क्या इससे पर्यावरण नहीं होगा प्रदूषित!
घंसौर के पावर प्लांट से पानी होगा प्रदूषित
बरगी बांध में जम जाएगी जबर्दस्त सिल्ट
कहां हैं पर्यावरण के ठेकेदार!
(लिमटी खरे)
नई दिल्ली 18 मार्च। देश की नामी गिरामी कंपनियों में शुमार थापर ग्रुप ऑफ कम्पनीज के प्रतिष्ठान झाबुआ पावर लिमिटेड के द्वारा मध्य प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से महज 100 किलोमीटर दूर आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर में स्थापित किए जाने वाले पावर प्लांट से नर्मदा नदी पर बने रानी अवन्ती बाई सागर परियोजना (बरगी बांध) पर पानी के जबर्दस्त प्रदूषण का खतरा मण्डराने लगा है। अगर यह संयन्त्र यहां स्थापित कर दिया जाता है तो इस प्लांट से उडने वाली राख से बरगी बांध की तलहटी में कुछ माहों के अन्दर ही ढेर सारी सिल्ट जमा हो जाएगी और पानी प्रदूिZषत होने की संभावना बलवती हो जाएगी। इससे आदिवासी बाहुल्य तहसील घंसौर के निवासियों को स्वांस की समस्याओं से दो चार भी होना पड सकता है।
केन्द्रीय उर्जा मन्त्रालय के विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि इस मध्य प्रदेश सरकार और झाबुआ पावर लिमिटेड के बीच हुए 1200 मेगावाट के पावर प्लांट के करार के प्रथम चरण में कंपनी द्वारा अभी सिवनी जिले के ग्राम बरेला में 600 मेगावाट का पावर प्लांट प्रस्तावित है। इस पावर प्लांट के लिए आवश्यक जलापूर्ति बरगी बांध के सिवनी जिले के जल भराव क्षेत्र गडघाट और पायली से की जाएगी।
सूत्रों ने आगे कहा कि प्रस्तावित संयन्त्र द्वारा प्रतिदिन 853 टन राख उत्सर्जित की जाएगी, जिसे बायलर के पास से ही एकत्र किया जा सकेगा। समस्या लगभग 1000 फिट उंची चिमनी से उडने वाली राख (फ्लाई एश) की है। इससे रोजना 3416 टन राख उडकर आसपास के इलाकों में फैल जाएगी। 1000 फिट की उंचाई से उडने वाली राख कितने डाईमीटर में फैलेगी इस बात का अन्दाजा लगाने मात्र से सिहरन हो उठती है। सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने अपने प्रतिवेदन में हवा का रूख जिस ओर दर्शाया है, संयन्त्र से उस ओर बरगी बांध है।
जानकारों का कहना है कि 3416 टन राख प्रतिदिन उडेगी जो साल भर में 12 लाख 46 हजार 840 टन हो जाएगी। अब इतनी मात्रा में अगर राख बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में जाएगी तो चन्द सालों में ही बरगी बांध का जल भराव क्षेत्र मुटठी भर ही बचेगा। यह उडने वाली राख आसपास के खेत और जलाशयों पर क्या कहर बरपाएगी इसका अन्दाजा लगाना बहुत ही दुष्कर है। इस बारे में पावर प्लांट की निर्माता कंपनी ने मौन साध रखा है।
इतना ही नहीं प्रतिदिन बायलर के पास एकत्र होने वाली 853 टन राख जो प्रतिमाह में बढकर 26 हजार 443 और साल भर में 3 लाख 11 हजार टन हो जाएगी उसे कंपनी कहां रखेगी, या उसका परिवहन करेगी तो किस साधन से, इस बारे में भी झाबुआ पावर लिमिटेड ने चुप्पी ही साध रखी है।
इतनी सारी विसंगतियों के बावजूद भी 22 अगस्त को घंसौर में हुई जनसुनवाई में किसी भी बात को रेखांकित नहीं किया जा सका है। कहा जा रहा है कि कंपनी ने सरकारी नुमाईन्दो और जनसेवकों को `कीप मम` (शान्त रहने) के एवज में अपेक्षा से अधिक उपकृत किया है, यही कारण है कि पर्यावरण के नुकसान और मानव स्वभाव पर पडने वाले प्रतिकूल प्रभावों को जानबूझर इनके द्वारा उपेक्षित ही किया जा रहा है।
केन्द्रीय उर्जा मन्त्रालय के विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि इस मध्य प्रदेश सरकार और झाबुआ पावर लिमिटेड के बीच हुए 1200 मेगावाट के पावर प्लांट के करार के प्रथम चरण में कंपनी द्वारा अभी सिवनी जिले के ग्राम बरेला में 600 मेगावाट का पावर प्लांट प्रस्तावित है। इस पावर प्लांट के लिए आवश्यक जलापूर्ति बरगी बांध के सिवनी जिले के जल भराव क्षेत्र गडघाट और पायली से की जाएगी।
सूत्रों ने आगे कहा कि प्रस्तावित संयन्त्र द्वारा प्रतिदिन 853 टन राख उत्सर्जित की जाएगी, जिसे बायलर के पास से ही एकत्र किया जा सकेगा। समस्या लगभग 1000 फिट उंची चिमनी से उडने वाली राख (फ्लाई एश) की है। इससे रोजना 3416 टन राख उडकर आसपास के इलाकों में फैल जाएगी। 1000 फिट की उंचाई से उडने वाली राख कितने डाईमीटर में फैलेगी इस बात का अन्दाजा लगाने मात्र से सिहरन हो उठती है। सूत्रों का कहना है कि कंपनी ने अपने प्रतिवेदन में हवा का रूख जिस ओर दर्शाया है, संयन्त्र से उस ओर बरगी बांध है।
जानकारों का कहना है कि 3416 टन राख प्रतिदिन उडेगी जो साल भर में 12 लाख 46 हजार 840 टन हो जाएगी। अब इतनी मात्रा में अगर राख बरगी बांध के जल भराव क्षेत्र में जाएगी तो चन्द सालों में ही बरगी बांध का जल भराव क्षेत्र मुटठी भर ही बचेगा। यह उडने वाली राख आसपास के खेत और जलाशयों पर क्या कहर बरपाएगी इसका अन्दाजा लगाना बहुत ही दुष्कर है। इस बारे में पावर प्लांट की निर्माता कंपनी ने मौन साध रखा है।
इतना ही नहीं प्रतिदिन बायलर के पास एकत्र होने वाली 853 टन राख जो प्रतिमाह में बढकर 26 हजार 443 और साल भर में 3 लाख 11 हजार टन हो जाएगी उसे कंपनी कहां रखेगी, या उसका परिवहन करेगी तो किस साधन से, इस बारे में भी झाबुआ पावर लिमिटेड ने चुप्पी ही साध रखी है।
इतनी सारी विसंगतियों के बावजूद भी 22 अगस्त को घंसौर में हुई जनसुनवाई में किसी भी बात को रेखांकित नहीं किया जा सका है। कहा जा रहा है कि कंपनी ने सरकारी नुमाईन्दो और जनसेवकों को `कीप मम` (शान्त रहने) के एवज में अपेक्षा से अधिक उपकृत किया है, यही कारण है कि पर्यावरण के नुकसान और मानव स्वभाव पर पडने वाले प्रतिकूल प्रभावों को जानबूझर इनके द्वारा उपेक्षित ही किया जा रहा है।
1 टिप्पणी:
खरे जी, भाड़ में जाये पर्यावरण और यहां के लोग. बड़े अफसर और नेता तो विदेशों में जा बसेंगे.
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