सिम्पलिसिटी इज ओवर, नाउ ओरिजनालटी स्टार्टस!
क्या मंत्री दिल्ली प्रदेश के नागरिक नहीं हैं शीला जी!
सवा दस करोड रूपए के बंगले में रहेंगे दिल्ली के महज छ: मंत्री
इक बंगला बने नयारा . . . .
(लिमटी खरे)
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी और उनके साहेबजादे कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी के मितव्ययता का संदेश देने के मामले अभी ठंडे भी नहीं हुए कि उनकी नाक के नीचे ही कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार ने देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली में अपने मंत्रियों के लिए छ: बंगलों के निर्माण के लिए महज दस करोड 17 लाख रूपए की राशि की स्वीकृति प्रदान कर सभी को चौंका दिया है। मंत्रियों के नए सरकारी आवास 23 हजार नौ सौ 42 वर्गफीट पर बनने जा रहे हैं, अर्थात हर एक बंग्ला लगभग चार हजार वर्गमीटर के विशाल क्षेत्र में बनेगा। और तो ओर शीला सरकार इस मसले में कितनी जल्दी में है, इस बात का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि इन बंगलों के निर्माण की समयसीमा महज पंद्रह माह ही रखी गई है।
अगले साल दिल्ली में होने वाले राष्ट्रमण्डल खेलों में धन की कमी का रोना रोने वाली दिल्ली सरकार का यह कदम आश्चर्यजनक ही माना जाएगा। कहने को तो राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए तीसरी बार सत्तारूढ हुईं शीला दीक्षित ने इस बार अपनी जीत के तोहफे के तौर पर दिल्लीवासियों को मेट्रो या डीटीसी अथवा ब्लू लाईन में सफर करने पर ज्यादा राशि देने, वेट की दरें बढाने, बिजली पानी मंहगा करने जैसे उपक्रम किए हैं।
विश्वव्यापी आर्थिक मंदी के चलते हिन्दुस्तान की कमर भी टूटी हुई है। एसी विषम परिस्थिति में शीला सरकार ने आम नागरिकों पर प्रत्यक्ष और परोक्ष करों का बोझ लादकर उन्हें अधमरा कर दिया है। वहीं दूसरी ओर शीला दीक्षित ने अपने लाडले मंत्रियों के एशोआराम का पूरा ख्याल रखते हुए छ: मंत्रियों के सरकारी आशियाने के लिए सवा दस करोड रूपए का प्रावधान किया है।
यहां गौरतलब बात यह है कि वर्तमान में शीला दीक्षित सरकार के महज दो मंत्रियों को छोडकर शेष के पास सरकारी आवास उपलब्ध हैं। सरकारी आवास विहीन केवल दो मंत्रियों के लिए बंगला बनाने के बजाए शीला सरकार ने आधा दर्जन मंत्रियों के लिए एक करोड 69 लाख रूपए प्रति बंगले के मान से राशि मुहैया करवाई है। इनमें से चार आवास राजनिवास मार्ग तो दो अतउर रहमान लेन में बनने प्रस्तावित हैं।
आसमान छूती मंहगाई के इस दौर में जहां आम नागरिक के सर पर छत ही मयस्सर नही हैं, वहां अगर शीला दीक्षित चाहतीं तो बडे सरकारी आवासों में रह रहे दिल्ली सरकार के बडे अफसरान को कुछ छोटे आवासों में स्थानांतरित कर दो मंत्रियों के लिए बडे आवास की व्यवस्था कर सकतीं थीं। वस्तुत: उन्होंने एसा किया नहीं। हो सकता है कि ``जन सेवकों`` के चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की गरज से जनता के गाढे पसीने की कमाई को शीला दीक्षित ने इस तरह पानी में बहाने की बात सोची हो। और तो ओर जिस सूबे में विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नई विधानसभा के गठन के एक साल बाद भी अपने अपने बंगलों पर काबिज हों तब तो नई आलीशान सरकारी अट्टालिकाओं के निर्माण की दरकार होगी ही।
वित्त मंत्री के अशोक कुमार वालिया के अनुसार मंत्रियों को पुरानी कोठियों में काम करने में कठिनाई महसूस हो रही है, इसलिए लोक निर्माण विभाग के नए बंगलों के दो प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया गया है। पुराने आवासों में मंत्रियों को किस तरह की परेशानी से दो चार होना पड रहा है, यह बात वित्त मंत्री साफ नहीं कर सके। मजे की बात तो यह है कि जिन बंगलों के निर्माण को पहले दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन के पहले इंकार कर दिया था, उन्हें दुबारा फिर बिना किसी अपत्ति के पास भी कर दिया है।
