ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
युवराज से घबराई भाजपा
कांग्रेस की नज़र में भविष्य के प्रधानमन्त्री राहुल गांधी की लोकप्रियता शायद इस कदर बढ गई है कि अब भाजपा द्वारा उन पर तीखे प्रहार आरम्भ कर दिए हैं। भाजपा द्वारा राहुल गांधी के युवा जोडो अभियान में पलीता लगाने के हर सम्भव प्रयास किए जा रहे हैं। हाल ही में राहुल गांधी की मध्य प्रदेश यात्रा के उपरान्त भाजपा शासित राज्य सरकार ने मध्य प्रदेश की अघोषित व्यवसायिक राजधानी इन्दौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कुलपति और रजिस्टार को नोटिस भेजकर जवाब तलब किया है। गौरतलब होगा कि राहुल इस विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में शिरकत करने गए थे, इस दौरान वे विद्यार्थियों से रूबरू हुए और उन्होंने राजनीति में सक्रिय होने का न्योता दिया था। यह अलहदा बात है कि राजनीति को दूर से सलाम करने वाले विद्यार्थियों की यहां ज्यादा तादाद थी, किन्तु भाजपा सरकार को यह रास नहीं आया और राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने यूनिवर्सिटी को नोटिस देकर पूछा है कि इस तरह के राजनैतिक कार्यक्रम की इजाजत किसने दी थी। उधर कांग्रेस के तथाकथित थिंक टैंक समझे जाने वाले सांसद अनिल माधव दुबे ने भी नहले पर दहला मारकर ग्वालियर, इन्दौर, भोपाल और सागर के शैक्षणिक संस्थाओं को पत्र लिखकर कहा है कि वे उनके भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित कराएं ताकि वे बच्चों को पर्यावरण के बारे में विस्तार से समझा सकें।
इन्दिरा गांधी को कोसा मोंटेक ने
कांग्रेस का दुश्मन और कोई नहीं कांग्रेस ही है, यह बात कांग्रेस से जुडे न जाने कितने बडे नेता और जनसेवक कह चुके हैं। शशि थुरूर हों या फिर खुद राहुल गांधी अपने बडबोलेपन से कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने से नहीं चूकते। अबकी बार योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने ही इन्दिरा गांधी की नीतियों की आलोचना कर डाली। अहलूवालिया का कहना है कि इन्दिरा गांधी की गरीबी उन्नमूलन की नीतियों के जरिए गरीबी को मिटाया जाना सम्भव नहीं है। गरीबी उन्नमूलन पर पटना में आयोजित एक सम्मेलन में अहलूवालिया ने इस तरह का बयान देकर सनसनी पैदा कर दी। हलांकि अहलूवालिया के इस कथन को मीडिया ने ज्यादा हवा नहीं दी फिर भी कांग्रेसनीत संप्रग सरकार के अंग ही कांग्रेस के लिए नित नई मुसीबत पैदा करने से नहीं चूक रहे हैं। कांग्रेस का भाग्य अच्छा कहा जा सकता है, क्योंकि प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के खेमे में पिछले तीन चार माहों से खामोशी पसरी हुई है। यही कारण है कि अनेक अच्छे, ज्वलन्त और प्रभावी मुद्दे भाजपा के हाथ से निकलते जा रहे हैं।
अरूण वसेZस अरूण!
