सोमवार, 29 मार्च 2010

नप सकते हैं पीएम इन वेटिंग

ये है दिल्ली मेरी जान
(लिमटी खरे)
नप सकते हैं पीएम इन वेटिंग

राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबंधन के कतार में रहने वाले प्रधानमन्त्री (पीएम इन वेटिंग) एल.के.आडवाणी पर मुसीबतों का पहाड टूटता दिख रहा है, लगता है सयानी उमर में उनकी मट्टी खराब हो सकती है। अठ्ठारह साल पहले यूपी सूबे में घटी एक घटना आडवाणी के गले की फांस बनती दिख रही है। हाल ही में बाबरी विध्वंस काण्ड के नौवें गवाह के तौर पर पेश हुई 1990 बैच की भारतीय पुलिस सेवा की अधिकारी अंजु गुप्ता ने इस मामले में बयान देकर आडवाणी की पेशानी पर पसीने की बून्दे छलका दी हैं। गुप्ता ने साफ तोर पर इस बात को अपनी गवाही में उकेरा है कि बाबरी ढांचे को गिराने हेतु कार्यकर्ताओं को उकसाने के लिए आग में घी का काम किया था आडवाणी के जोशीले उद्बोधन ने। बाबरी विध्वंस के दौरान फैजाबाद में सहायक पुलिस अधीक्षक रहीं अंजू गुप्ता को आडवाणी की सुरक्षा की जवाबदारी दी गई थी, इस लिहाज से वे पूरे समय आडवाणी के साथ थीं। आडवाणी और अन्य नेताओं के बीच उस दौरान क्या क्या चर्चाएं हुईं, क्या रणनीति बनी वे बेहतर समझ सकतीं हैं। उन्होंने अपने बयान में जो बातें कहीं हैं, वे सम्भवत: बताने योग्य रही होंगी। आडवाणी का कद आज बहुत उंचा है, उन्हें सर उठाकर देखने से किसी की भी टोपी सर से गिर सकती है। इस मान से अंजू गुप्ता ने अनेक बातें छिपाकर भी रखीं होंगी। सवाल यह उठता है कि आखिर अंजू गुप्ता को यह दिव्य ज्ञान कहां से प्राप्त हो गया कि 18 साल बाद वे सच का सामना करने का साहस जुटा सकीं। तत्कालीन एएसपी फैजाबाद अंजू गुप्ता ने 1992 में ही अपनी ही पुलिस के रोजनामचे में इस बात को दर्ज क्यों नहीं कराया! इस मामले में अंजू गुप्ता पर भी अलग से प्रकरण पंजीबद्ध किया जाना चाहिए, कि लोकसेवक होते हुए भी उन्होंने सच्चाई को 18 साल तक छुपाकर रखा।
 
पत्थरों से तुले तोमर
अब तक नेताओं को लड्डू, पेडा, फलों से तुलने की बातें सुनी होंगी, पर किसी नेता को इनके साथ पत्थरों से तुलते देखा है। आपका उत्तर होगा, नहीं। जी हम बताते हैं मध्य प्रदेश में एक बडे नेता के पत्थरों से तुलने का वाक्या। दरअसल भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष रहे नरेन्द्र तोमर को टीम गडकरी में केन्द्रीय और महती जवाबदारी सौंपी गई है। जब नरेन्द्र तोमर भोपाल पहुंचे तो उनके समर्थकों के द्वारा उन्हें लड्डुओं से तोलने का प्रोग्राम तय किया। यह प्रोग्राम मन से किया गया था, या बेमन से इस बात का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तोमर के लड्डुओं से तुलने के बाद एक बुजुर्ग महिला के हाथ पत्थर ही लगे। हुआ यूं कि जब तोमर तुलने के उपरान्त वहां से हटे तो कार्यकर्ताओं ने लड्डू बांटना आरम्भ किया। इसी बीच एक बुजुर्ग महिला ने डलिया में रखे लड्डू उठा लिए, नाराज कार्यकर्ताओं ने उससे लड्डू छुआ लिए। तब उस बुजुर्ग महिला ने अपना हाथ तराजू में रखी बोरी में दे मारा। उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उसने बोरियों में पत्थर रखे पाए। उसने इसकी शिकायत वहां उपस्थित पदाधिकारियों से की। पदाधिकारी भी सन्न रह गए और उन्होंने दबी जुबान से इसकी जांच की बात भी कह दी। अब पता नहीं तोमर को पता चला कि नहीं कि वे लड्डू के बजाए पत्थरों से तुल गए हैं। पता चले भी तो क्या जब किराए के कार्यकर्ताओं से स्वागत कराया जाएगा तो एसा नहीं तो कैसा होगा।

