मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

12 साल की राजमाता!


12 साल की राजमाता!
(लिमटी खरे)

21वीं सदी की कांग्रेस की सबसे शक्तिशाली महिला श्रीमति सोनिया गांधी इटली मूल की होने के बावजूद भी 1998 से लगातार सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पर राज कर रहीं हैं। कांग्रेस के प्रथम परिवार की पांचवीं पीढी की सदस्य बुधवार 9 दिसंबर को अपने जीवन के 65वें वर्ष में प्रवेश करने वाली हैं।
इसे महज संयोग नहीं कहा जाएगा कि दिसंबर के माह में जहां कांग्रेस अपनी स्थापना के 125 वर्ष पूरे करने जा रही है, वहीं इसी महीने कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी अपने जीवन के 64 वर्ष पूरे कर 65वें वर्ष में प्रवेश कर जाएंगीं। यूं तो सोनिया गांधी ने अनेक रिकार्ड अपने नाम कर लिए हैं, पर कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर वे लगातार 12 साल से पदासीन हैं।

गौरतलब होगा कि 1998 में जब स्व.सीताराम केसरी के स्थान पर उन्हें अध्यक्ष बनाने के प्रयास किए गए थे, तब उन्होंने इसके लिए साफ तौर पर इंकार कर दिया था। चमत्कारी नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस की हिलोरे मारती कश्ती को संभालने के लिए नेहरू गाध्ंाी परिवार के अलावा और कोई विकल्प कांग्रेस के पास नहीं था। यही कारण है कि कांग्र्रेस के शातिर नेताओं ने कांग्रेस के बजाए अपनी अस्मत बचाने के लिए सोनिया को राजनीति के भंवर में ढकेल दिया था।

जैसे ही सोनिया राजनीति में आईं, हिन्दी बोलना और समझना उनके लिए सबसे बडी चुनौति बनी। शरद पंवार ने सोनिया के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड नई पार्टी का गठन कर लिया। इस समय विपक्ष द्वारा सोनिया गांधी को ``लीडर`` के बजाए ``रीडर`` का खिताब दिया गया, क्योंकि सोनिया गांधी द्वारा टूटी फूटी हिन्दी में अपने भाषण पढा ही किया करते थे।
राष्ट्र की मुख्य धारा से भटक चुकी कांग्रेस को एक बार फिर एकजुटता के सूत्र में पिरोना बहुत ही कठिन काम था। कांग्रेस की ही फूट का नतीजा था कि भाजपा ने तेरह दिन, तेरह महीने के बाद पांच साल तक लगातार शासन किया। इस कठिन घडी में कांग्रेस में नई जान फूंकना निश्चित तौर पर चुनौति से कम नहीं था।

नपे तुले कदमों से आगे बढती सोनिया गांधी का जप और तप आखिर काम आ गया। सोनिया के नेतृत्व में 2004 में कांग्रेस पहली बार सत्ता में आई। उस समय प्रधानमंत्री बनने का दबाव सोनिया पर सबसे अधिक था। दूरदृष्टि पक्का इरादा का मूलमंत्र लिए चल रहीं सोनिया ने यह पद ठुकराकर एक एसी मिसाल पेश की जिसकी तारीफ दुनिया भर में की गई।
माना जा रहा है कि सोनिया द्वारा यह त्याग नेहरू गांधी परिवार की छटवी पीढी अर्थात प्रियंका या राहुल गांधी को देश का प्रधानमंत्री बनवाने के लिए किया गया था। प्रियंका गांधी द्वारा मुरादाबाद के व्यवसायी राबर्ट वढेरा से विवाह करने के उपरांत अब राहुल पर ही कांग्रेसियों की निगाहें टिक गईं।

2009 में एक बार फिर कांग्रेस सत्ता में आई इस बार राहुल गांधी ने मंत्रीपद ठुकराकर फिर मिसाल पेश की। सत्ता के आदी हो चुके कांग्रेस के मोटी चमडी के आलंबरदारों को यह बात अच्छी तरह समझ में आ चुकी थी कि सत्ता की मलाई अगर चट करनी है तो इसके लिए नेहरू गांधी परिवार की चम्मच का सहारा लेना ही पडेगा। यही कारण है कि जुम्मा जुम्मा एक दशक पहले राजनीति में कदम रखने वाले राहुल गांधी के सामने तीन और चार दशक से राजनैतिक बियावान की खाक छानने वाले नेता नतमस्तक नजर आ रहे हैं।

चमत्कार को नमस्कार की तर्ज पर कांग्रेस ने नब्बे के दशक से अपने दो प्रेरणा स्त्रोतों को हाशिए पर ही डाल दिया है। इसमें पहले राजीव गांधी के पिता एवं इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी, जिनके चलते नेहरू परिवार की पुत्री इंदिरा को गांधी सरनेम मिला। दूसरे युवा तुर्क का खिताब पाने वाले संजय गांधी। संजय गांधी के निधन के उपरांत उनकी पित्न मेनका और पुत्र वरूण ने भाजपा का दामन थाम लिया तो कांग्रेस ने संजय के नाम से ही पर्याप्त दूरी बना ली। कांग्रेस के वास्तविक भविष्य दृष्टा तो संजय और फिरोज गांधी ही थे, जिनके नाम तक से आज कांग्रेस को एलर्जी ही दिख रही है।
केंद्र में भले ही कांग्रेस ने ताकत हासिल कर ली हो पर सिक्के का दूसरा पहलू काफी भयावह ही है। राज्यों में कांग्रेस जनाधार खोती जा रही है। इसका प्रमुख कारण सोनिया गांधी के इर्दगिर्द आधार विहीन लोगों का जमावडा होना है। सोनिया के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल, निज सचिव विसेंट जार्ज आदि जैसे रीढ विहीन घोडों ने गणेश परिक्रमा को बढावा ही दिया है। यही कारण है कि जमीनी स्तर पर कांग्रेस का संगठन पूरी तरह मृत प्राय ही पडा है।
कांग्रेस के प्रथम परिवार की बहू पार्टी की इस तरह की पहली अध्यक्ष हैं जो इतालवी मूल की हैं एवं बोफोर्स कांड में क्लीन चिट पाने वाले क्वात्रोची भी इतालवी मूल के ही हैं। विडम्बना ही कही जाएगी कि जिस बोफोर्स कांड के चलते सोनिया के पति राजीव गांधी को सत्ता से बाहर होना पडा था, उसे ही कांग्रेसनीत सरकार द्वार क्लीन चिट दे दी गई।
आजादी के पहले ब्रितानी मूल की लंदन निवासी एनी बीसेंट (1917) और ब्रितानी मूल की ही केंब्रिज निवासी नीली सेनगुप्ता (1933) जैसी शिख्सयतें पार्टी की अध्यक्ष हुआ करतीं थी, जो कि विदेशी मूल के थे। नेहरू गांधी परिवार मेें सोनिया गांधी पांचवीं शिख्सयत हैं जो पार्टी का नेतृत्व कर रहीं हैं। इसके पूर्व मोती लाल नेहरू (1928), जवाहर लाल नेहरू (1929, 35, 51), इंदिरा गांधी (1978 से 1984) और राजीव गांधी (1984 से 1991) पार्टी के अध्यक्ष रहे हैं।

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