क्यों पाला जा रहा है कसाब को!!
आतंकियों में क्या सन्देश देना चाह रही है भारत सरकार
जनता आतंकवाद से आहत, आतंकवादियों को सरकार दे रही मलाई पुडी
कसाब पर खर्च हो चुके हैं करोडों रूपए
(लिमटी खरे)
आतंकियों में क्या सन्देश देना चाह रही है भारत सरकार
जनता आतंकवाद से आहत, आतंकवादियों को सरकार दे रही मलाई पुडी
कसाब पर खर्च हो चुके हैं करोडों रूपए
(लिमटी खरे)
देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर अब तक के सबसे बडे आतंकी हमले के इकलौते जिन्दा आतंकी अजमल कसाब को भारत सरकार सर माथे पर क्यों बिठाए हुए है, यह बात आज तक समझ में नहीं आई है। लगभग पांच सौ दिन बीतने के बाद भी उससे भारत सरकार कुछ भी नहीं उगला पाई है, और न ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ही इसके जवाबदार पाकिस्तान के खिलाफ ही कोई ठोस कार्ययोजना बना सकी है। मुम्बई की अण्डा जेल में कसाब आज देश का सबसे अधिक सुरक्षित व्यक्ति कहा जा सकता है। सच है कि अगर जनता के पैसे से भारत गणराज्य की सरकार द्वारा मुम्बई हमले के ज़िन्दा आरोपी कसाब को पाला जा रहा है तो यह देश के लिए सबसे बडे दुर्भाग्य की बात मानी जा सकती है।
गौरतलब होगा कि पूर्व में दुनिया के चौधरी कहे जाने वाले अमेरिका के तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति जार्ज बुश ने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले (9/11) के आतंकियों को ``वॉटरबोर्डिंग`` जैसी अमानवीय यातना दी थी। यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस तरह की यातना समूची दुनिया में प्रतिबंधित है। वॉटर बोर्डिंग जैसी थर्ड डिग्री से भी बुरी यातना में आरोपी को निर्वस्त्र कर उसका चेहरा कपडों से ढक दिया जाता है, और फिर उसके मुंह पर पानी की धार इतनी तेज मारी जाती है कि उसे डूबने का अहसास होने लगता है। इससे अभियुक्ति की जान भी जा सकती है। आरोपी जैसे ही अपने आप को मौत के करीब पाता है, वह टूट जाता है, और सच्चाई का बखान आरम्भ कर देता है।
अमेरिका ने 9/11 के बाद अपने देश में सुरक्षा तन्त्र की समीक्षा की और विदेशियों के आने के मसले में वीजा नियमों को बहुत ही कठोर कर दिया। आज किसी भी देश का नागरिक जब अमेरिका की सैर पर जाता है तो उसे कडे नियम कायदों के अनेक दौर से होकर गुजरना पडता है। अमेरिका को इस बात की चिन्ता नहीं है कि उसकी सरजमीं पर इन कडे नियमों के कारण कौन आता है और कौन आने से कतराता है। अमेरिका के लिए उसके नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है। इससे उलट हिन्दुस्तान में ``अतिथि देवो भव`` की परंपरा के निर्वहन में नियम कायदों में छूट दिए जाने के अनेक मामले प्रकाश में आए हैं। यहां तक कि सार्वजनिक स्थानों, परिवहन के साधनों आदि में धूम्रपान प्रतिबंधित है, पर कोई भी गोरी या काली चमडी वाले को भारत गणराज्य में यह छूट है कि वह जहां चाहे वहां अपनी बीडी सिगरेट सुलगा सकता है। भारत सरकार द्वारा अपने ही नागरिकों के साथ इस तरह का सौतेला व्यवहार समझ से ही परे कहा जा सकता है।