भाजपा में इन दिनों दो अरूण के बीच घमासान मचा हुआ है। पिछले अनेक चुनावों में मुंह की खाने के बाद भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी की ताजपोशी के बाद अरूण जेतली और अरूण शोरी की तोपें शान्त हो गईं थीं, यह शान्ति क्षणिक ही थी। गौरतलब होगा कि आंग्ल भाषा में कुछ दिनों पूर्व मूलत: पत्रकार किन्तु अब राजनेता अरूण शोरी ने अपने एक लेख के माध्यम से तहलका मचा दिया था, जिसमें उन्होंने तत्कालीन नेतृत्व पर जमकर प्रहार किया था। सभी को घोर आश्चर्य हुआ था कि शोरी ने अचानक अपना मोर्चा पार्टी के उमर दराज नेता एल.के.आडवाणी और अरूण जेतली के खिलाफ एकाएक कैसे खोल दिया। शोरी के नजदीकी सूत्रों की मानें तो अरूण वसेZस अरूण की लडाई में अल्पविराम लगा है किन्तु दोनों अन्दर ही अन्दर तलवारें पजा रहे हैं, जो कभी भी खुलकर सामने आ सकतीं हैं। अनुशासन का दंभ भरने वाली भाजपा में अनुशासनहीनता की मिसालें जब तब देखने को मिलतीं हैं। गुजरात के मुख्यमन्त्री नरेन्द्र मोदी को ही लें, जिन्होंने अब तक भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी से सोजन्य भेंट तक करने का समय नहीं निकाला है।
भूख हडताल की उम्र दो सौ साल
अपनी बातें मनवाने के लिए घर हो या बाहर सभी भूख हडताल का ही साहारा लेते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भूख हडताल की आयु अब दो सौ साल और एक महीना होने वाली है। भारत में भूख हडताल का सिलसिला 26 दिसम्बर 1809 को बनारस में भूमि एवं भवन कर के मुद्दे को लेकर आरम्भ हुआ था। तब पहली बार भारतवंशियों ने भूखहडताल को विरोध प्रदेर्शन के लिए अपना अस्त्र बनाया था। उस समय महज पांच लोगों ने इसका आगाज किया और जल्द ही समूचे शहर ने इसे अंगीकार कर लिया था। 1809 में जब देश की धर्मनगरी बनारस दंगे की आग में जल रही थी, तभी तत्कालीन कलेक्टर मिस्टर बर्ड ने एक तुगलकी फरमान सुनाते हुए शहरवासियों पर भूमि और भवन का कर लगा दिया। इसके विरोध में गौरीकेदारेश्वर मन्दिर के महन्त परिवार से जुडे पांच सदस्यों ने भूख हडताल आरम्भ की और लगभग एक माह चली इस हडताल के बाद कलेक्टर बर्ड को घुटने टेकने पडे। फिर क्या था, गलत बात के विरोध में भूख हडताल करना अब सभी का प्रिय शगल बन चुका है।
राजमाता का आंचल ममता को नहीं दे रहा छांव
कांग्रेस की सुप्रीमो श्रीमति सोनिया गांधी और त्रणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी के बीच सब कुछ सामान्य नहीं दिख रहा है। पश्चिम बंगाल में सरकार बनाने के मामले में दोनों ही के बीच खाई बढती ही जा रही है। ममता चाहतीं हैं कि केन्द्र का पूरा दोहन कर वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमन्त्री की कुर्सी हथिया लें उधर प्रणव मुखर्जी की नज़रें भी इसी कुर्सी पर लगी हुइंZ हैं। पिछले दिनों ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था कि उनके टेलीफोन और बिना तार के फोन की भी टेपिंग कर उन पर नज़र रखी जा रही है। ममता का इशारा राज्य सरकार की ओर था या कांग्रेस की ओर यह उन्होंने साफ नहीं किया है, पर ममता की बयानबाजी से साफ होने लगा है कि जैसे जैसे बंगाल के चुनावों का समय नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे कांग्रेस और ममता के बीच दूरियां बढने लगीं हैं। ममता ने इस समस्या से निपटने की महती जवाबदारी पूर्व रेल्वे के मुख्य सुरक्षा आयुक्त बी.मोहन को सौंप दी है कि उनके फोन की टेपिंग और उन पर निगरानी को रोका जा सके।
कब हटेगी किलर ब्लू लाईन!
