ठाकरे के दरबार में पंवार!
खिलाडियों की सुरखा का जिम्मा किसका सरकार का या बाला साहेब का!
सियासतदार भूल जाते हैं अपने ही कहे वक्तव्यों को
(लिमटी खरे)
सियासतदार भूल जाते हैं अपने ही कहे वक्तव्यों को
(लिमटी खरे)
केन्द्रीय कृषि मन्त्री शरद पंवार ने रविवार को शिवसेना के सुप्रीमो बाला साहेब ठाकरे के आवास ``मातोश्री`` की चौखट चूमकर साबित कर दिया है कि देश मेें सरकार नाम की चीज ही नहीं बची है। पंवार ने यह सियासी दांव तब खेला जबकि कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी द्वारा शिवसेना की गीदड भभकियों को दरकिनार कर महाराष्ट्र में मुम्बई का दौरा किया। इसके पहले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने देशद्रोह जैसे वक्तव्य भी दिए हैं, पर उनका बाल भी बांका करने में असफल दिख रही है केन्द्र और सूबे की सरकार।
देखा जाए तो पंवार ने कहा है कि उनकी बाला साहेब से मुलाकात का सियासी मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए, वे तो महज आईपीएल मैच के आयोजनों के मद्देनज़र ठाकरे से भेंट करने गए थे। गौरतलब है कि ठाकरे ने आईपीएल में आस्ट्रेलिया के खिलाडियों को नहीं खेलने देने की बात कही थी। हो सकता है आस्ट्रेलिया में हो रहे भारतीयों पर हमले से बाला साहेब व्यथित हो गए हों और उन्होंने यह फरमान जारी कर दिया हो।
शरद पंवार यह भूल जाते हैं कि सुरक्षा देने का काम केन्द्र या राज्य सरकार का है, न कि बाला साहेब ठाकरे का। वैसे भी एक सप्ताह पहले देश के गृह मन्त्री पलनिअप्पन चिदंबरम ने साफ कहा था कि केन्द्र सरकार पूरे देश में बाहर से आने वाले क्रिकेटरों को सुरक्षा देने के लिए तैयार है। ठाकरे ब्रदर्स द्वारा मुम्बई और समूचे महाराष्ट्र में लंबे समय से आन्तक बरपाया जा रहा है, और केन्द्र तथा राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे ही बैठी है। केन्द्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी कांग्रेस की सहयोगी है, इधर राज्य में दोनों ही की न केवल साझा सरकार है, वरन् गृह मन्त्रालय जैसा अहम विभाग राकांपा के पास ही है।
पंवार ने जो दिन चुना वह ही गलत कहा जा सकता है। पंवार ने राहुल गांधी की मुम्बई यात्रा के एन दूसरे दिन ही मातोश्री की देहरी चूमी है। ठाकरे परिवार की धमकियों की परवाह न करते हुए राहुल गांधी ने जिस बहादुरी का परिचय दिया है, उसकी तारीफ की जानी चाहिए। राहुल गांधी ने उस मिथक को तोड दिया है, जिसके अनुसार मुम्बई में ठाकरे बंधुओं की अनुमति के बिना पत्ता भी नहीं हिलना बताया जाता है। मुम्बई ठाकरे परिवार की जायदाद नहीं है। पहले भी मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री और कांग्रेस महासचिव कह चुके हैं कि बाला साहेब ठाकरे का परिवार मुम्बईकर नहीं वरन् मघ्य प्रदेश के बालाघाट जिले का है।
हो सकता है कि मुम्बई यात्रा के बाद राहुल गांधी को जो प्रसिद्धि मिल रही है, उसे कम करने की गरज से शरद पंवार ने बाला साहेब के चरणों में गिरकर क्रिकेट के सफल आयोजन की भीख मांगने का स्वांग रचा हो। पंवार यह भूल गए कि ठाकरे की इस तरह की चरण वन्दना से राज्य सरकार के मनोबल पर क्या असर पडेगा। राज्य सरकार पहले ही ठाकरे ब्रदर्स की आताताई हरकतों से परेशान है, फिर इस तरह के कृत्यों से रहा सहा मनोबल टूटना स्वाभाविक ही है।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि देश में बढती मंहगाई के लिए कांग्रेस द्वारा पंवार को आडे हाथों लिया जाना उन्हें रास नहीं आया है। साम, दाम, दण्ड भेद की राजनीति में माहिर पंवार का राजनैतिक इतिहास बहुत ज्यादा साफ सुथरा नहीं है। कल तक कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को गला फाडकर चिल्लाने वाले राकांपा के सुप्रीमो पंवार ने सत्ता की मलाई खाने के लिए न केवल केन्द्र बल्कि राज्य में भी उन्हीं सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस से हाथ मिला लिया।