देखा जाए तो दिल्ली सरकार के स्वामित्व वाले पुराने बदहाल छोटे छोटे आवासों में दिल्ली सरकार के अनेक कर्मचारी किस तरह गुजर बसर कर रहे हैं, यह बात वे ही भली भांति जानते हैं पर उनके उपर सत्तारूढ जनसेवकों ने कभी नजरें इनायत नहीं की। भला इस तरफ सरकार ध्यान दे भी तो क्यों, इन आवासों में उन्हें थोडे ही रहना है।
बात चाहे लोकसभा की हो या विधानसभा की हर जगह फिजूलखर्ची का एक अघोषित मद होता है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। मंत्री बने एम.एस.कृष्णा, शशि थुरूर और ममता के सहयोगी सुल्तान अहमद ने लाखों रूपए होटलों में रूककर बहा दिए। इतना ही नहीं इस साल सांसदों के बंगलों के रंगरोगन और जरूरी चीजों में केवल एक सौ करोड रूपए ही खर्च हुए हैं। उत्तर प्रदेश की निजाम मायावती ने अपने सरकारी आवास और बसपा के मुख्यालय को बुलट प्रूफ करवाने में भी साढे चार करोड रूपए का प्रावधान किया है। सवाल यह उठता है कि यह सारा का सारा धन कहां से आएगा, जाहिर सी बात है कि करों के माध्यम से जनता के जेब पर डाका डालकर ही जनसेवकों को विलसिता का जीवन मुहैया करवाया जाएगा।
एक नहीं अनेकों उदहारण हैं, जबकि नए निर्माण के बिना ही पुराने भवनों या कक्षों में जरूरी रद्दोबदल कर उनसे काम चलाया गया हो। मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में जब मंत्रियों की तादाद बढी तो राज्य सचिवालय वल्लभ भवन में प्रमुख सचिवों के कक्षों को खाली करवाकर मंत्रियों को दिया गया था। प्रमुख सचिवों को सचिवों का तो सचिवों को उप सचिवों का कक्ष आवंटित किया गया था। उपसचिव जो अकेले ही एक कक्ष पर अधिकार जमाए रहते थे, उन्हें अन्य उपसचिवों के साथ अपना कमरा शेयर करना पडा था। यह सब तब हुआ जब मुख्यमंत्री के तौर पर दिग्विजय सिंह ने दृढ इच्छाशक्ति का परिचय दिया था।
हमारे मतानुसार तो जिस तरह विधायकों या सांसदों को आवास उपलब्ध कराए जाते हैं, राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या राज्यपाल के `ईयर मार्क` आवास होते हैं, ठीक उसी तरह मंत्रियों के लिए भी आवास ईयर मार्क कर देना चाहिए। वैसे भी मंत्री विधायकों या सांसदों को पिन से लेकर प्लेन तक सारी जरूरत की सामग्री सरकार द्वारा मुहैया करवाई जाती है।
जब भी नया मंत्रीमण्डल गठित हो अथवा किसी मंत्री का विभाग बदले उसे महज अपने कपडे, स्मृतिचिन्ह और तोहफे उठाकर ही नए बंगले में जाना होगा। शेष पलंग, गद्दे, तकिए, सोफा, कुर्सी कंप्यूटर, फोन, परदे आदि सभी चीजें तो सरकारी ही होती हैं। अगर सरकार यह व्यवस्था लागू कर देती है तो फिर जनता को विभागीय मंत्री के घर को ढूंढने के लिए दर दर नहीं भटकना पडेगा। वैसे भी मंत्रियों को अपने विभाग के हिसाब से ही निर्धारित कार्यालय में जाना होता है। विभाग बदले जाने पर उनका कार्यालय भी बदल जाता है, और उस समय उन्हें अपना पुराना कार्यालय छोडना ही पडता है, फिर सरकारी घर से लगाव कैसा, आखिर एक न एक दिन तो उन्हें उस बंगले को छोडना ही होगा।
बहरहाल अगर शीला सरकार वर्तमान सरकारी आवासों में ही रद्दोबदल कर उनमें रहने के लिए मंत्रियों को मना लेतीं तो दिल्ली की गरीब जनता के गाढे पसीने की कमाई से सवा दस करोड रूपए बच जाते, और अगर किसी ठेकेदार विशेष को उपकृत करना ही था तो बेहतर होता कि झुग्गी झोपडी में रहने वाले गरीबों के लिए इस राशि से अधिक से अधिक मकान बनाने का ठेका ही उस ठेकेदार को देकर कम से कम ``जनसेवा`` तो कर ही ली जाती।
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