मान गए फोर्टिस अस्पताल को
देश के फाईव स्टार संस्कृति वाले अस्पतालों के द्वारा सरकार के नियम कायदों का किस कदर सरेआम माखौल उडाया जा रहा है, इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण राजधानी दिल्ली के जाने माने फोर्टिस अस्पताल की दशा देखकर लगाया जा सकता है, यह दुस्साहस भी तब किया जा रहा है, जब दिल्ली उच्च ने 22 मार्च 2007 को 38 निजी अस्पतालों को अपनी क्षमता के 10 फीसदी बिस्तर गरीब मरीजों के लिए आरक्षित रखने के निर्देश दिए थे। पिछले पांच सालों में राजधानी के फोर्टिस अस्पताल ने महज पांच गरीब मरीजों की तीमारदारी की है। इस लिहाज से एक गरीब मरीज ही एक साल में यहां इलाज करा सका है। अगर यह स्थिति है तो देश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मन्त्री गुलाम नबी आजाद को खुशफहमी पाल लेना चाहिए कि करोडों अरबों के टर्नओवर वाले अस्पताल में एक ही गरीब एक साल में आया, मतलब देश के गरीबों में बीमारी ने घर करना बन्द कर दिया है। यह बात हम नहीं दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य मन्त्री किरण वालिया कह रहीं हैं। विधानसभा के पटल पर जानकारी देते हुए वालिया ने कहा कि 16 मई 2008 को स्वास्थ्य विभाग के तहत फोर्टिस अस्पताल का पंजीयन कराया गया है। इतना ही नहीं जिस स्थान पर यह अस्पताल संचालित हो रहा है, वह जमीन राजन ढल चैरिटेबल ट्रस्ट को आवंटित है। यह अस्पताल कौन संचालित कर रहा है इस बारे में वालिया मौन हैं, पर हकीकत यह है कि उक्त ट्रस्ट के बजाए और कोई इस अस्पताल को संचालित कर मलाई काट रहा है। है न आश्चर्य की बात, यह सब कुछ विश्व में सबसे बडे प्रजातन्त्र हिन्दुस्तान में ही सम्भव है।
ढाई करोड हवा में उडा दिए शिवराज ने
केन्द्र सरकार के साथ ही साथ देश के सूबों की सरकारों ने विश्व व्यापी आर्थिक मन्दी के चलते मितव्ययता बरतने की अपील की और उसे अंगीकार भी किया। देश के हृदय प्रदेश कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने मितव्ययता की एक अजब नजीर पेश की है। मितव्ययता का स्वांग रचने के लिए शिवराज सिंह चौहान ने भोपाल में श्यामला स्थित मुख्यमन्त्री आवास से मन्त्रालय तक सायकल पर चलकर मीडिया की खूब सुर्खियां बटोरीं, पर असलियत कुछ और बयां कर रही है। 2006 से 2008 तक मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान ने सरकारी हवाई जहाज और हेलीकाप्टर के होते हुए भी अपने जानने वालों को उपकृत करने की गरज से पांच निजी एवीएशन कंपनियों को दो करोड 63 लाख रूपए का भुगतान किया है। नई दिल्ली की सारथी एयरवेज, एवीएशन सर्विस इण्डिया, रान एयर सर्विस, सर एवीएशन सर्विस इण्डिया, एस.आर.सी. एवीएशन और इन्दौर फ्लाईंग क्लब को इस राशि का भुगतान किया गया है। सवाल यह उठता है कि जब राज्य सरकार के पास अपना उडन खटोला है तब किराए से उडन खटोला लेने का क्या औचित्य है। इसके पहले दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में भी उन्होंने भी अपने जानने वालों की एवीएशन कंपनियों को बहुत लाभ पहुंचाया था, पर आवाज कौन उठाए, पैसा जनता के गाढे पसीने की कमाई पर डाका डालकर जो निकाला जा रहा है।
