ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
बाबा रामदेव और युवराज के बीच गुफ्त गू
स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव और कांग्रेस की नजर में देश के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी के बीच एक घंटे से भी अधिक समय तक विचार विमर्श की जमकर चर्चा हो रही है। दरअसल अपनी विदेश यात्रा के पूर्व बाबा रामदेव ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से भ्ोंट करने की इच्छा जताई। राहुल के राजनैतिक मैनेजरों ने तत्काल इसकी स्वीकृति दे दी। राहुल और बाबा के बीच चर्चा का दौर आरंभ हुआ। पता नहीं कब साठ मिनिट से ज्यादा समय बीत गया, और दोनों को पता ही नहीं चला। राहुल गांधी के करीबी सूत्रों का कहना है कि राहुल बाबा यह जानना चाह रहे थे कि कहीं बाबा रामदेव के मन में उत्तराखण्ड से कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव लडने के बलवती इच्छा तो हिलोरें नहीं मार रही है। बताते हैं कि राहुल ने इशारे ही इशारे में बाबा को यह पेशकश दे भी दी। चतुर सुजान बाबा रामदेव ने राहुल के इशारों को समझकर इस पेशकश को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वे फिलहाल राजनीति से दूर ही रहना चाह हैं। उठते उठते बाबा के एक चेले ने बाबा के मन के मर्म को समझा ही दिया। शायद बाबा रामदेव पीछे के रास्ते अर्थात राज्य सभा के माध्यम से संसदीय सौंध तक पहुंचना चाह रहे हों।
किंगमेकर का कम हुआ क्रेज
कल तक राजनीति के क्षितिज पर धूमकेतू की तरह चमककर किंगमेकर का ताज पहनने वाले केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री कमल नाथ की लोकप्रियता दिनों दिन कम ही होती जा रही है। इस बार मध्य प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों में उनके द्वारा बांटी गई टिकिट और रोड शो के बावजूद भी वे अपने कोटे के एक भी प्रत्याशी को विजयश्री का वरण नहीं करवा सके। देखा जाए तो इंदौर, जबलपुर, के महापौर तथा छिंदवाडा, बालाघाट और सिवनी की नगर पालिका अध्यक्ष की टिकिट कमल नाथ के कोटे की थीं। जबलपुर और इंदौर में उन्होंने बाकायदा रोड शो किया। रही बात छिंदवाडा की तो कहा जाता है कि कमल नाथ की रग रग में बसता है छिंदवाडा। 1980 से लगातार यह उनका संसदीय क्षेत्र रहा है। इस बार उन्होंने अपने कोटे वाले शहरों को एक बार फिर गोद लेने का एलान किया था। लोग यह कहने से नहीं चूके कि कमल नाथ की गोद है अनाथालय। जब मर्जी की ले लिया गोद और फिर उतार फेंका नीचे। इस मर्तबा उन्होंने सिवनी और बालाघाट की ओर रूख करना मुनासिब नहीं समझा, जबकि वे अनेकों बार इन दोनों ही जिलों को गोद ले चुके थे। छिंदवाडा में इस मर्तबा उन्होंने कहा कि छिंदवाडा के विकास की जवाबदारी उनकी ही है, िंछंदवाडा निवासी कहते पाए गए ``मालिक, तीस सालों से आप यहां के जनसेवक हैं, फिर अब कितने और साल लगेंगे विकास करने में।`` फिर क्या था भाजपा ने कांग्रेस को साढे तेरह से अधिक मतों से पछाड दिया।
गांवों में बसता है हृदय प्रदेश
कहा जाता है कि भारत देश की आत्मा गांवों में बसती है। देश का हृदय प्रदेश कहलाने वाला मध्य प्रदेश की आत्मा सबसे अधिक समृद्ध कही जा सकती है। एक अनुमान के मुताबिक देश में लगभग साढे छ: लाख गांव हैं। इन गांवों में महज एक लाख गांव ही हैं मध्य प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों में। कहा जाता है कि वर्तमान मध्य प्रदेश में गांव, टोले मजरों की संख्या साढे पांच लाख से अधिक है। यह बात चौंकाने वाली जरूर है पर सत्य ही है। इस लिहाज से भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय के साठ सालों का कच्चा चिठ्ठा अगर किसी को जानना हो तो वह मध्य प्रदेश के किसी भी छोर पर बसे गांव में जाकर आजादी के छ: दशकों में देश की सरकारों की विकास यात्रा को साफ तौर पर देखकर शासकों और रियाया के बीच बढे अंतर को बेहतर तरीके से देख सकता है। अमूमन सूबे के हर गांव में अधनंगे, भूखे बच्चे, फटे कपडों में किसानों और महिलाओं की दुर्दशा की कहानी ही कह रहा है।