हो सकता है भारत सरकार को यह भय हो कि नियमों के कडे करने से पर्यटकों की संख्या में कमी हो जाएगी। सीधी सी बात है जिसे भारत के इतिहास, यहां की पुरातात्तविक वस्तुओं, परंपराओं में जिज्ञासा होगी वह इन कडे नियमों को पार करके भी भारत आने का जतन करेगा। भारत के नागरिकों की सुरक्षा की कीमत पर पर्यटक अगर आते हैं तो यह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है। मुम्बई हमले के उपरान्त कुछ दिन आतंकी शान्त रहे फिर उनके हौसले बुलन्दी की ओर दिखाई दे रहे हैं। भारत के लचर कानून के चलते आतंकियों के लिए हिन्दुस्तान मुफीद जगह होती जा रही है, जहां वे अपने नापाक इरादों को आसानी से परवान चढा सकते हैं।
जहां तक अब तक हुई आतंकी घटनाओं का सवाल है, तो इतिहास गवाह है कि भारत सरकार द्वारा अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए सदा ही पडोसी देशों को कोसकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री की है। अब तक आतंकियों ने देश के न जाने कितने सपूतों को असमय ही काल के गाल में समाया है, पर भारत सरकार हाथ पर हाथ रखे ही बैठी रही। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश में अब तक की नपुंसक सरकारों द्वारा भारत गणराज्य के नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। अपने आप को उदार कहकर भारत सरकार अपनी पींठ खुद अवश्य ही थपथपा सकती है, पर इस तथ्य को वह भी जानती है कि कायर और और नपुंसक भारत सरकार उदारता का चोला पहनने का स्वांग कर रही है।
विडम्बना देखिए कि अनेक लोगों को मौत के घाट उतारने और भारत सरकार एवं निजी क्षेत्र की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आतंकियों में से ज़िन्दा पकडे कसाब को पाला जा रहा है। उसकी सुरक्षा में सरकार कोई कोताही नहीं बरत रही है। यह सब कुछ जनता के पैसे से ही हो रहा है। मंहगाई और कर्ज से लदी फदी भारत की जनता भी चुपचाप हाथ बांधे इस तमाशे को देखने पर मजबूर है। हम महज इतना ही कहना चाहते हैं कि देश के बेटों को शहीद करने वाले इस कसाब को भारत सरकार को पालना है तो खूब पाले पर उसकी सुरक्षा और खान पान में खर्च होने वाले पैसे की वसूली जनसेवकों के मोटे वेतन से ही वसूले जाएं। देश की जनता अखिर इस भोगमान को क्यों भोगे। जिस भी सूबे में इस तरह की घटना हो तब पीडितों को या उनके परिजनों को दी जाने वाली सहायता राशि भी उसी राज्य के सांसद, विधायक, मन्त्री और मुख्यमन्त्री से वसूलना होगा, तभी जनसेवकों को समझ में आएगी और वे सरकारी सिस्टम पर दवाब बना पाएंगे।
यक्ष प्रश्न तो यह है कि कसाब को लगभग पांच सौ दिन तक इस तरह ज़िन्दा रखकर भारत गणराज्य द्वारा आतंकियों को क्या सन्देश दिया जा रहा है, यही न कि अगर वे मौके पर मारे नहीं गए तो उनकी सुरक्षा में भारत सरकार कोई कोर कसर नहीं रख छोडेगी। भारत सरकार द्वारा अगर कसाब को ज़िन्दा रखकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कोई तीर मारा होता तो बात समझ में आती। सारे सबूतों के बाद भी पाकिस्तान द्वारा भारत के तर्कों को बहुत हल्के में लिया जा रहा है। भारत की लचर कानून व्यवस्था में पेशी पर पेशी मिलती जा रही है, और कसाब मस्त हलुआ पुरी खाकर मुटा रहा है। किसी अन्य देश में अगर यह हुआ होता तो अब तक कसाब को कब का चौराहे पर लटका दिया गया होता, जिससे आतंकियों के हौसलोें में काफी हद तक कमी आती,, पर क्या करें हम नपुंसक, कायर, नाकारा हैं जो उदारता का मौखटा लगाकर अपने ही आप को धोखा देने का प्रयास कर रहे हैं।