का वषाZ जब कृषि सुखानी
बहुत पुरानी कहावत है कि जब खेती ही सूख जाए तब बारिश का क्या फायदा! यही बात देश में स्वाईन फ्लू की वेक्सीन के बारे में लागू हो रही है। हम भारतवासी अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि अब स्वाईन फ्लू की वेक्सीन इजाद कर ली गई है। वहीं दूसरी ओर अब देश के आला अफसरान यह कहते घूम रहे हैं कि अब इसकी जरूरत नहीं है। इसका टीका अब लगाने से कोई फायदा नहीं है, क्योंकि पिछले दो सालों में देश में कहर बरपाने वाले एच1 एन1 वायरस का असर अब काफी हद तक कम हो चुका है। ठण्ड में यह बीमारी चरम पर होती है, किन्तु अब देश में इससे पीडितों के मामलों में तेजी से कमी होने के बाद इस टीके का ओचित्य ही नहीं रह गया है। वैसे भी मेक्सीको के रास्ते भारत में आई इस बीमारी को लेकर भारत सरकार कितनी चौकन्नी थी कि देश के हवाई अड्डों पर चौकस व्यवस्था के बाद भी देश में इस वायरस ने अपना कहर बरपा ही दिया। एक बार अगर यह बीमारी देश में प्रवेश कर गई तो फिर हवाई अड्डों पर मुस्तैदी किस काम की रही। जो वायरस देश की फिजां में रच बस गया, उसके बाद कितने भी मरीज देश में प्रवेश कर जाएं तो क्या असर पडता है। कहते हैं न कि ``बुिढया के मरने का गम नहीं, गम तो इस बात का है कि मौत ने घर देख लिया।``
माता रानी के दर्शन हुए और आसान
उत्तर भारत में त्रिकुटा की पहाडियों पर विराजीं माता वैष्णों देवी के दर्शन अब और आसान हो गए हैं। कुछ सालों पहले तक अपार कष्ट झेलकर माता रानी के दर्शन को लाखों श्रृद्धालु जाया करते थे, आज उनकी तादाद करोडों में पहुंच गई है। पहले बेहद संकरी गुफा में से होकर माता के भक्त पिण्डियों के दर्शन कर पाते थे। सुप्रसिद्ध भजन गायक गुलशन कुमार के गीतों और सस्ते कैसेट के बाद अचानक ही माता रानी के भक्तों की संख्या में विस्फोटक बढोत्तरी दर्ज की गई थी। इसके बाद माता रानी के दर्शनों हेतु भक्तों को सुविधाएं उपलब्ध कराने और व्यवस्था बनाने के लिए माता रानी श्राईन बोर्ड का गठन किया गया था। वर्तमान में माता रानी के दर्शन हेतु दो क्रत्रिम गुफाएं हैं। इस साल श्राईन बोर्ड ने यहां तीसरी गुफा का निर्माण भी करा दिया है। अभी माता रानी की तीन पिडिंयो के दर्शन हेतु महज एक से डेढ सेकण्ड का समय ही मिल पाता है, जो अब बढने की उम्मीद है। नई गुफा 10 फुट उंची और 15 फुट चौडी एवं 48 मीटर लंबी बनाई गई है। गत दिवस जम्मू काश्मीर के महामहिम राज्यपाल एन.एन.वोहरा ने इस गुफा के माध्यम से माता रानी के दर्शन भी कर लिए हैं। माना जा रहा है कि भक्तों की बढती तादाद को देखकर इसे जल्द ही खोला जा सकता है।
महिलाओं के मामले में पिछडा है राजस्थान