देश की राजनैतिक राजधानी इस साल होने वाले कामनवेल्थ गेम्स की तैयारियों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं है। समय कम होने के बावजूद युद्ध स्तर पर तैयारियां जारी हैं। विदेशों से आने वाले मेहमानों को दिखाने के लिए दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को भी चाक चौबन्द किया जा रहा है। दिल्ली की सडकों पर यमराज बनकर दौडती किलर लाईन बन चुकी ब्लू लाईन बस को हटाने के लिए बस घोषणाओं पर घोषणाएं ही की जा रहीं हैं। शीला सरकार द्वारा अनेक मर्तबा तारीख मुकर्रर की जा चुकीं हैं कि फलां तारीख तक ब्लू लाईन बस हट जाएंगी, किन्तु ``दामिनी`` फिल्म की तरह यह तारीख पर तारीख ही साबित हो रहा है। ब्लू लाईन के एवज में डीटीसी ने लो फ्लोर बस उतारने की कवायद की है। लक झक बस कुछ मार्ग पर संचालित होना आरम्भ भी हो गईं हैं, पर ब्लू लाईन जस की तस ही हैं। कहा जा रहा है कि जनसेवकों या उनके नाते रिश्तेदारों और चाहने वालों की बसें ही हैं ब्लू लाईन, सो उनके दबाव के चलते इन्हें सडक से हटाने में देर हो रही है।
संस्कृत में अखबार हो कहा शीला ने
दिल्ली की कुर्सी पर तीसरी मर्तबा विराजीं शीला दीक्षित का मानना है कि संस्कृत भाषा में भी समाचार पत्र का प्रकाशन किया जाना चाहिए। चौंकिए मत, दरअसल शीला दीक्षित राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान द्वारा आयोजित कौमुदी संस्कृत नाटक महोत्सव के शुभारंभ अवसर पर बोल रहीं थीं, वरना संस्कृत की फिकर किसे है। वैसे भी अगर देखा जाए तो हमारी प्राचीन भाषा संस्कृत को काशी के अलावा संरक्षण कहां मिल पा रहा है। सरकारों द्वारा भी जब राष्ट्रभाषा हिन्दी के साथ ही दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा हो तब संस्कृत के साथ अन्याय होना स्वाभाविक ही है। आज स्कूल कालेज में संस्कृत पर जोर कतई नहीं दिया जाता है। शीला दीक्षित खुद एक सूबे की निजाम हैं, वे बेहतर जानतीं हैं कि किस तरह संस्कृत को संरक्षण दिया जा सकता है, पर वे एसा करने में न जाने क्यों हिचकतीं हैं। शीला जी, जब संस्कृत की पढाई ही नहीं होगी तो भला कोई इस भाषा में छपा अखबार पढेगा कैसे। वैसे भी आप इसी से सम्बंधित एक समारोह में शिरकत कर रहीं थीं, अत: आपका भाषण इस पर केन्द्रित होना स्वाभाविक ही है। सच ही है राजनेताओं की कथनी और करनी में बडा भेद होता है।
. . . . अभी भाजपा खामोश है
अक्टूबर माह के बाद से अब तक भाजपा में खामोशी ही पसरी हुई है। केन्द्र सरकार की अनेक विसंगतियों, विफलताओं के बाद भी भाजपा ने अपना मुंह सिला हुआ है। एसा नहीं है कि भाजपा मरण शैया पर है। दरअसल भाजपा के अन्दरूनी सत्ता हस्तान्तरण के दौरान अन्त:पुर में व्याप्त खामोशी उभरकर सामने आ गई है। पहले चला चली की बेला में राजनाथ सिंह ने विवादित होने से बचने के लिए चुप्पी साध रखी थी, फिर दिसम्बर में नितिन गडकरी को कमान सौंप अवश्य दी, किन्तु उनकी नियुक्ति अडहाक ही थी। उस पर कंफरमेशन की मुहर फरवरी में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में लगेगी। फिर गडकरी अपनी सेना का गठन करेंगे, उसमें कोैन स्थान पाएगा कौन नहीं यह बात अभी साफ नहीं है। लिहाजा भाजपा के प्रवक्ता भी जबर्दस्त मुद्दों पर खामोशी अिख्तयार किए हुए हैं। दूसरी ओर नए पदाधिकारी और प्रवक्ताओं को सेट होने में कम से कम दो माह का समय लगेगा। इस तरह देखा जाए तो भारतीय जनता पार्टी का प्रचार तन्त्र छ: महीने के लिए सुस्सुप्तावस्था में चला गया है। किसी भी नेता को इस वेक्यूम को भरने की फुर्सत नहीं है। इन सपनों और कार्यप्रणाली के साथ भाजपा केन्द्र और देश के अनेक राज्यों में सत्तारूढ होने का दंभ भर रही है, जय हो. . .!