वैसे राहुल गांधी के मुम्बई दौरे क बाद एक बात तो साफ हो गई है कि अगर सूबे की सरकार चाहे तो वह महाराष्ट्र से ठाकरे ब्रदर्स की हुडदंग को समाप्त कर सकती है। जब सेना की धमकी के बाद भी राहुल गांधी बेखौफ होकर मुम्बई में घूम सकते हैं तब फिर जब ठाकरे ब्रदर्स के इशारे पर उत्तर भारतीयों पर यहां जुल्म ढाए जाते हैं, तब सरकार सेना के सामने मजबूर क्यों हो जाती है, यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है।
पंवार की ठाकरे के दरबार में हाजिरी पर कांग्रेस भी बंटी ही नज़र आ रही है। एक तरफ प्रदेश इकाई द्वारा इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी जाती है, तो दूसरी ओर केन्द्रीय इकाई के प्रवक्ता द्वारा इसे सिर्फ क्रिकेट तक सीमित रखने की बात की जा रही है। उधर शिवसेना और भाजपा के हनीमून समाप्त होने के बाद उपजे शून्य में पंवार कुछ संभावनाएं अवश्य ही तलाश रहे होंगे।
राजनीति की परिभाषा ही यही है कि जिस नीति से राज हासिल हो वही राजनीति है। इस पर अमल करते हुए शरद पंवार द्वारा सोचे समझे कदम उठाए जा रहे हैं, यही कारण है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उछाल कर पंवार ने कांग्रेस का साथ छोडकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी। इसके बाद सोनिया की कांग्रेस से हाथ मिलाने में उन्होंने एक मिनिट की भी देरी नहीं लगाई।
आज महाराष्ट्र में भले ही कांग्रेस की सीटें राकांपा से कहीं ज्यादा हों पर सूबे में दबदबा राकांपा का ही है। इन परिस्थितियों में पंवार द्वारा बाला साहेब ठाकरे की शरण में जाकर नए सियासी समीकरणों का ताना बाना बुनने का प्रयास किया जा रहा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमारा कहना महज इतना ही है कि अगर विदेशों मेें पले बढे और शिक्षित हुए राहुल गांधी उत्तर भारतीय होकर मुम्बई की लोकल रेल में सफर कर सकते हैं तो फिर दूसरे उत्तर भारतीयों पर अत्याचार कैसे हो जाता है। इसके अलावा शरद पंवार सूबे के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं, वे सूबे की नब्ज अच्छे से पहचानते हैं, ठाकरे परिवार का उदय भी उन्हीं के सामने हुआ है, पंवार सियासत करें खूब करेें, पर कम से कम मुम्बई और महाराष्ट्र को प्रान्तवाद, भाषा वाद और व्यक्तिवाद की आग में झुलसने तो बचाएं।
देखा जाए तो पंवार ने कहा है कि उनकी बाला साहेब से मुलाकात का सियासी मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए, वे तो महज आईपीएल मैच के आयोजनों के मद्देनज़र ठाकरे से भेंट करने गए थे। गौरतलब है कि ठाकरे ने आईपीएल में आस्ट्रेलिया के खिलाडियों को नहीं खेलने देने की बात कही थी। हो सकता है आस्ट्रेलिया में हो रहे भारतीयों पर हमले से बाला साहेब व्यथित हो गए हों और उन्होंने यह फरमान जारी कर दिया हो।
शरद पंवार यह भूल जाते हैं कि सुरक्षा देने का काम केन्द्र या राज्य सरकार का है, न कि बाला साहेब ठाकरे का। वैसे भी एक सप्ताह पहले देश के गृह मन्त्री पलनिअप्पन चिदंबरम ने साफ कहा था कि केन्द्र सरकार पूरे देश में बाहर से आने वाले क्रिकेटरों को सुरक्षा देने के लिए तैयार है। ठाकरे ब्रदर्स द्वारा मुम्बई और समूचे महाराष्ट्र में लंबे समय से आन्तक बरपाया जा रहा है, और केन्द्र तथा राज्य सरकार हाथ पर हाथ धरे ही बैठी है। केन्द्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी कांग्रेस की सहयोगी है, इधर राज्य में दोनों ही की न केवल साझा सरकार है, वरन् गृह मन्त्रालय जैसा अहम विभाग राकांपा के पास ही है।