सरकारी सेवा में महिलाओं को स्थान देने के मामले में देश का राजस्थान सूबा काफी हद तक पीछे है। आजादी के छ: दशकों के बाद राजस्थान उच्च न्यायालय महज चार महिला न्यायधीश ही दे पाया है। 1949 में सूबे में उच्च न्यायालय की स्थापना के 29 साल के बाद कान्ता कुमार भटनागर 26 सितम्बर 1978 से 14 जून 1992 तक यहां रहने के उपरान्त चेन्नई हाईकोर्ट की मुख्य न्यायधीश बनीं, मोहिनी कपूर 13 जुलाई 1985 से 17 नवंबर 1995, ज्ञानसुधा मिश्रा 21 अप्रेल 1994 से 12 जुलाई 2008 के उपरान्त 13 जुलाई को झारखण्ड हाई कोर्ट की सीजे तो मीना वी. गोम्बर सितम्बर 2009 से यहां पदस्थ हैं। इसके अलावा राज्य काडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा के 187 स्वीकृत पदों में से 28 तो 159 भारतीय पुलिस सेवा के पदों में से 12, राज्य प्रशासनिक सेवा आरजेएस में 87 मेें से 26 पदों पर ही महिलाएं काबिज हैं। उच्च न्यायालय में वर्तमान में 40 में से 27 जज कार्यरत हैं जिनमें से एक ही महिला है। उच्च न्यायिक सेवा में 142 में से 16 महिला जज तो न्यायिक सेवा में 697 में से 98 ही महिला जज हैं। न्यायिक सेवा के 839 पदों में से महज 114 पदों पर ही महिलाओं का कब्जा बरकरार है।
नियम तो बना, पालन कौन करे
मानव के लिए मोबाईल टावर से निकलने वाली किरणें बहुत हानीकारक हैं। इसके लिए नियम कायदे बन चुके हैं, पर सवाल यह उठता है कि इसका पालन कौन करे। जिस तरह सिगरेट की डब्बी पर स्टार लगाकर लिखी हुई चेतावनी को धूम्रपान करने वाला धुंआ छोडते हुए ही पढता है, उसी तरह नियमों का पालन करवाने वाले अपनी जवाबदेही निभा रहे हैं। दिल्ली में 1532 मोबाईल टावर को नगर निगम दिल्ली द्वारा बनाए गए मानकों का पालन न करने पर नोटिस जारी हो चुका है, पर अब तक सील होने की बात कहें तो महज एक मोबाईल टावर को ही सील किया गया है। दिल्ली में ही 5364 मोबाईल टावर लगे हैं, जिनमें से 2412 टावर वैध पाए गए हैं, 2952 टावर अर्वध हैं। वैसे तो 227 मोबाईल टावर सील हो चुके हैं, पर 1532 को नोटिस देने के बाद एक ही सील हो पाया है। असलियत यह है कि मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों को होने वाली अनापशनाप कमाई के चलते सेवा प्रदाता कंपनियां अधिकारियों के समक्ष नोटों की थैलियों के मुंह खोल दिया जाता है, फिर क्या है नियम बनते हैं बनते रहें। कहा है न कि जब सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का।
सपनि बन्द, पूर्व विधायक हलाकान
मध्य प्रदेश के राजनेताओं द्वारा घुन की तरह मध्य प्रदेश सडक परिवहन निगम को खा लिया गया। घाटे में जाने वाले इस निगम को बन्द कर दिया गया है। इसके स्थान पर अब अनुबंधित यात्री बसों के नाम पर अवैध बसों का इतना जबर्दस्त रेकट पनप चुका है जिसे तोड पाना किसी के बस की बात नहीं प्रतीत होती है। यात्री बसों के बन्द होने से सूबे के पूर्व विधायक और अधिमान्य पत्रकार हलाकान ही नज़र आ रहे हैं। दरअसल अधिमान्य पत्रकारों और पूर्व विधायकों को सपनि में निशुल्क यात्रा की सुविधा प्रदान की गई थी। अब अनुबंधित यात्री बस में उन्हें बहुत ही परेशानी का सामना करना पडता है। पडोसी सूबे महाराष्ट्र में यह सुविधा बाकायदा जारी है। अब पूर्व विधायक इस सेवा के लिए लामबन्द होते दिख रहे हैं। पूर्व विधायकों का कहना है कि उन्हें यात्रा भत्ता अलग से दिया जाए ताकि वे अपने क्षेत्र सहित अन्य जिलों में भी जनसंपर्क को जीवित रख सकें। मामला सूबे के निजाम शिवराज सिंह चौहान तक पहुंच गया है, पर इस मामले में वे अभी शान्त ही दिख रहे हैं। पत्रकारों को अलबत्ता पेंशन और स्वास्थ्य बीमा का झुनझुना पकडा दिया गया है।