नजदीक आ सकते हैं गांधी बच्चन परिवार
इंदिरा गांधी और हरिवंश राय बच्चन के बीच गहरी दोस्ती को उसके बाद वाली पीढी, राजीव अमिताभ ने बखूबी निभाया। सोनिया की डोली उठाने में बच्चन परिवार की भूमिका से कोई इंकार नहीं कर सकता। अपने मित्र राजीव गांधी को राजनैतिक पायदान चढने में मदद करने वाले अमिताभ बच्चन इलहाबाद से संसद सदस्य भी रहे। राजीव गांधी की हत्या के बाद अनेक गलत या सही फहमियों के चलते दोनों परिवार में दरार बढती ही चली गई। इसके बाद परस्पर विरोधी बयानबाजियों ने इस खाई को और अधिक बढाया है। हाल ही के घटना क्रमों ने दोनों परिवार की युवा पीढी के गलबहियां डालने के मार्ग प्रशस्त कर दिए हैं। दरअसल रूपहले पर्दे के महारथी अमिताभ बच्चन के भाई अजिताभ की बेटी के पेंटिंग शो में अमिताभ की बेटी श्वेता नंदा और राजीव गांधी की पुत्री प्रियंका वढेरा के एक साथ शिरकत करने से अनेक लोग चौंक गए। अब लोग कयास लगा रहे हैं कि समाजवादी नेता अमर सिंह के चंगुल से अगर अमिताभ बाहर आ गए तो निश्चित तौर पर राजनीति के महारथी गांधी नेहरू परिवार और रूपहले पर्दे के सरताज बच्चन परिवार के बीच नजदीकियां बनने में समय नहीं लगेगा।
सिब्बल की चुप्पी का राज
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल को मनमोहन सरकार में जबर्दस्त प्रमोशन मिला है। बहुत महत्वहीन विभाग से उन्हें एचआरडी जैसा भारी भरकम विभाग सौंपा गया है, वह भी अर्जुन सिंह जैसे घाघ नेता से छीनकर। सिब्बल कुछ माह पूर्व काफी सक्रिय नजर आ रहे थे, अब उनकी हवा उडी हुई है। छपास की चाहत में कपिल सिब्बल ने न जाने क्या क्या बयान बाजी कर डाली थी। प्रधानमंत्री और कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी ने उनको नसीहत दे डाली। सिब्बल के इर्द गिर्द के लोग अब खुश हैं कि सिब्बल विवादों से दूर हैं। सिब्बल विरोधी अब इस बात की तह में जाने का प्रयास कर रहे हैं कि आखिर राजमाता ने सिब्बल को क्या घुटी पिलाई कि वे एकदम ही खामोश हो गए। कहा जा रहा है कि प्रधानमत्रंी डॉ.मनमोहन सिंह के माध्यम से कांग्रेस अध्यक्ष ने सिब्बल को साफ साफ कह दिया है कि सिब्बल साहेब आपने अपने विभाग का जो सौ दिनी एजेंडा तय किया था यह समय उसे लागू करने का है, सो मीडिया के सामने अपना चेहरा दिखाने के बजाए अब उसे लागू करने में ज्यादा दिलचस्पी लें।
राजमाता के संदेश की व्याख्या
कांग्रेस में राजनीति सुप्रीम अर्थारिटी के इर्द गिर्द ही सिमटकर रह जाती है। कांग्रेस अध्यक्ष का इशारा या उनकी मंशा ही कार्यकर्ताओं का लाईन ऑफ एक्शन तय करता है। कांग्रेस के मुखपत्र में इस बार सोनिया गांधी ने हरियाणा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री को ठीक से चलने की सलाह दे डाली है वह भी परोक्ष तौर पर। कांग्रेस का मुखपत्र हाथ में आते ही मुख्यमंत्री विरोधी ताकतें सर उठाने लगी हैं। सभी अपने अपने तरह से कांग्र्रेसाध्यक्ष के इशारों को परिभाषित कर रहा है। कांग्रेस के कुछ नेताओं के मन में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने की लालसा एक बार फिर हिलोरे मारने लगी है। केंद्रीय मंत्री सैलजा के करीबी नेताओं के पैर तो जमीन पर ही नहीं पड रहे हैं, उनका मानना है कि चूंकि सैलजा काफी समय से कांग्रेस सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी के करीब हैं, सो आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री को कोई अन्य जवाबदारी दी जाकर सैलजा को प्रदेश की बागडोर थमाई जा सकती है।
संघ की मितव्ययता!