पंवार ने जो दिन चुना वह ही गलत कहा जा सकता है। पंवार ने राहुल गांधी की मुम्बई यात्रा के एन दूसरे दिन ही मातोश्री की देहरी चूमी है। ठाकरे परिवार की धमकियों की परवाह न करते हुए राहुल गांधी ने जिस बहादुरी का परिचय दिया है, उसकी तारीफ की जानी चाहिए। राहुल गांधी ने उस मिथक को तोड दिया है, जिसके अनुसार मुम्बई में ठाकरे बंधुओं की अनुमति के बिना पत्ता भी नहीं हिलना बताया जाता है। मुम्बई ठाकरे परिवार की जायदाद नहीं है। पहले भी मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री और कांग्रेस महासचिव कह चुके हैं कि बाला साहेब ठाकरे का परिवार मुम्बईकर नहीं वरन् मघ्य प्रदेश के बालाघाट जिले का है।
हो सकता है कि मुम्बई यात्रा के बाद राहुल गांधी को जो प्रसिद्धि मिल रही है, उसे कम करने की गरज से शरद पंवार ने बाला साहेब के चरणों में गिरकर क्रिकेट के सफल आयोजन की भीख मांगने का स्वांग रचा हो। पंवार यह भूल गए कि ठाकरे की इस तरह की चरण वन्दना से राज्य सरकार के मनोबल पर क्या असर पडेगा। राज्य सरकार पहले ही ठाकरे ब्रदर्स की आताताई हरकतों से परेशान है, फिर इस तरह के कृत्यों से रहा सहा मनोबल टूटना स्वाभाविक ही है।
कहा तो यहां तक भी जा रहा है कि देश में बढती मंहगाई के लिए कांग्रेस द्वारा पंवार को आडे हाथों लिया जाना उन्हें रास नहीं आया है। साम, दाम, दण्ड भेद की राजनीति में माहिर पंवार का राजनैतिक इतिहास बहुत ज्यादा साफ सुथरा नहीं है। कल तक कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को गला फाडकर चिल्लाने वाले राकांपा के सुप्रीमो पंवार ने सत्ता की मलाई खाने के लिए न केवल केन्द्र बल्कि राज्य में भी उन्हीं सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस से हाथ मिला लिया।
वैसे राहुल गांधी के मुम्बई दौरे क बाद एक बात तो साफ हो गई है कि अगर सूबे की सरकार चाहे तो वह महाराष्ट्र से ठाकरे ब्रदर्स की हुडदंग को समाप्त कर सकती है। जब सेना की धमकी के बाद भी राहुल गांधी बेखौफ होकर मुम्बई में घूम सकते हैं तब फिर जब ठाकरे ब्रदर्स के इशारे पर उत्तर भारतीयों पर यहां जुल्म ढाए जाते हैं, तब सरकार सेना के सामने मजबूर क्यों हो जाती है, यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही है।
पंवार की ठाकरे के दरबार में हाजिरी पर कांग्रेस भी बंटी ही नज़र आ रही है। एक तरफ प्रदेश इकाई द्वारा इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी जाती है, तो दूसरी ओर केन्द्रीय इकाई के प्रवक्ता द्वारा इसे सिर्फ क्रिकेट तक सीमित रखने की बात की जा रही है। उधर शिवसेना और भाजपा के हनीमून समाप्त होने के बाद उपजे शून्य में पंवार कुछ संभावनाएं अवश्य ही तलाश रहे होंगे।
राजनीति की परिभाषा ही यही है कि जिस नीति से राज हासिल हो वही राजनीति है। इस पर अमल करते हुए शरद पंवार द्वारा सोचे समझे कदम उठाए जा रहे हैं, यही कारण है कि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उछाल कर पंवार ने कांग्रेस का साथ छोडकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी। इसके बाद सोनिया की कांग्रेस से हाथ मिलाने में उन्होंने एक मिनिट की भी देरी नहीं लगाई।
आज महाराष्ट्र में भले ही कांग्रेस की सीटें राकांपा से कहीं ज्यादा हों पर सूबे में दबदबा राकांपा का ही है। इन परिस्थितियों में पंवार द्वारा बाला साहेब ठाकरे की शरण में जाकर नए सियासी समीकरणों का ताना बाना बुनने का प्रयास किया जा रहा हो तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हमारा कहना महज इतना ही है कि अगर विदेशों मेें पले बढे और शिक्षित हुए राहुल गांधी उत्तर भारतीय होकर मुम्बई की लोकल रेल में सफर कर सकते हैं तो फिर दूसरे उत्तर भारतीयों पर अत्याचार कैसे हो जाता है। इसके अलावा शरद पंवार सूबे के मुख्यमन्त्री रह चुके हैं, वे सूबे की नब्ज अच्छे से पहचानते हैं, ठाकरे परिवार का उदय भी उन्हीं के सामने हुआ है, पंवार सियासत करें खूब करेें, पर कम से कम मुम्बई और महाराष्ट्र को प्रान्तवाद, भाषा वाद और व्यक्तिवाद की आग में झुलसने तो बचाएं।
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