गौरतलब होगा कि पूर्व में दुनिया के चौधरी कहे जाने वाले अमेरिका के तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति जार्ज बुश ने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले (9/11) के आतंकियों को ``वॉटरबोर्डिंग`` जैसी अमानवीय यातना दी थी। यहां उल्लेखनीय तथ्य यह है कि इस तरह की यातना समूची दुनिया में प्रतिबंधित है। वॉटर बोर्डिंग जैसी थर्ड डिग्री से भी बुरी यातना में आरोपी को निर्वस्त्र कर उसका चेहरा कपडों से ढक दिया जाता है, और फिर उसके मुंह पर पानी की धार इतनी तेज मारी जाती है कि उसे डूबने का अहसास होने लगता है। इससे अभियुक्ति की जान भी जा सकती है। आरोपी जैसे ही अपने आप को मौत के करीब पाता है, वह टूट जाता है, और सच्चाई का बखान आरम्भ कर देता है।
अमेरिका ने 9/11 के बाद अपने देश में सुरक्षा तन्त्र की समीक्षा की और विदेशियों के आने के मसले में वीजा नियमों को बहुत ही कठोर कर दिया। आज किसी भी देश का नागरिक जब अमेरिका की सैर पर जाता है तो उसे कडे नियम कायदों के अनेक दौर से होकर गुजरना पडता है। अमेरिका को इस बात की चिन्ता नहीं है कि उसकी सरजमीं पर इन कडे नियमों के कारण कौन आता है और कौन आने से कतराता है। अमेरिका के लिए उसके नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है। इससे उलट हिन्दुस्तान में ``अतिथि देवो भव`` की परंपरा के निर्वहन में नियम कायदों में छूट दिए जाने के अनेक मामले प्रकाश में आए हैं। यहां तक कि सार्वजनिक स्थानों, परिवहन के साधनों आदि में धूम्रपान प्रतिबंधित है, पर कोई भी गोरी या काली चमडी वाले को भारत गणराज्य में यह छूट है कि वह जहां चाहे वहां अपनी बीडी सिगरेट सुलगा सकता है। भारत सरकार द्वारा अपने ही नागरिकों के साथ इस तरह का सौतेला व्यवहार समझ से ही परे कहा जा सकता है।
हो सकता है भारत सरकार को यह भय हो कि नियमों के कडे करने से पर्यटकों की संख्या में कमी हो जाएगी। सीधी सी बात है जिसे भारत के इतिहास, यहां की पुरातात्तविक वस्तुओं, परंपराओं में जिज्ञासा होगी वह इन कडे नियमों को पार करके भी भारत आने का जतन करेगा। भारत के नागरिकों की सुरक्षा की कीमत पर पर्यटक अगर आते हैं तो यह किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं माना जा सकता है। मुम्बई हमले के उपरान्त कुछ दिन आतंकी शान्त रहे फिर उनके हौसले बुलन्दी की ओर दिखाई दे रहे हैं। भारत के लचर कानून के चलते आतंकियों के लिए हिन्दुस्तान मुफीद जगह होती जा रही है, जहां वे अपने नापाक इरादों को आसानी से परवान चढा सकते हैं।
जहां तक अब तक हुई आतंकी घटनाओं का सवाल है, तो इतिहास गवाह है कि भारत सरकार द्वारा अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए सदा ही पडोसी देशों को कोसकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री की है। अब तक आतंकियों ने देश के न जाने कितने सपूतों को असमय ही काल के गाल में समाया है, पर भारत सरकार हाथ पर हाथ रखे ही बैठी रही। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि देश में अब तक की नपुंसक सरकारों द्वारा भारत गणराज्य के नागरिकों को सुरक्षा मुहैया कराने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। अपने आप को उदार कहकर भारत सरकार अपनी पींठ खुद अवश्य ही थपथपा सकती है, पर इस तथ्य को वह भी जानती है कि कायर और और नपुंसक भारत सरकार उदारता का चोला पहनने का स्वांग कर रही है।
