवासियों का ध्यान बरबस ही खींच लिया। सोनिया की इकानामी क्लास और राहुल की शताब्दी यात्रा दो दिनों तक मीडिया की सुखीZ बनी रही। इसके बाद जैसे ही मामला कुछ ठंडा हुआ विदेश राज्यमंत्री शशि थुरूर की टि्वटर पर की गई टिप्पणी कि इकनामी क्लास माने मवेशी दर्जा ने तूल पकड़ लिया।
राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि इन नए विवादों की वजह से सरकार के सौ दिनों के एजेंडे का रिपोर्ट कार्ड दब गया है। सरकार के लिए इस तरह के विवाद वास्तव में तारण हार ही साबित हुए हैं। कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (सोनिया गांधी का सरकारी आवास) के भरोसेमंद सूत्रों का दावा है कि सादगी प्रहसन में सोनिया गांधी ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा इसलिए लिया ताकि देश की जनता और विपक्ष सरकार के सौ दिनी एजेंडे का हिसाब किताब न मांग सके, और इसमे ही उलझकर रह जाए।
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पेंच कान्हा होगा आबादी मुक्त!
0 बाघ अभ्यारण्यों की बसाहट दूर करने की कवायद
0 केंद्र से मांगी ढाई हजार करोड़ की इमदाद
0 25 हजार परिवारों को विस्थापित करने की तैयारी
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के बाघ अभ्यारण्यों से इंसानी बसाहट को हटाने के लिए सूबे की सरकार ने केंद्र सरकार से ढाई हजार करोड़ रूपयों की मांग की है। प्रदेश के पेंच, कान्हा, सतपुड़ा, बांधवगढ़ बाघ अभ्याराण्यों को इंसानी दखलंदाजी से मुक्त करने की कार्ययोजना प्रदेश सरकार ने केंद्र को सौंपी है।
राष्ट्रीय बांघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि मध्य प्रदेश सरकार ने बाघों पर मंडराते खतरे को देखकर केंद्र से मदद की गुहार लगाई है। सूत्रों ने कहा कि इस मामले को एनटीसीए ने योजना आयोग के पास भेज दिया है। सूत्रों ने कहा कि प्रतिवेदन में कहा गया है कि सूबे में बाघों पर मंडराते खतरों को देखते हुए इन अभ्यारण्यों में बसे गांव खाली कराकर आबादी को अन्यत्र बसाया जाना तत्काल जरूरी है।
सूत्रों ने कहा कि इस प्रतिवेदन में साफ कहा गया है कि इन वन्य अभ्यारण्यों में निवास करने वाले पच्चीस हजार बीस परिवारों को चिन्हत किया गया है, जिन्हें यहां से हटाकर अन्यत्र बसाने की योजना है। सरकार द्वारा स्वेच्छा से इन अभ्यारण्यों को छोड़कर अन्यत्र जाने वाले परिवारों को दस लाख रूपए प्रति परिवार की दर से मुआवजा देने का प्रावधान किया है।
इस प्रतिवेदन में आगे कहा गया है कि नकद स्वीकार न करने वाले परिवारों को जमीन देने का विकल्प भी खुला रखा गया है। माना जा रहा है कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) के मध्य प्रदेश काडर के दो वरिष्ठ अधिकारियों कान्हा नेशनल पार्क में संचालक रहे राजेश गोपाल एवं संचालय वन्य प्राणी तथा प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे गंगोपाध्याय के पदस्थ होने के बाद मध्य प्रदेश में वन्य प्राणियों की स्थिति में सुधार होने की उम्मीद है।
सूत्रों से प्राप्त जानकारियों के अनुसार मध्य प्रदेश में बाघों की तादाद मानव के हस्ताक्षेप, अवैध शिकार एवं सड़क दुघटनाओं तथा बीमारियों के चलते जहां 2007 में तीन सौ के लगभग थी, वह अब दो सौ का आंकड़ा ही पार कर पा रही है।
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