बुधवार, 4 नवंबर 2009


राजमाता का निर्देश ठेंगे पर!




(लिमटी खरे)




मितव्ययता का संदेश देने कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने न जाने कितने जतन किए, किन्तु उनकी पार्टी के ही चुने हुए जनसेवकों के लिए सोनिया गांधी के साफ निर्देशों पर लक्ष्मी मैया भारी पडती दिख रहीं हैं। सूखा राहत के लिए जनसेवकों से अपने वेतन का बीस फीसदी जमा करने के स्पष्ट निर्देशों के बाद भी मध्य प्रदेश में वेतन से कटौती आरंभ नहीं हो सकी है।


कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के निर्देश के उपरांत एक सितम्बर से कांग्रेस के जनसेवकों को अपने अपने वेतन के बीस फीसदी की राशि को सूखा राहत मद में जमा कराया जाना था, जो कि अब तक आरंभ नहीं किया गया है।


देखा जाए तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लोकसभा सदस्य 12, राज्य सभा सदस्य 1 के साथ ही साथ 69 विधायक हैं। इसके अलावा 2 महापौर, 35 नगर पालिका अध्यक्ष, 98 नगर पंचायत अध्यक्ष, 18 जिला पंचायत अध्यक्ष और 120 जनपद पंचायत के अध्यक्ष हैं। इस तरह कुल 355 चुने हुए जनसेवक हैं, जिन्हें सूखा राहत मद में अपना वेतन जमा करवाना था।


नेहरू गांधी के नाम पर सियासत करने वाली कांग्रेस की मध्य प्रदेश इकाई यह भूल गई कि उसी परिवार की चौथी पीढी अर्थात राजीव गांधी की अर्धांग्नी एवं कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी ने फरमान जारी किया था कि एमपी, यूपी सहित देश भर में सूखे की आशंका को देखते हुए जनसेवक अपने अपने वेतन का बीस फीसदी स्थानीय स्तर पर ही जमा करवाएंगे। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की 19 अगस्त की बैठक में श्रीमति सोनिया गांधी के इस प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित कर दिया था।


दिल्ली में शीला दीक्षित सरकार और राजस्थान में कांग्रेस ने अपनी अध्यक्ष के इस प्रस्ताव को अमली जामा पहनाना आरंभ कर दिया किन्तु मध्य प्रदेश में सोनिया का आदेश ठेंगे पर ही रखा जा रहा है। प्रदेश से लेकर जिला, तहसील, ब्लाक स्तर पर भी कांग्रेस के सुस्सुप्तावस्था में पडे संगठन ने इस महत्वपूर्ण आदेश पर कोई पहल नहीं की है।


बताते हैं कि प्रदेश स्तर से जिला स्तर को इस तरह का कोई फरमान जारी ही नहीं किया गया है। अमूमन हर दल के लिए उसके अध्यक्ष का आदेश सर्वोपरि माना जाता है, फिर अगर उसकी मंशा को कार्यसमिति की मोहर लगा दी जाए तो उसका पालन सुनिश्चित ही माना जाता है।


मध्य प्रदेश में हालात इससे उलट ही नजर आ रहे हैं। मध्य प्रदेश में न तो प्रदेश कांग्रेस कमेटी ही इस मसले पर गंभीर है और न ही जिलों की कांग्रेस कमेटियां। अब जबकि इस आदेश के पालन की समयावधि दो माह बीत चुकी है तब पिछली तिथि से जनसेवकों से उनके वेतन का बीस फीसदी लेना टेडी खीर ही साबित हो रहा है।


कांग्रेस का संगठन अंदर ही अंदर किस कदर खोखला हो चुका है, उसे साबित करने के लिए कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी के इस फरमान की दुर्दशा ही काफी है। सच ही है जनसेवकों की जेब से धेला निकलवाना बहुत ही दुष्कर कार्य है।


आज अगर कांग्रेस की राजमाता सोनिया गांधी या युवराज राहुल गांधी का दौरा कार्यक्रम होता तो निश्चित तौर पर इन्हीं जनसेवकों द्वारा स्वागत द्वार और विज्ञापनों में लाखों रूपए फूंक दिए जाते पर जब बात सूखा राहत की आई तो इन जनसेवकों ने फरमान को अनसुना करना ही उचित समझा।


देश में अनेक जनसेवक तो ऐसे भी हैं, जो होली दीपावली पर दिए जाने वाले विज्ञापनों का भुगतान भी अपनी जनसेवक निधि से करने से नहीं चूकते। एक एक जिले में रामायण मंडल या क्रिकेट क्लब की तादाद देखकर उसकी जांच करवा ली जाए तो केग को एक आश्चर्यजनक घोटाला मिलने की उम्मीद है।


इन परिस्थितियों में कांग्रेस की राजमता के सूखा राहत के मद में धन संग्रह की बात बेमानी ही नजर आ रही है। सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो यह है कि कांग्रेस की प्रदेश इकाई द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष की बात को अनसुना करने की धृष्टता कैसे की गई। अमूमन पार्टी अध्यक्ष की मंशा पार्टी के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। सोनिया की मंशा के अघोषित तिरस्कार से पार्टी में उनकी गिरती छवि को समझा जा सकता है।

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