सरदर्द बनीं अवैध सिम
मोबाईल सेवा प्रदाता कंपनियों के बीच मची गलाकाट स्पर्धा के चलते अधिक से अधिक उपभोक्ता बनाने की अघोषित जंग छिड गई है। इस कस्टमर वार में सरकारी नियम कायदों को साफ साफ धता बताया जा रहा है। देश के कमोबेश हर जिले के एक एक कस्बे में सेवा प्रदाता कंपनियों के वैध और अवैध डीलर को मिलने वाला टारगेट पूरा करने के लिए अनैतिक तरीकों का प्रयोग हो रहा है। बताते हैं कि बिना पहचान पत्र के ही सिम चालू कर बेच दी जाती हैं। ये सिम एकाध सप्ताह तक तो काम करती हैं, फिर पहचान के अभाव में इन्हें बन्द कर दिया जाता है, इस तरह कंपनी के उपभोक्ताओं की संख्या में दिन दूगनी रात चौगनी बढोत्तरी दर्ज हो रही है। इस काम में कंपनी की शान में तो चार चान्द लग जाते हैं पर वैध सिम लेकर सालों से उपभोग करने वाले उपभोक्ताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड रहा है। आम शिकायत है कि अपरिचित नंबर से अश्लील एसएमएस और फोन काल पर अश्लील वार्तालाप के साथ ही साथ मिस्ड काल मारकर लोग परेशान किया करते हैं। अब देखना यह है कि ट्राई इस मामले में क्या कदम उठाती है।
हो गया हिसाब किताब बराबर
24 जनवरी को भारत सरकार के एक विज्ञापन में पाकिस्तान के पूर्व वायू सेना प्रमुख तनवीर महमूद अहमद की फोटो प्रकाशित होने पर जबर्दस्त बवाल कटा था। अब पाकिस्तान के एक सरकारी विज्ञापन में भारत की पंजाब पुलिस के लोगो के प्रकाशन का मामला सामने आया है। हिन्दुस्तान की पंजाब पुलिस के लोगो के साथ उर्दू में जारी इस विज्ञापन में आतंकवादी और अन्य वारदातों को रोकने में पुलिस की मदद की गुहार लगाई गई है। भारत और पाकिस्तान दोनों ही के लोगो में अंग्रेजी वर्णमाला के पी अक्षर से पीपी लिखा है। दोनो ही के लोगो में उपर के स्थान को छोडकर शेष स्थान को पुष्प चक्र से घेरा गया है। भारत की पंजाब पुलिस में उपर अशोक चक्र तो पकिस्तान की पंजाब पुलिस के लोगो में सितारा बना हुआ है। दोनों ही लोगो के रंग और डिजाईन लगभग एक से हैं, अन्तर सिर्फ राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का ही है। लोग तो यह कहते भी पाए जा रहे हैं कि चलो हमने आपकी छापी आपने हमारी, हो गया हिसाब किताब बराबर।
पुच्छल तारा
आज की भागदौड भरी जिन्दगी के बीच अगर बचपन को याद किया जाए तो कुछ सुखद यादें ताजा हो ही जाती हैं। समय किस कदर बदल चुका है, लोगों के बीच पहले खतो खिताब का सिलसिला चलता था। पत्र पाने के लिए प्रेयसी भी घंटों डाकिए की राह तकती थी। पत्र आते थे और अपने साथ आनन्द लाते थे। मध्य प्रदेश से अभिषेक दुबे ने इसी बात को रेखांकित करते हुए एक मेल भेजा है। याद करिए उस समय को जब हम अक्सर कहा करते थे कि चलो मिलते हैं और कुछ करने की योजना बनाते हैं। अब समय बदल गया है अब हम कहते हैं कि चलो प्लान करते हैं और फिर किसी दिन मिलते हैं। मित्र वही हैं, हम वही हैं, कुछ नहीं बदला है, बदला है तो बस हमारी प्राथमिकताएं।

1 टिप्पणी:

vandana gupta ने कहा…

kya gazab ki khabre di hain.........kuch ke bare mein to pata hi nahi tha............aise hi logo ko jagate rahiye.