कांग्रेस का भगवा संस्करण बनकर रह गई है भाजपा
नारे लगाने में उत्साद हैं भाजपाई
ये है भाजपा की चाल, यह चरित्र और यह रहा चेहरा
(लिमटी खरे)
भारतीय जनता पार्टी के नए निजाम नितिन गडकरी के लिए मध्य प्रदेश की व्यवसायिक राजधानी माने जाने वाले इन्दौर शहर का उपनगरीय इलाका सज धज कर तैयार है। भाजपा के पिछले एक दशक के कार्यकाल को देखकर लगने लगा है मानो यह कांग्रेस का भगवा संस्करण ही बनकर रह गई है। वर्तमान समय में सत्ता प्राप्ति के लिए हर स्तर पर जाने आमदा भाजपा द्वारा अपने सिद्धान्तों के साथ अनेक समझौते किए हैं और यह मुख्य धारा से भटकती दिख रही है।
पूर्व में भाजपा द्वारा सबसे अलग दिखने का दावा किया जाता रहा है। आज भाजपा सबसे अलग दिखने की बजाए अन्य राजनैतिक दलों की पिछलग्गू ही दिखाई पड रही है। भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों की झण्डाबरदार भाजपा के जितने निजाम बदले उन्होंने हर बार एक नया स्लोगन दिया पर उस बात पर कायम नहीं रह सकी। कभी सौगंध राम की खाते हैं, हम मन्दिर वहीं बनाएंगे का गगन भेदी नारा लगाने वाली भाजपा ने जब अयोध्या में राम मन्दिर बनाने की बात आई तो अपने हाथ खीच लिए। मजे की बात तो यह है कि जब केन्द्र में भाजपानीत एनडीए और उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार थी, तब भाजपा ने यह कहकर मामले को ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया था कि मन्दिर मुद्दा एनडीए के मेनीफेस्टो का हिस्सा नहीं है।
फिर अत्याचार न भ्रष्टाचार, हम देंगे अच्छी सरकार, का नारा बहुत चला। इस नारे को जब अमली जामा पहनाने की बारी आई तो भाजपा टांय टांय फिस्स ही हो गई। भाजपा का समूचा कार्यकाल चाहे केन्द्र में रहा हो या सूबों में सदा ही भ्रष्टाचार के लिए चर्चित रहा है। ताबूत, शक्कर, दूरसंचार, यूटीआई जैसे बडे घोटालों के दाग अभी भी भाजपा के धवल आंचल से धुल नहीं सके हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके शिबू सोरेन से भी हाथ मिलाने में भाजपा ने कोताही नहीं की।
जिस एनरान को अरब सागर में डुबो देने की बात भाजपा द्वारा की जा रही थी, उसी एनरान के साथ भाजपा ने समझौता किया। भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार इस कदर सडांध मार रहा है कि कहा नहीं जा सकता, बावजूद इसके भाजपा के आला नेता खामोशी अिख्तयार किए हुए हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में नौकरशाहों ने अत्त मचा रखी है। सरकारी योजनओं में सरेआम डाका डाला जा रहा है। जनता हलाकान है पर भाजपा के आला नेता नीरो के मानिन्द चैन की बंसी बजा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में अरविन्द जोशी और टीनू जोशी तो छत्तीसगढ में बाबू लाल अग्रवाल के लाकर करोडों रूपए उगल रहे हैं। भाजपा के जनसेवक माल अंटी करने में लगे हुए हैं, पर शीर्ष नेतृत्व इसी जुगाड में है कि किस तरह केन्द्र में सत्ता में आया जाए और 7 रेसकोर्स (प्रधानमन्त्री का सरकारी आवास) पर कब्जा जमाया जाए। अगर देखा जाए तो आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस की तरह ही अब भाजपा ने भी आम आदमी की चिन्ता छोड दी है।
चुनाव आते ही अल्पसंख्यकों को रिझाने की गरज से भाजपा अपनी पार्टी लाईन से भटकती ही दिखाई देती है। जब भी कोई राजनैतिक दल के आला नेता रमजान के दौरान रोजा अफ्तार पर जाते हैं, तो भाजपाई चीख चीख कर कहते हैं कि यह मुसलमानों के तुष्टीकरण की नीति है, पर जब अफ्तार की दावत अटल बिहारी बाजपेयी या एल.के.आडवाणी के घर पर होती है तब इसे क्या कहा जाएगा।