कब होगा घोषणाओं पर अमल
सदन चाहे विधानसभा का हो राज्य सभा या लोकसभा का, मन्त्रियों का काम घोषणा करना है, उनका पालन किस स्तर पर हो रहा है, इस बारे में जानने की सुध किसी को भी नहीं है। गरीब रथ, दुरन्तो एक्सप्रेस जैसी रेल गाडियों में सभी श्रेणियों के यात्रियों को बिस्तर (बेड रोल) उलब्ध कराने की ममता बनर्जी की घोषणा नई अवश्य लगती है, किन्तु यह कोई अलग से उपलब्ध कराई गई सुविधा नहीं है। यह तो रेल्वे के संसाधनों पर ही निर्भर करता है कि उसे किस किस रेल में किस श्रेणी में क्या उपलब्ध करवाना है। देखा जाए तो रेल्वे की वाणिज्य नियमावली में बहुत पहले ही यह प्रावधान कर दिया गया था कि रेल में सफर करने वाले यात्रियों को उनकी मांग के अनुरूप शुल्क लेकर बिस्तर उपलब्ध कराया जा सकेगा। दुरन्तो और गरीब रथ में बेड रोल की सुविधा सशुल्क प्रस्तावित है। दरअसल रेल के सीमित संसाधनों के चलते यात्रियों को यह सुविधा सशुल्क भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। हो भी क्यों, रेल मन्त्री को वाहवाही लूटना था, सो इस तरह की घोषणा कर दी, फिर उसका पालन हो रहा है या नहीं, इस पर कान देना उनका फर्ज नहीं होता है शायद।
दिल्ली में भीख मांगना अपराध नहीं!
एक तरफ देश की साख इस साल के अन्त में होने वाले कामन वेल्थ गेम्स पर लगी है। विदेशी आकर देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली की बदहाली न देख सकें इसके लिए करोडों अरबों रूपए व्यय कर दिल्ली को संवारा जा रहा है। दिल्ली में चौक चौराहों पर भीख मांगते अधनंगे लोगों को देखकर विदेशी भारत के असली चेहरे को आसानी से पहचान सकते हैं। दिल्ली के हृदय स्थल कनाट प्लेस पर सूखा नशा (पुडिया के नशे) के आदी हो चुके भिखारियों को पकडने पुलिस ने अनेक बार मुहिम भी छेडी है। लगता है आने वाले समय में दिल्ली में भीख मांगना अपराध नहीं होगा। दिल्ली सरकार भिक्षावृति को अपराध मुक्त बनाने के लिए कानून में परिवर्तन करना चाह रही है। गरीबी एक अपराध नहीं है, और गरीबी के चलते ही लोग भीख मांगते हैं, इस आधार पर दायर एक याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा है कि वह मुम्बई प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट में बदलाव पर विचार कर रही है। तीसरी बार कुर्सी पर बैठ कर शीला दीक्षित ने निश्चित ही एक रिकार्ड बनाया है, और वे अब जो भी करें सो कम ही होगा।
प्रवासी एससी एसटी आरक्षण के हकदार नहीं
