मंगलवार, 16 मार्च 2010

अब मैया को कैसे प्रसन्न करें प्रणव दा!

अब मैया को कैसे प्रसन्न करें प्रणव दा!
आसमान छूती मंहगई में कैसे हो व्रत और मां की पूजा अर्चना
बंगाल में माता पूजन का रहता है सबसे ज्यादा जोर
(लिमटी खरे)
 
नवरात्र का आज पहला दिन है। चहुं ओर माता के जयकारे गूंज रहे हैं। पश्चिम बंगाल की राजधानी कलकत्ता में माता की पूजा अर्चना का जबर्दस्त जोर रहता है। देश आज मंहगाई की आग में झुलस रहा है। आम आदमी की थाली से दाल और अन्य भोजन सामग्री तेजी से गायब होती जा रही है। देश के वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी पश्चिम बंगाल से हैं, तो वे माता की पूजा अर्चना के महत्व को बेहतर ही जानते होंगे, किन्तु आम आदमी की दुश्वारियों से शायद वे परिचित दिखाई नहीं पड रहे हैं। देश में नवरात्र के पहले दिन ही आम आदमी की कमर टूट चुकी है। माता रानी को खुश करने के लिए वृत रखने वाले लोग आज मंहगे फलाहार से सहमे हुए हैं तो दूसरी ओर मैया दाई के श्रृंगार के लिए पूजा की थाली भी रीती ही नज़र आ रही है।
पिछले एक पखवाडे में ही पूजन सामग्री और फलाहार की कीमतों में जबर्दस्त उछाल दर्ज किया गया है। नवरात्र आते ही फलों की बढी मांग से इनकी कीमतों में भी तेजी आई है। उपवास करने वाले लोगों की पहली पसन्द सेब, अंगूर, केला, पपीता आदि की कीमतों में 15 से 25 रूपए की बढोत्तरी को साधारण कतई नहीं माना जा सकता है। थोक फल मण्डी में भी इन फलों में पांच सौ रूपए प्रति िक्वंटल से अधिक की वृद्धि प्रकाश में आई है।
आज चिल्हर बाजार में ठेलों पर घरों घर जाकर बिकने वाले फलों में पपीता 20 से 25 रूपए किलो, सेब 70 से 100 रूपए किलो, अंगूर 50 से 60 रूपए तो काले अंगूर 70 से 90 रूपए प्रति किलो बिक रहे हैं। इतना ही नहीं सन्तरा 25 रूपए किलो और छोटा सन्तरा 25 रूपए दर्जन, केला 25 से 30 रूपए दर्जन, चीकू भी 25 रूपए किलो की दर से बिक रहा है।
हिन्दु धर्म में उपवास में अन्न का सेवन वर्जित माना गया है, इसलिए इसके स्थान पर कुछ अन्य जिंसों का सेवन किया जाता है। इन फलाहारी वस्तुओं के दामों में रिकार्ड तेजी आई है। एक किलो की दर अगर देखी जाए तो मूंगफली दाना 60 रूपए, सिंघाडे का आटा 100 रूपए, साबूदाना 80 रूपए, मखाना 350 रूपए, आलू के चिप्स 150 रूपए की दर से बाजार में बिक रहे हैं। रही बात दूध से बने उत्पादों की तो उनकी कीमतों का क्या कहना। दूध ही आज 30 रूपए लीटर, दही 55 रूपए किलो, पनीर 175 रूपए, खोवा 175 रूपए की दर से बाजार में उपलब्ध है। पूजा के लिए प्रयुक्त होने वाले कपूर, धूप, अगरबत्ती, तेल आदि ने आसमान की ओर रूख किया हुआ है।
पिछले साल सितम्बर में शारदेय नवरात्र से अगर तुलना की जाए तो सिंधाडे का आटा 60 रूपए, साबूदाना 50 रूपए, आलू के चिप्स 75 रूपए, मखाना 255 रूपए, पनीर 110 रूपए, और सेंधा नमक या जिसे फरारी नमक भी कहते हैं, वह 14 रूपए बिक रहा था, जो अब चेत्र की नवरात्र में 15 रूपए की दर से उपलब्ध है।
अगर देखा जाए तो आम आदमी की औसत आय भारत में पचास रूपए से भी कम है। इस मान से आम आदमी माता के उपवास कर माता रानी को कैसे प्रसन्न कर पाएगा यह यक्ष प्रश्न आज भी अनुत्तरित है। सरकार में बैठे जनसेवकोें की अनाप शनाप बढी पगार और मिलने वाली अन्य सुख सुविधाओं के चलते उन्हें आम आदमी की दुश्वारियों का एहसास नहीं हो पाता है, पर सच्चाई यही है कि आम आदमी किस तरह जीवन यापन कर रहा है, यह प्रश्न विचारणीय ही है।
आदि अनादि काल से ही माता दुगाZ को शक्ति का रूप माना गया है। चाहे वह आम आदमी हो या डाकू सभी माता के उपासक हैं। कहा जाता है कि माता की सवारी शेर है, जो सबसे अधिक ताकतवर होता है। शेर को काबू में कर उसकी सवारी करने वाली माता की उपासना इस बार आम आदमी के लिए काफी कठिन साबित हो रही है, इसका कारण केन्द्र में बैठी कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की जनविरोधी नीतियां ही कही जाएंगी। जमाखोरों, सूदखोरों को प्रश्रय देने और अपने निहित स्वार्थों को साधने के चक्कर में संप्रग सरकार के मन्त्री और विपक्ष में बैठे जनसेवक आम जनता की सुध लेना ही भूल गए।
अभी ज्यादा समय नहीं बीता है, जबकि पेट्रोल या डीजल की कीमतें जरा सी बढने पर भारतीय जनता पार्टी, के साथ ही साथ वाम दलों की भवें तन जाती थीं, और विरोध में विपक्षी दल सडकों पर उतर आते थे। आज आलम यह है कि केन्द्र सरकार मनमानी तरीके से कीमतें बढाती जा रही है, और विपक्ष में बैठे जनसेवक चुपचाप उन्हें जनता के साथ किए जाने वाले इस अन्याय को मूक समर्थन दे रहे हैं।
लोगों को उम्मीद थी कि अर्थशास्त्री प्रधानमन्त्री डॉ. मन मोहन सिंह इस मामले में कुछ पहल करेंगे किन्तु वे भी मौन साधे ही बैठे हैं। रही बात वित्त मन्त्री प्रणव मुखर्जी की तो माना जा रहा था कि वे बंगाल से सियासत में उतरे हैं अत: माता रानी की उपासना के महत्व को बेहतर तरीके से समझ सकेंगे, क्योंकि बंगाल में माता की उपासना का अलग महत्व है, पर विडम्बना है कि वे भी अपनी ``राजनैतिक मजबूरियों`` में इस कदर उलझे कि उन्हें भी माता रानी की उपासना से मंहगाई के कारण वंचित होने वाले भक्तों की भी कोई परवाह नहीं रही। अगर आलम यही रहा तो आने वाले दिनों में लोग अपनी उपासना को सांकेतिक तौर पर मनाने पर मजबूर हो जाएंगे।

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