विडम्बना ही कही जाएगी कि भाजपा द्वारा हमेशा जिन मुद्दों को आधार बनाकर कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दलों की आलोचना की जाती रही है, आज उन्हीं मार्गों पर भाजपा ने कदम बढा दिए है। कितने आश्चर्य की बात है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत अफसरान को उपकृत करने के लिए भाजपाई मुख्यमन्त्रियों द्वारा प्रोटोकाल तक को ताक पर रख दिया जाता है। मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी विकास मन्त्री अनूप मिश्रा राज्य मन्त्री थे, उस समय सेवानिवृत मुख्य सचिव आदित्य विजय सिंह को केबनेट का दर्जा दे दिया गया था। इतना ही नहीं वर्तमान में उर्जा मन्त्री राजेन्द्र शुक्ला हैं, ये स्वतन्त्र प्रभार वाले राज्य मन्त्री हैं, तो सेवानिवृत्त मुख्य सचिव राकेश साहनी को उनका सलाहकार बनाया गया है। यहां एक बार फिर विसंगति सामने आ रही है। मन्त्री राज्य मन्त्री स्तर के तो उनके सलाहकार राकेश साहनी को दिया गया है केबनेट मन्त्री का दर्जा। अर्थात राज्य मन्त्री के अधीन केबनेट मन्त्री काम करेंगे।
रही बात अत्याचार की तो गुजरात में नरेन्द्र मोदी के गोधरा काण्ड से भाजपा की रीति नीति उजागर होती है। वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश में पिछली बार जब भाजपा सरकार काबिज हुई थी, तब सिवनी जिले के भोमाटोला ग्राम में एक ही दलित परिवार की महिलाओं के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना लोगों के दिमाग से विस्तृत नहीं हुई होगी, कि किस कदर उच्च वर्ग के परिवारों द्वारा सरेआम गांव वालों के सामने इन महिलाओं के साथ बलात्कार किया था।
अब जबकि 17 फरवरी से मध्य प्रदेश के इन्दौर में भाजपा की तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यपरिषद की बैठक का आयोजन किया जा रहा है, तब मीडिया में तरह तरह के कायस लगाए जा रहे हैं कि भाजपा के नए निजाम अपनी किन किन रणनीति को अमली जामा पहनाने का प्रयास करेंगे। हो सकता है नितिन गडकरी के दिलो दिमाग में कुछ नया करने का अरमान हो, किन्तु अब तक के निजामों ने कुछ नया नहीं किया है। इस लिहाज से यही कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी और कुछ नहीं वरन् कांग्रेस का भगवा संस्करण ही बनकर रह गई है।
पूर्व में भाजपा द्वारा सबसे अलग दिखने का दावा किया जाता रहा है। आज भाजपा सबसे अलग दिखने की बजाए अन्य राजनैतिक दलों की पिछलग्गू ही दिखाई पड रही है। भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों की झण्डाबरदार भाजपा के जितने निजाम बदले उन्होंने हर बार एक नया स्लोगन दिया पर उस बात पर कायम नहीं रह सकी। कभी सौगंध राम की खाते हैं, हम मन्दिर वहीं बनाएंगे का गगन भेदी नारा लगाने वाली भाजपा ने जब अयोध्या में राम मन्दिर बनाने की बात आई तो अपने हाथ खीच लिए। मजे की बात तो यह है कि जब केन्द्र में भाजपानीत एनडीए और उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार थी, तब भाजपा ने यह कहकर मामले को ठण्डे बस्ते के हवाले कर दिया था कि मन्दिर मुद्दा एनडीए के मेनीफेस्टो का हिस्सा नहीं है।
फिर अत्याचार न भ्रष्टाचार, हम देंगे अच्छी सरकार, का नारा बहुत चला। इस नारे को जब अमली जामा पहनाने की बारी आई तो भाजपा टांय टांय फिस्स ही हो गई। भाजपा का समूचा कार्यकाल चाहे केन्द्र में रहा हो या सूबों में सदा ही भ्रष्टाचार के लिए चर्चित रहा है। ताबूत, शक्कर, दूरसंचार, यूटीआई जैसे बडे घोटालों के दाग अभी भी भाजपा के धवल आंचल से धुल नहीं सके हैं। इतना ही नहीं भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके शिबू सोरेन से भी हाथ मिलाने में भाजपा ने कोताही नहीं की।
जिस एनरान को अरब सागर में डुबो देने की बात भाजपा द्वारा की जा रही थी, उसी एनरान के साथ भाजपा ने समझौता किया। भाजपा शासित राज्यों में भ्रष्टाचार इस कदर सडांध मार रहा है कि कहा नहीं जा सकता, बावजूद इसके भाजपा के आला नेता खामोशी अिख्तयार किए हुए हैं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ में नौकरशाहों ने अत्त मचा रखी है। सरकारी योजनओं में सरेआम डाका डाला जा रहा है। जनता हलाकान है पर भाजपा के आला नेता नीरो के मानिन्द चैन की बंसी बजा रहे हैं।