देश के सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछडा वर्ग के आरक्षण का लाभ प्रवासियों को नहीं दिया जा सकता है। न्यायालय ने कहा है कि एक राज्य में रहने वाले एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षित वर्ग के अभ्यार्थी दूसरे सूबे में जाकर इसका लाभ नहीं ले सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश एस.बी.सिन्हा और सिरियाक जोसफ की युगल बैंच ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह व्यवस्था दी है। बैंच ने कहा है कि ग्यारह सदस्यीय बैंच ने अल्पसंख्यक समुदाय के बारे में फैसला दिया था, एससी एसटी वर्ग के अभ्यार्थियों द्वारा सर्वोच्च न्यायायल में याचिका दायर की थी, जिसमें दिल्ली प्रशासन में आरक्षित नौकरियों में आरक्षण से लाभांवित होने की बात कही गई थी। इस याचिका को युगल बैंच ने खारिज कर दिया।
यह है आजाद भारत की तस्वीर
ब्रितानियों की परातन्त्रता से आजाद हुए छ: दशक से ज्यादा बीत चुके हैं, भारत के गणतन्त्र की स्थापना को भी साठ साल पूरे हो चुके हैं, पर भारत की वास्तविक तस्वीर से आज भी देश के नीति निर्धारक रूबरू नहीं हैं। देश की राजनैतिक राजधानी दिल्ली से कुछ ही दूर हरियाणा के फरीदाबाद गांव में पीर बाबा की मजार के पास एक आठ वषीZय बच्चा पान गुटखा बेच रहा है, जबकि सरकार ने अठ्ठारह साल से कम उमर के लोगों को पान गुटखा बेचने पर ही पाबन्दी लगाई हुई है। दिल्ली में ही अनेक स्थानों पर एक रूपए में ठण्डा पानी पिलाने वाली मशीन हो या फिर अघोषित मयखानों में गिलास पानी की सुविधा देने वाले हाथ, हर जगह नाबालिकों की खासी तादाद है। इन बच्चों से अगर पूछ ही लिया कि बेटा स्कूल जाते हो तो इनका एक ही उत्तर होता है, स्कूल कैसा होता है, अंकल। यह है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, चाचा जवाहर लाल नेहरू और प्रियदर्शनी इन्दिरा गांधी के सपनों के भारत की तस्वीर।
भाजपा को मिला था पचास लाख का चन्दा
चुनाव में किस दल को कितना चन्दा मिला, यह बात सार्वजनिक करना न करना उस पार्टी का अपना अन्दरूनी मामला हो सकता है, किन्तु अगर जनसेवा के लिए राजनीति करने उतरे जनसेवक ही इस बात को जनता से छिपाएं तो बात कुछ हजम नहीं होती है। आयकर छापों के दौरान उडीसा के एक कारोबारी ने यह स्वीकार किया है कि उसने लोकसभा चुनाव में भाजपा को पचास लाख रूपए का चन्दा दिया था। राजनैतिक दलों को चन्दा देने पर आयकर में छूट का प्रावधान है, इसलिए मोटी रकम काटने वाले व्यवसायी दोहरा लाभ उठाने से नहीं चूकते हैं। उडीसा के एक खनन व्यवसायी के बारे में सूचना के अधिकार के उपरान्त यह तथ्य उभरकर सामने आया है कि उसने भाजपा को पचास लाख रूपए का चन्दा दिल्ली के एक ट्रस्ट के माध्यम से दिया था। मजे की बात यह है कि भाजपा की पंजी में यह रकम उक्त व्यवसायी के नाम पर दर्ज है, किन्तु चन्दा ट्रस्ट के माध्यम से दिया गया था।
पुच्छल तारा
भोपाल से श्वेता तिवारी द्वारा भेजे गए ईमेल के अनुसार बाघ को पाने के दो ही तरीके हैं, पहला तो जंगल जाओ और बाघ को खोजो, जो बहुत ही कठिन और जोखिम का काम है। दूसरा यह कि बिल्ली को पकडो, और भारतीय पुलिस की तरह तब तक पीटो जब तक वह यह स्वीकार न कर ले कि वह बाघ ही है।
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