मंदी की मार में हर कोई कम खर्ची के राग अलाप रहा है। यह राग सिर्फ दिखावे के लिए ही है, इसे अंगीकार करने कोई राजी नहीं है। सादा जीवन उच्च विचार के आदशोZं पर चलने वाले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ में भी अब विलासिता ने अपनी जगह बना ही ली है। वैसे तो संघ के आला नेताओं को आडंबर और फिजूलखर्ची से नफरत ही रही है। हाल ही में हुए एक वाक्ये ने संघ की कमखर्ची को उजागर कर दिया है। जमशेदपुर से रांची जाने के लिए एक संगठन मंत्री को हेलीकाप्टर के बजाए हवाई जहाज की दरकार हुई, वह भी इसलिए कि जमशेदपुर से रांची का सफर चौपर से 35 मिनिट तो हवाई जहाज में महज 20 मिनिट में ही तय हो जाता है। सच ही है कि प्रचारकों के ``बहुमूल्य 15 मिनिट`` बचाने के लिए क्या भारतीय जनता पार्टी द्वारा तीन लाख रूपए खर्च नहीं किए जा सकते हैं। संघ में इस तरह के आडम्बर और दिखावे के आने से आने वाले दिनों में संघ अगर अपने मूल पथ से भटक जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
राजनीति के टोटके
राजनेता अपनी कुर्सी बचाने और सर्वशक्तिमान बनने के चक्कर में साधू बाबा या औघड के चक्कर काटते ही रहते हैं। हाल ही में कं्रदीय संचार मंत्री जो कि स्पेक्ट्रम विवाद में बुरी तरह घिर गए हैं, ने एक अंकज्योतिष की सलाह पर अपने आवास का नंबर ही बदल दिया है। राजा को मोतीलाल नेहरू मार्ग पर 2 नंबर की कोटी आवंटित है। इस कोठी का नंबर बदलकर उन्होने 2 ए कर लिया है। यद्यपि आधिकारिक तौर पर अभी यह नहीं किया गया है, पर राजा तो राजा ठहरे उन्होने कोठी पर 2 के आगे ए भी पुतवा दिया है। राजा के करीबी कहते हैं कि अंक ज्योतिषी और वास्तुविदों की सलाह पर राजा ने यह कदम उठाया है। इस परिवर्तन के बाद आने वाले समय में राजा के सर से विवादों का साया उठ ही जाएगा। राजा निर्विवाद रह पाएंगे या नहीं यह तो समय ही बताएगा किन्तु राजा पर छाए इस संकट ने अंक ज्योतिषियों और वास्तुविदों की जेबें जरूर गरम कर दी हैं।
चिदम्बरम की निगाहें 7 रेसकोर्स पर!
अगली बार डॉ.मनमोहन सिंह के बजाए पी.चिदम्बरम पर प्रधानमंत्री बतौर दांव लगाया जा सकता है। इस तरह की चर्चाएं सियासी गलियारों में चल पडी हैं। दरअसल मंत्रिमण्डल पर कमजोर पकड के चलते मन मोहन सिंह से खुश नहीं हैं कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी और उनकी किचिन केबनेट। बताते हैं चिदम्बरम समर्थकों द्वारा यह बात राजनैतिक फिजां में उतारी जा रही है कि अगर सोनिया गांधी की तर्ज पर अगली बार कांग्रेस के युवराज राहुल गाध्ंाी द्वारा प्रधानमंत्री पद का त्याग कर सत्ता की चाबी अपने हाथों में रखी जाती है तो 7 रेसकोर्स रोड (प्रधानमंत्री का सरकारी आवास) मनमोहन के बजाए पी.चिदम्बरम ही रहेंगे। प्रणव मुखर्जी की ढलती उमर के चलते कांग्रेस के शीर्ष नेता उन पर शायद ही दांव लगाएं यह बात भी जोर शोर से राजनैतिक बियावान में उछाली जा रही है। चूंकि प्रणव के बाद ए.के.अंटोनी ही सोनिया की पसंद हो सकते हैं, अत: चिदम्बरम के अनुयायी अब अंटोनी की काट खोजने में व्यस्त हो गए हैं।
इस तरह लगी गडकरी के नाम पर अंतिम मुहर