विडम्बना देखिए कि अनेक लोगों को मौत के घाट उतारने और भारत सरकार एवं निजी क्षेत्र की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आतंकियों में से ज़िन्दा पकडे कसाब को पाला जा रहा है। उसकी सुरक्षा में सरकार कोई कोताही नहीं बरत रही है। यह सब कुछ जनता के पैसे से ही हो रहा है। मंहगाई और कर्ज से लदी फदी भारत की जनता भी चुपचाप हाथ बांधे इस तमाशे को देखने पर मजबूर है। हम महज इतना ही कहना चाहते हैं कि देश के बेटों को शहीद करने वाले इस कसाब को भारत सरकार को पालना है तो खूब पाले पर उसकी सुरक्षा और खान पान में खर्च होने वाले पैसे की वसूली जनसेवकों के मोटे वेतन से ही वसूले जाएं। देश की जनता अखिर इस भोगमान को क्यों भोगे। जिस भी सूबे में इस तरह की घटना हो तब पीडितों को या उनके परिजनों को दी जाने वाली सहायता राशि भी उसी राज्य के सांसद, विधायक, मन्त्री और मुख्यमन्त्री से वसूलना होगा, तभी जनसेवकों को समझ में आएगी और वे सरकारी सिस्टम पर दवाब बना पाएंगे।
यक्ष प्रश्न तो यह है कि कसाब को लगभग पांच सौ दिन तक इस तरह ज़िन्दा रखकर भारत गणराज्य द्वारा आतंकियों को क्या सन्देश दिया जा रहा है, यही न कि अगर वे मौके पर मारे नहीं गए तो उनकी सुरक्षा में भारत सरकार कोई कोर कसर नहीं रख छोडेगी। भारत सरकार द्वारा अगर कसाब को ज़िन्दा रखकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कोई तीर मारा होता तो बात समझ में आती। सारे सबूतों के बाद भी पाकिस्तान द्वारा भारत के तर्कों को बहुत हल्के में लिया जा रहा है। भारत की लचर कानून व्यवस्था में पेशी पर पेशी मिलती जा रही है, और कसाब मस्त हलुआ पुरी खाकर मुटा रहा है। किसी अन्य देश में अगर यह हुआ होता तो अब तक कसाब को कब का चौराहे पर लटका दिया गया होता, जिससे आतंकियों के हौसलोें में काफी हद तक कमी आती,, पर क्या करें हम नपुंसक, कायर, नाकारा हैं जो उदारता का मौखटा लगाकर अपने ही आप को धोखा देने का प्रयास कर रहे हैं।
3 टिप्पणियां:
अरे भाई , एक कसाब की ही बात क्यों कर रहे हैं, कितने कसाब भरे हैं इस देश में. कुछ जेलों में और कुछ खुले आम घूम रहे हैं. अफ़ज़ल गुरु को क्या कहेंगे? हमारा कानून इन्तजार करता रहता है किसी कंधार काण्ड की जिससे कि उनको लेकर देश को ब्लैकमेल किया जा सके. हम हैं भी इसी काबिल. हमारा न्यायतंत्र और प्रशासन सब नाकारा है. दूसरे देशों में तुरंत न्याय किया जाता है बल्कि निर्दोषों को भी फाँसी पर चढ़ा दिया जाता है.
Question:क्यों पाला जा रहा है कसाब को ?
Answer:इसलिए क्योंकि उसकी महंगी और लजीज झूठन पर कुछ भारतीय भी पल रहे है !!!!!!
सीधा सा उत्तर है, एक ८१४ और उड़े जिससे कसाब को सही सलामत छोड़ने में आसानी हो. कश्मीर घाटी में तो यह धन्धा बना हुआ है.
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