मध्य प्रदेश में अरविन्द जोशी और टीनू जोशी तो छत्तीसगढ में बाबू लाल अग्रवाल के लाकर करोडों रूपए उगल रहे हैं। भाजपा के जनसेवक माल अंटी करने में लगे हुए हैं, पर शीर्ष नेतृत्व इसी जुगाड में है कि किस तरह केन्द्र में सत्ता में आया जाए और 7 रेसकोर्स (प्रधानमन्त्री का सरकारी आवास) पर कब्जा जमाया जाए। अगर देखा जाए तो आधी सदी से ज्यादा देश पर राज करने वाली कांग्रेस की तरह ही अब भाजपा ने भी आम आदमी की चिन्ता छोड दी है।
चुनाव आते ही अल्पसंख्यकों को रिझाने की गरज से भाजपा अपनी पार्टी लाईन से भटकती ही दिखाई देती है। जब भी कोई राजनैतिक दल के आला नेता रमजान के दौरान रोजा अफ्तार पर जाते हैं, तो भाजपाई चीख चीख कर कहते हैं कि यह मुसलमानों के तुष्टीकरण की नीति है, पर जब अफ्तार की दावत अटल बिहारी बाजपेयी या एल.के.आडवाणी के घर पर होती है तब इसे क्या कहा जाएगा।
विडम्बना ही कही जाएगी कि भाजपा द्वारा हमेशा जिन मुद्दों को आधार बनाकर कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दलों की आलोचना की जाती रही है, आज उन्हीं मार्गों पर भाजपा ने कदम बढा दिए है। कितने आश्चर्य की बात है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत अफसरान को उपकृत करने के लिए भाजपाई मुख्यमन्त्रियों द्वारा प्रोटोकाल तक को ताक पर रख दिया जाता है। मध्य प्रदेश के नर्मदा घाटी विकास मन्त्री अनूप मिश्रा राज्य मन्त्री थे, उस समय सेवानिवृत मुख्य सचिव आदित्य विजय सिंह को केबनेट का दर्जा दे दिया गया था। इतना ही नहीं वर्तमान में उर्जा मन्त्री राजेन्द्र शुक्ला हैं, ये स्वतन्त्र प्रभार वाले राज्य मन्त्री हैं, तो सेवानिवृत्त मुख्य सचिव राकेश साहनी को उनका सलाहकार बनाया गया है। यहां एक बार फिर विसंगति सामने आ रही है। मन्त्री राज्य मन्त्री स्तर के तो उनके सलाहकार राकेश साहनी को दिया गया है केबनेट मन्त्री का दर्जा। अर्थात राज्य मन्त्री के अधीन केबनेट मन्त्री काम करेंगे।
रही बात अत्याचार की तो गुजरात में नरेन्द्र मोदी के गोधरा काण्ड से भाजपा की रीति नीति उजागर होती है। वहीं दूसरी ओर मध्य प्रदेश में पिछली बार जब भाजपा सरकार काबिज हुई थी, तब सिवनी जिले के भोमाटोला ग्राम में एक ही दलित परिवार की महिलाओं के साथ हुए सामूहिक बलात्कार की घटना लोगों के दिमाग से विस्तृत नहीं हुई होगी, कि किस कदर उच्च वर्ग के परिवारों द्वारा सरेआम गांव वालों के सामने इन महिलाओं के साथ बलात्कार किया था।
अब जबकि 17 फरवरी से मध्य प्रदेश के इन्दौर में भाजपा की तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यपरिषद की बैठक का आयोजन किया जा रहा है, तब मीडिया में तरह तरह के कायस लगाए जा रहे हैं कि भाजपा के नए निजाम अपनी किन किन रणनीति को अमली जामा पहनाने का प्रयास करेंगे। हो सकता है नितिन गडकरी के दिलो दिमाग में कुछ नया करने का अरमान हो, किन्तु अब तक के निजामों ने कुछ नया नहीं किया है। इस लिहाज से यही कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी और कुछ नहीं वरन् कांग्रेस का भगवा संस्करण ही बनकर रह गई है।
2 टिप्पणियां:
behatreen vishleshan hai bjp ki kathni aur karni men antar dikhai diya
sirf ek hi problem hai bjp ki ------ki wo kabhi na to dhang se ekjut ho saki kyunki aaj sheersh neta ke abhav mein bhatak rahi hai aur jo hain unka vyaktitva hi itna mahaan nhi hai ki janta us par vishwas kar sake.........pahle ki aur abki bjp mein jameen aasman ka antar aa chuka hai .........aaj koi bhi neta aisa nhi hai is party mein jo party ko apne kandhon par utha sake aur party ko ekjut kar sake ........sath hi vipaksh ka dayitva bhi to ab dhang se nahi nibha pa rahi agar wo bhi dhang se nibhaya hota to iska naksha doosra hota bechari janta bhi kya kare jab koi bhi party dhang ki nazar na aaye to use wapas mudkar phir usi ore rukh karna padta hai jahan chahkar bhi nhi jana chahti .
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