भाजपा का नया अध्यक्ष कौन होगा इस पर रायशुमारी लंबी चली। इसी बीच नितिन गडकरी का नाम चर्चाओं में आया। गडकरी में आखिर एसे कौन से सुरखाब के पर लगे हुए थे, कि संघ उनका मुरीद हो गया था। अंत में संघ ने गडकरी के नाम पर ही अंतिम मोहर लगा दी, और गडकरी के हाथों देश में भाजपा की कमान सौंप दी गई। मीडिया भाजपा के अंदरखाने में इस बात को तलाश कर रही है कि आखिर गडकरी को ही क्यों चुना गया अध्यक्ष पद हेतु। बताते हैं कि राजग के पीएम इन वेटिंग की बुरी हालत को देखकर संघ बुरी तरह आहत था। संघ की मंशा थी कि भाजपा की कमान उसे ही सौंपी जाए जो प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब कम से कम अपने मन में न पाले। संघ की इस मंशा को सिर्फ गडकरी ने ही भांपा और संघ के आला नेताओं को कह भिजवाया कि वे देश के प्रधानमंत्री बनने में कतई इच्छुक नहीं हैं। फिर क्या था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लगा दी गडकरी के नाम पर आखिरी मुहर।
शापिंग के शौकीन हैं बनर्जी साहेब
खडगपुर से बीटेक की उपाधि प्राप्त श्रीकुमार बनर्जी ने देश के शीर्ष परमाणु संस्थान परमाणु उर्जा आयोग के अध्यक्ष का पदभार संभाल लिया है। स्कूल में अध्ययन के दौरान फुटबाल के शौकीन रहे बनर्जी की एक किताब फेज ट्रांसफार्मेशन्स : एक्जाम्पल्स फ्राम टाइटेनियम एण्ड जिंकोZनियम अलॉयज नामक चर्चित किताब लंदन में छप चुकी है। उनके तीन सौ से ज्यादा आलेख विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हो चुके हैं। वैसे बनर्जी की जडें गहराई तक गांवों में जुडी हुई हैं। उन्हें देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल ही है कि उन्हें अपने काम में अंतर्राष्ट्रीय स्तर का सम्मान भी मिल चुका होगा। कम ही लोग जानते हैं कि बनर्जी साहेब को शापिंग का जबर्दस्त शौक है।
अहमद का रेलगाडी प्रेम
कांग्रेस की सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र 10 जनपथ (कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी का सरकारी आवास) में एक दशक से कब्जा जमाए बैठे स्वयंभू चाणक्य अहमद पटेल और भारतीय रेल के बीच क्या रिश्ता है। जी हां जनाब दोनों ही के बीच बडा ही गहरा रिश्ता है। 17 साल पहले जब बाबरी विध्वंस हुआ था उस वक्त अहमद पटेल रेल में यात्रा कर रहे थे, और इस बार 6 दिसंबर को वे हज यात्रा पर थे। विवादस्पद मुद्दों से कन्नी काटना अहमद पटेल का शगल रहा है। वैसे कांग्रेस की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर अर्जुन सिंह का वजन हल्का कर उन्हें मंत्रीमण्डल से बाहर का रास्ता दिखाने में अहमद पटेल ने खासी भूमिका निभाई है। लोकसभा चुनावों में सिंह के वर्चस्व वाले विन्ध्य में उनकी पुत्री वीणा निर्दलीय तौर पर मैदान में थीं, उस समय कांग्रेस के प्रचार के लिए अर्जुन सिंह को सीधी जाना था, पर उनके लिए तय किए विमान में महोदय ने गुजरात की खाक छानी, मजबूरी में सिंह को महाकौशल एक्सप्रेस से यात्रा करनी पडी।
पुच्छल तारा
पटना से अमितेश कुमार ने मेल किया है कि दीवार में अमिताभ बच्चन और ऋषि कपूर की दमदार अदाकारी आज भी लोगों को याद है। पुल के नीचे दोनों के बीच संवाद आज प्रोढ हो रही पीढी के मानस पटल से विस्मृत नहीं हुए होंगे, जिसमें शशि कपूर ने वजनदारी के साथ कहा था -``मेरे पास मां है।`` सदी के महानायक को इसका जवाब ढूंदने में लगभग तीस साल लग गए आज अमिताभ बच्चन गर्व से कह सकते हैं :- रवि (शशि कपूर), तेरे पास मां है, तो मेरे पास ``पा`` है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें