बालाघाटी ठाकरे किस हक से मुंबई पर अधिकार जताते हैं!
(लिमटी खरे)
कांग्रेस के शक्तिशाली महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री राजा दिग्विजय सिंह ने महाराष्ट्र पर जातिवाद और क्षेत्रवाद का कहर बरपाने वाले बाला साहेब ठाकरे और उनके भतीजे राज ठाकरे के मुंबईया होने पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए एक धमाका कर दिया है।
बकौल राजा दिग्विजय सिंह, बाला साहेब ठाकरे मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले के मूल निवासी हैं। इस लिहाज से वे मुंबईकर नहीं हैं। दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश पर दस साल लगातार राज किया है, इस लिहाज से उनकी जानकारी गलत नहीं मानी जा सकती है।
यह बात सच है कि मुंबई के बाहर वालों पर आतंक बरपाने वाले ठाकरे ब्रदर्स ही अगर मुंबई के मूल निवासी नहीं हैं, तो वे किस अधिकार से मुंबई को आपली मुंबई कहकर मराठा मानुष को भडका रहे हैं। इस तरह से देखा जाए तो ठाकरे ब्रदर्स मुंबई के लिए उसी तरह के प्रवासी हैं, जिस तरह अन्य लोग बाहर से जाकर मुंबई में बसे हैं।
मराठी मूल के ठाकरे ब्रदर्स अगर वाकई अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व न्योछावर करने कृत संकल्पित हैं, तो उन्हें सबसे पहले मध्य प्रदेश और बालाघाट जिले के लिए कुछ करना चाहिए। वस्तुत: ठाकरे ब्रदर्स एसा करेंगे नहीं क्योंकि एसा करने से उन्हें राजनैतिक तौर पर कुछ लाभ होने वाला नहीं है।
मध्य प्रदेश के इंदौर में आयोजित मछुआरों के सम्मेलन में दिग्विजय सिंह ने यह रहस्योद्घाटन किया। वैसे देखा जाए तो मुंबई मूलत: कोलियों और मछली पकडकर जीवन यापन करने वाले मछुआरों का शहर है, जिस पर बाद में पारसी और गुजरातियों ने अपना वर्चस्व बना लिया था।
नब्बे के दशक में शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे ने मराठा कार्ड चलकर आतंक बरपाया और मुंबई पर कब्जा कर लिया। कांग्रेस ने अपने नफा नुकसान को देखते हुए बाला साहेब को आतंक बरपाने की पूरी छूट दी थी, जिसका नतीजा है ठाकरे ब्रदर्स का जातीवाद और क्षेत्रवाद के नाम पर होने वाला तांडव।
राज ठाकरे जब बाला साहेब ठाकरे के मातोश्री की मांद से बाहर निकले तब बाला साहेब को कमजोर करने के लिए सियासतदारों ने एक बार फिर वही पुरानी चाल चली और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के जनक राज ठाकरे को आतंक बरपाने की पूरी छूट दे दी।
ठाकरे ब्रदर्स ने मुंबई में उत्तर भारतीयों का जीना मुहाल कर रखा है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। कल तक सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को कोसने वाले ठाकरे ब्रदर्स की तोप का मुंह अब मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर पर आकर टिक गई है।
यह सच है कि धन दौलत और शोहरत उगलने वाले क्रिकेट पर मुंबई का कब्जा रहा है, पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि शेष भारत के खिलाडियों को इस खेल को खेलने का कोई हक नहीं है। बाला साहेब ठाकरे एण्ड कंपनी सचिन को मराठों को आगे नहीं बढाने पर लानत मलानत भेज रहे हैं, जिसकी चहुंओर तीखी प्रतिक्रिया है। ठाकरे का अगर बस चले तो वे क्रिकेट जेसे लोकप्रिय खेल को मुंबई की बपौती बना डालें।
इस सब विवाद के चलते पहली बार कांग्रेस की ओर से कोई बयान आया है, वह भी कांग्रेस की आधुनिक राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले दिग्विजय सिंह का। दिग्गी राजा ने ``बात निकली है तो दूर तलक जाएगी`` की तर्ज पर बाला साहेब ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोला है, वरना इस मामले में प्रदेश और केंद्र में बैठी कांग्रेस बेकफुट पर ही नजर आ रही है।
समूचे महाराष्ट्र में वेमनस्य फैलाने का काम करने वाले ठाकरे ब्रदर्स का ``सामना`` का प्रकाशन प्रतिबंधित कर देना चाहिए। शिवसेना और मनसे का आतंक इतना अधिक है कि सामना में छपे आलेखों को महाराष्ट्र में किसी निजाम के फरमान से कम नहीं माना जाता है।
मुंबई के हालात देखकर लगता है मानो 1947 में भारत देश आजाद हुआ है पर इस अखण्ड भारत के नक्शे में मुंबई नहंी है। भारत गणराज्य का कानून देश की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में लागू नहीं होता है। मुंबई में चलता है ठाकरे ब्रदर्स का अपना कानून। यह है पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा और राजीव गांधी के सपनों का इक्कीसवीं सदी का भारत, जिस पर नेहरू गांधी खानदान की चौथी और पांचवीं पीढी राज कर रही है।
बहरहाल अगर दिग्विजय सिंह सच कह रहे हैं कि बाला साहेब ठाकरे का परिवार मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले का मूल निवासी है तो निश्चित तौर पर बालाघाट के निवासी फक्र के बजाए अपने आप को शर्मसार पा रहे होंगे कि महाराष्ट्र प्रदेश को अलगाववाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद की आग में झोंकने वाले ठाकरे ब्रदर्स बालाघाट की भूमि पर पैदा हुए हैं।
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