अचानक उत्तर भारतीयों की याद कैसे आ गई युवराज को!
(लिमटी खरे)
मुम्बई सहित समूचे महाराष्ट्र सूबे में शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे और उनके आतातायी भतीजे एवं महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के सर्वेसर्वा राज ठाकरे सालों से भाषा और क्षेत्रवाद के नाम पर लोगों को बांटने का कुित्सत प्रयास कर रहे हैं, किन्तु देश की सियासी पार्टियों ने मुंह नहीं खोला। अचानक ही कांग्रेस के युवराज और भाजपाध्यक्ष नितिन गडकरी सहित मुरली मनोहर जोशी जैसे साफ छवि के नेताओं ने इस मामले को पकडना आरम्भ कर दिया है। यह काफी हद तक सोचनीय ही है, कि आखिर और अचानक एसा क्या हो गया है कि इन नेताओं को उत्तर भारतीयों की परवाह होने लगी है।
सालों पहले शिवसेना सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे ने मुम्बई और महाराष्ट्र सूबे में मराठी और गैर मराठी लोगों के बीच भेद कर सियासत गर्माई थी, उसके बाद अब उनके भतीजे राज ठाकरे भी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के माध्यम से वही काम कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों में महाराष्ट्र भाषावाद और क्षेत्रवाद के नाम पर जिस आग में झुलसा है, वह निश्चित तौर पर सियासी दलों के लिए शर्मनाक कहा जा सकता है। देश के गृह मन्त्री चुपचाप इस ताण्डव को कैसे देख पा रहे हैं, यह सोचकर आश्चर्य ही होता है, कि किस तरह आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस के सियासतदार आखों पर पट्टी बांधे बैठे हैं। साल दर साल शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना द्वारा भाषाई और क्षेत्रीयता की बिसात पर लोगों की भावनाओं का सरेआम शोषण किया जा रहा है और आजाद भारत के सियासतदार आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे हुए हैं।
हाल ही में मराठी और गैर मराठी मानुष के बीच के भेद पर सियासत तेज होती दिख रही है। इस मामले में पहले कांग्रेस के सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने बाला साहेब ठाकरे को मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले के मूल का होना बताकर सनसनी फैला दी थी। इसके बाद कुछ नरम रूख अपनाकर मुरली मनोहर जोशी ने कह दिया कि मुम्बई सिर्फ मराठियों की है, और जिन्हें वहां रहना हो वे मराठियों की तरह ही रहें। जोशी के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि जोशी से उमरदराज सीनियर सियासतदार जो देश की सबसे बडी पंचायत लोकसभा के अध्यक्ष के आसन पर विराजमान रहे हों वे इस तरह के बयान दें। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मुम्बई सभी की है, और यहां सभी को रहने का अधिकार है। इस पर शिवसेना के उद्व ठाकरे का हत्थे से उखडना आश्चर्यजनक नहीं माना जा सकता है।
भाजपा के सुर में सुर मिलाते हुए चर्चित स्वयंभू योग गुरू बाबा रामदेव ने भी हुंकार भरी और धोती समेटकर इस मामले में अखाडे में छलांग लगा दी। बाबा ने कहा कि मुम्बई सभी की है, यहां किसी की दादा गिरी नहीं चलने दी जाएगी। संघ के पूर्व प्रवक्ता राम माधव ने संघ की लाईन स्पष्ट करते हुए कहा कि भाषा पर भेद करना ठीक है पर विरोध उचित नहीं है। बकौल माधव, ``संघ का मौलिक विचार यही है कि जम्मू काश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा भारत एक है, इसमें रहने वाले नागरिकों में भेदभाव जैसी कोई चीज नहीं है। यदि कोई विभेद पैदा करने का प्रयास करे तो उसका विरोध होना चाहिए।`` माधव को भी लगभग दो दशक के सेना के आतंक को देख रहे हैं, पर अब अचानक उनकी तन्द्रा टूटना स्वाभाविक कतई नहीं माना जा सकता है।
गृह मन्त्री पी.चिदंबरम के अलावा भाजपा के नए निजाम नितिन गडकरी ने भी शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के इस तरह के मराठी और उत्तर भारतीय के भेद को खारिज किया है। बुन्देलखण्ड की एक कहावत ``सूपा तो सूपा, अब चलनी बोले, जिसमें 172 छेद`` को चरितार्थ करते हुए कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने भी इस मामले में पटना से तीर दागा है। बकौल राहुल गांधी,``महाराष्ट्र सभी भारतीयों का है, यह किसी विशेष लोगों की जागीर नहीं है, अगर वहां उत्तर भारतीयों को रोका गया तो वे चुप नहीं बैठेंगे``। कांग्रेस के युवराज को अगर उत्तर भारतीयों की याद आई है तो निश्चित तौर पर इसके गहरे निहितार्थ ही होंगे। देश पर आधी सदी से ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस का यही प्रयास है कि वह किसी भी सूरत में अपने युवराज को प्रधानमन्त्री के तौर पर ताजपोशी करवाएं, अन्यथा आने वाले समय में कांग्रेस की लोकप्रियता के ग्राफ में तेजी से गिरावट दर्ज हो सकती है। राहुल गांधी का इस मामले में दिलचस्पी लेने का साफ मतलब है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों के मन में अब उत्तर भारतियों को लेकर कोई ताना बाना बुना जा रहा है।
शोध का विषय तो यह है कि अचानक और एकसाथ सभी सियासतदारों का उत्तर भारतीयों के प्रति मोह कैसे जागृत हो गया है। इसके पीछे कहीं न कहीं गहरी सोची समझी सियासत छिपी हुई है। लगता है कि बिहार के वासिन्दों की देश भर में पूछ परख कर राजनैतिक दल काई भी मौका हाथ से गंवाना नहीं चाहती है। मौका गंवाया भी क्यों जाए, जब आने वाले समय में बिहार में चुनाव प्रस्तावित हैं। वोटबैंक पक्का करने की जुगत में कौन सा सियासी दल को नहीं होगा। उसूल, सिद्धान्त, उजली राजनैतिक बिसात यह सब बातें सिर्फ भाषणबाजी में ही अच्छी लगतीं हैं, वास्तविकता में तो सभी राजनैतिक दल अवसरवादिता और भटकाव का ही मार्ग अपनाकर सत्ता हासिल करते आए हैं।
दुख का विषय तो यह है कि आजाद भारत में धर्म, जाति, क्षेत्र, भाषा आदि के आधार पर राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है। इसकी महज निन्दा करने से काम नहीं चलेगा, हमें जागना होगा, बेनकाब करना होगा इस तरह के षणयन्त्रकारियों को, जो आदमी से आदमी को बांट रहा है, किसी ने सच ही कहा है -
``मन्दिर, मिस्जद, गुरूद्वारे में, बांट दिया भगवानों को!
धरती बांटी, सागर बांटे, मत बांटों इंसानों का!!``
2 टिप्पणियां:
इनसान खुद को इनसान बना ले फिर उसे कौन बाँट सकता है?
महाराष्ट्र में कॉंग्रेस को हरा दें, युवराज को मराठी मानुस याद आने लगेंगे.
baat sahi kahi hai ........sab rajniti ka chakkar hai apne apne vote bank ka aur janta ko ullu banane ka..........isse jyada kuch nhi hai.
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